महंगाई ने मारा: तीन माह में बढ़े 7.1 करोड़ गरीब, भूख से बेहाल….?

महंगाई ने मारा: तीन माह में बढ़े 7.1 करोड़ गरीब, भूख से बेहाल…? 
भुखमरी बढ़ी: मदद की दरकाररूस-यूक्रेन संघर्ष ने और बिगाड़े हालात…
नई दिल्ली. संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने गुरुवार को एक रिपोर्ट में कहा है कि यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद खाद्य और ऊर्जा की बढ़ती कीमतों के चलते दुनियाभर में 7.1 करोड़ से अधिक लोग गरीबी रेखा के नीचे चले गए। यूएनडीपी की 20-पृष्ठ की रिपोर्ट विकासशील देशों में जीवन यापन संकट की लागत को संबोधित करने पर केंद्रित है। वहीं, इससे पहले बुधवार को विश्व खाद्य कार्यक्रम और चार अन्य संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों की एक अन्य रिपोर्ट ‘द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रीशन इन द वर्ल्ड’ में कहा गया है कि दुनिया भर में साल 2021 में 2.3 अरब लोग गंभीर या उससे कम स्तर की भुखमरी का सामना कर रहे थे, एक साल पहले की तुलना में भूख की मार झेलने वाले लोगों की यह संख्या साढ़े चार करोड़ और 2019 की तुलना में 15 करोड़ अधिक है।

महंगाई से सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में हैती, तुर्की, अर्जेंटीना, मिस्र, इराक, फिलीपींस, रवांडा, सूडान, केन्या, श्रीलंका और उज्बेकिस्तान हैं। अफगानिस्तान, इथियोपिया, माली, नाइजीरिया और यमन जैसे देशों में महंगाई का असर उन लोगों पर और भारी है जो पहले से ही गरीब हैं।

भूख से पीड़ितों की बढ़ी तादाद

वर्तमान में रेकॉर्ड लोग भुखमरी से पीड़ित हैं। साल की शुरुआत में यह संख्या 27.6 करोड़ थी, यूक्रेन पर हमले के बाद यह 25 फीसदी बढ़ गई। —डेविड बेस्ली, प्रमुख, यूएन विश्व खाद्य कार्यक्रम

देखते ही देखते चले गए गरीबी में…

कम आय वाले देशों में परिवार अपनी घरेलू आय का 42% भोजन पर खर्च करते हैं, लेकिन जैसे-जैसे पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाए, वैसे-वैसे ईंधन और मुख्य खाद्य पदार्थों जैसे गेहूं, चीनी और खाना पकाने के तेल की कीमत बढ़ गई। यूक्रेन के अवरुद्ध बंदरगाहों और कम आय वाले देशों को अनाज निर्यात करने में असमर्थता ने कीमतों को और आसमान पर पहुंचा दिया, जिससे लाखों लोग देखते ही देखते गरीबी में चले गए।

युद्ध के पहले 3 महीनों में बढ़ गया संकट

अनुमान है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद पहले तीन महीनों में 5.16 करोड़ से अधिक लोग गरीबी में गिर गए, जो एक दिन में 1.90 डॉलर या इससे कम पर जीवनयापन कर रहे थे। इसने विश्व स्तर पर गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की तादाद को दुनिया की 9% आबादी तक पहुंचा दिया है।

 

 

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