लॉकडाउन का दिमाग पर बुरा असर …?

भोपाल में हर महीने 60 से 70 बच्चे हो रहे ऑटिज्म का शिकार, एक साल में 1545 मामले; 3 साल में 66% बढ़ गए मरीज...? 

आष्टा की एक मां पिछले दो हफ्ते से हर दिन अपने बेटे की थेरेपी के लिए स्पेशल चाइल्ड संस्था आरुषि आती है। उनका बच्चा चार साल तक अच्छा था। कोरोना की चपेट में आने के बाद व्यवहार बदलने लगा। अभी वो तेज रोशनी बर्दाश्त नहीं कर पा रहा। अचानक गुस्सा हो जाता है। एक्टिविटी भी हाइपर हो गई है। जेपी अस्पताल में मनोचिकित्सक को दिखाया तो बताया कि बेटा ऑटिज्म का शिकार है। आरुषि में बच्चे की थेरेपी चल रही है। कोरोना के बाद बच्चों में ऑटिज्म का यह अकेला केस नहीं है।

आरुषि संस्था, जेपी, हमीदिया अस्पताल के मनोचिकित्सकों के पास हर महीने 60 से 70 ऑटिज्म पीड़ित बच्चे पहुंच रहे हैं और ये सभी नए केस होते हैं। ये सारे कोरोना और लॉकडाउन के बैड इफेक्ट से इस बीमारी में घिरे हैं। आरुषि में पहले हर महीने ऐसे 20 बच्चे पहुंचते थे, अब 45 तक पहुंच रहे। हमीदिया, जेपी में जहां बमुश्किल 5 केस पहुंचते थे, अभी 20 से ज्यादा आ रहे हैं। 2019 में भोपाल में ऑटिज्म के 927 केस थे, जो अब 1545 हो गए हैं। तीन साल में 66% केस बढ़ चुके हैं।

स्पीच, ऑक्यूपेशनल, बिहेवियर थेरेपी ही इलाज है इसका

जेपी अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉ. आरके बैरागी ने बताया कि कोरोना के कारण बच्चों का सोशल कम्युनिकेशन खत्म हो गया। इस कारण उनका लर्निंग पीरियड रुका और ये ही ऑटिज्म केस बढ़ने की बड़ी वजह है। हमीदिया के मनोचिकित्सक जेपी अग्रवाल के मुताबिक अभी बीमारी की स्थिति और लक्षण के आधार पर चिकित्सक बिहेवियर, स्पीच और ऑक्यूपेशनल थेरेपी से इसे कंट्रोल करते हैं।

समस्या ये भी… अभिभावक मानते ही नहीं कि बच्चे को ऑटिज्म हुआ

आरुषि संस्था की डॉ. योषित उपासनी के मुताबिक ऑटिज्म को मेडिकल साइंस में ‘डेवलपमेंटल डिसऑर्डर’ कहते हैं। जन्म के कुछ महीने बाद ही इसके लक्षण समझ लिए जाएं तो ऑटिज्म पीड़ित बच्चों की देखभाल आसान हो जाती है। हालांकि ज्यादातर मामलों में पैरेंट्स यह मानने के लिए तैयार ही नहीं होते कि उनका बच्चा ऑटिज्म से पीड़ित है। संस्था के डायरेक्टर अनिल मुद् गल का कहना है कि पैरेंट्स को समझाना बहुत मुश्किल होता है। अभी उनके यहां हर दिन 35 से 45 बच्चे थेरेपी ले रहे हैं।

…..एक्सपर्ट- तेज आवाज में बड़बड़ाना, तोड़फोड़ करना… ऐसे छोटे-छोटे लक्षण भी हैं

जन्म के कुछ महीने बाद शिशु आंखें नहीं मिलाता या आवाज देने पर भी आंखों से प्रतिक्रिया नहीं देता है तो उसे डॉक्टर को दिखाएं। एक ही शब्द को बार-बार बोलना, बड़बड़ाना, तीन साल का होने पर भी हाथ के बल चलना, अपनी आयु के दूसरे बच्चों से दूरी बनाना, किसी काम को मना करने पर गुस्सा होना, किसी अंग को खुजाना, खुद को चोट पहुंचाना, तोड़फोड़ करना ये भी ऑटिज्म के लक्षण हैं। ऐसे बच्चों को तिरस्कार की नहीं, बल्कि ज्यादा प्यार की जरूरत होती है।

-मेखला श्रीवास्तव, चाइल्ड काउंसलर

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