अवध IAS नहीं बने तो मां ने घर से निकाला …?

अवध IAS नहीं बने तो मां ने घर से निकाला:दोस्त ने 100 रुपए तक नहीं दिए, बारटेंडर बनना पड़ा; अब ओझा सर हजारों स्टूडेंट्स को UPSC करा रहे क्रैक

मैंने भी गुस्से में कहा, आप भगवान तो हैं नहीं। मां ने कहा, मैं भगवान नहीं हूं तो निकल जाओ घर से…। साल 2000 से 2007 तक, 7 साल घर से बाहर रहा। जिंदगी की असल सीख इस दौरान मिली। एक दोस्त से 100 रुपए मांगे तो नहीं दिए।

UPSC की तैयारी करने वाले करोड़ो छात्रों के चहेते टीचर अवध ओझा ये बात क्लासरूम में अपने लेक्चर के दौरान नहीं, हमसे बातचीत में कह रहे हैं। सोशल मीडिया पर इनके कई वीडियो क्लिप काफी वायरल हैं। अब अवध प्रताप ओझा, ओझा सर के नाम से मशहूर हैं।

अभी वो 1,000 से अधिक UPSC की तैयारी करने वाले छात्रों को ऑनलाइन-ऑफलाइन माध्यम से पढ़ा रहे हैं। अवध अपनी 22 साल की जर्नी में कई उतार-चढ़ाव और संघर्ष के बाद यहां तक पहुंचे हैं।

अवध ओझा के जीवन से जुड़े कई अनकहे किस्से हैं। हमने उनसे खास बातचीत की। चलिए पढ़ते हैं…

अवध ओझा यूपी के गोंडा के रहने वाले हैं। 1992 में वो इलाहाबाद आ गए थे। यहां उन्होंने कई साल UPSC की तैयारी की, लेकिन वो क्रैक नहीं कर पाए।
अवध ओझा यूपी के गोंडा के रहने वाले हैं। 1992 में वो इलाहाबाद आ गए थे। यहां उन्होंने कई साल UPSC की तैयारी की, लेकिन वो क्रैक नहीं कर पाए।

अवध कहते हैं, “जन्म यूपी के गोंडा जिले में हुआ। पिता पोस्ट ऑफिस में थे। एवरेज स्टूडेंट था। पढ़ाई में इंट्रेस्ट नहीं था। हालांकि, इलाहाबाद आना जीवन का सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट था।”

वो इसके पीछे का एक दिलचस्प किस्सा बताते हैं। कहते हैं, “गोंडा से बहराइच पढ़ने के लिए गया था। एक साल रहा, लेकिन उसी दौरान कुछ घटनाएं घटी, जिसके बाद इलाहाबाद आना पड़ा। एक दोस्त ने गलती से इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के दो फॉर्म ले आएं थे। मैंने एक फॉर्म भर दिया।

एंट्रेंस टेस्ट में शामिल हुआ तो मेरे आगे बैठे लड़के ने सारे सवालों के जवाब बता दिए। एडमिशन हो गया। यहां कई अच्छे टीचर्स से मुलाकात हुई। मैंने भी थोड़ा-बहुत पढ़ना शुरू कर दिया।”

अवध को माता-पिता मेडिकल की तैयारी करवाना चाहते थे, लेकिन उनकी दिलचस्पी नहीं थी। वो कहते हैं, “समाज में एक अलग हवा चलती है। यदि कोई मेडिकल की तैयारी कर रहा है तो उस गांव के सारे पेरेंट्स चाहते हैं कि उनका बच्चा भी मेडिकल की ही तैयारी करे। मेरे साथ भी यही हुआ।”

अवध ओझा कहते हैं, “शुरुआती जीवन ‘अंगुलिमाल’ जैसा था। शराब-सिगरेट की लत थी, लेकिन अच्छे लोगों की संगत ने सब कुछ बदल दिया। योग-ध्यान की तरफ झुकाव होने लगा।”

दरअसल, अंगुलिमाल बौद्ध काल में एक दुर्दांत डाकू था जो श्रावस्ती के जंगलों में राहगीरों को मार देता था और उनकी उंगलियों की माला बनाकर पहनता था। बाद में भगवान बुद्ध के शरण में जाने पर अंगुलिमाल संत बन गया।

अपनी आदत सुधारने के पीछे अवध ओझा एक और दिलचस्प कहानी बताते हैं। कहते हैं, “एक बार ट्यूशन टीचर ने पूछा- किसी के पास माचिस है। मैंने निकाल कर दी। उन्होंने पूछा- माचिस लेकर घूमते हो? मैंने कहा- हां, मां ने मंगवाया था। उन्होंने सुनते ही दो-तीन थप्पड़ जड़ दिए। दरअसल, मेरी झूठ पकड़ी गई थी। माचिस खुली थी, आधा खाली था।”

अवध ओझा जब इलाहाबाद आए थे और ग्रेजुएशन में थे तो उन्हें ना तो UPSC के बारे में कुछ भी पता था और ना ही वो इसकी तैयारी करना चाह रहे थे, लेकिन उनके साथ रहने वाले सभी लोग UPSC की तैयारी कर रहे थे।

वो बताते हैं, “मैं भी तैयारी करने लगा। सभी अटैंप्ट दिए, लेकिन नहीं क्रैक कर पाया। दरअसल, मेरा बेसिक बिल्कुल कमजोर था। फोर्स, पावर और एनर्जी के बीच का डिफरेंस तक नहीं पता था। इसलिए, आज मैं स्टूडेंट्स को सबसे पहले बोलता हूं कि वो अपना बेसिक क्लियर करें, फिर तैयारी शुरू करें। यदि बेसिक क्लियर नहीं होगा तो वो कहीं भी कोचिंग कर लें, UPSC क्रैक करना मुश्किल है।”

जब अवध ओझा UPSC क्रैक नहीं कर पाए, तो उन्होंने ठान लिया कि अब नौकरी नहीं करनी है। वो कहते हैं, जिंदगी में बस एक ही नौकरी करनी थी जो मिली नहीं, तो उसके बाद कभी नौकरी नहीं की।

जब अवध ओझा ने 2005 में दिल्ली में UPSC की कोचिंग खोली थी तो उनके पास पैसे नहीं थे। वो रात में बारटेंडर की नौकरी करते थे।
जब अवध ओझा ने 2005 में दिल्ली में UPSC की कोचिंग खोली थी तो उनके पास पैसे नहीं थे। वो रात में बारटेंडर की नौकरी करते थे।

UPSC कोचिंग की शुरुआत कैसे की? इस सवाल पर अवध ओझा कहते हैं, “घर से निकाला जा चुका था। एक कोचिंग में हिस्ट्री पढ़ाने के लिए कहा गया। पहले 10 दिन तो कुछ समझ में ही नहीं आया कि कैसे पढ़ाऊं, क्या पढ़ाऊं? वापस भी नहीं जा सकता था, लोग हंसते! मैंने पढ़ना शुरू किया और यहां से पढ़ाने की जर्नी शुरू होती है।”

अवध एक और कहानी बताते हैं, “इलाहाबाद में एक कोचिंग में हिस्ट्री के टीचर छोड़कर चले गए थे। मुझसे पढ़ाने के लिए कहा गया। डर था कि पढ़ाने जाऊंगा तो सारे बच्चे भाग जाएंगे। हालांकि, बच्चों को मेरे पढ़ाने का तरीका पसंद आने लगा।

साल 2005 में अवध इलाहाबाद से दिल्ली आ गए थे। मुखर्जी नगर में UPSC की कोचिंग खोली।

वो बताते हैं, “पैसे का कोई सोर्स नहीं था। तंगी थी, मकान-कोचिंग का किराया देने तक के पैसे नहीं थे। उसी दौरान शादी भी हो गई। 7 महीने रात के 8 बजे से 2 बजे तक बारटेंडर की जॉब करता था और दिन में पढ़ाता था। यहां से फिर धीरे-धीरे पहचान मिलने लगी।

2019 में अवध ओझा ने पुणे में IQRA कोचिंग की शुरुआत की थी। अभी वो 1,000 से ज्यादा बच्चों को UPSC की तैयारी करा रहे हैं।
2019 में अवध ओझा ने पुणे में IQRA कोचिंग की शुरुआत की थी। अभी वो 1,000 से ज्यादा बच्चों को UPSC की तैयारी करा रहे हैं।

2019 में अवध ओझा ने पुणे में IQRA कोचिंग की शुरुआत की थी। वो इसके पीछे की कहानी बताते हैं। कहते हैं, “मेरा एक स्टूडेंट दुबई में नौकरी करता था। अचानक उसे साल 2016-17 में IAS बनने की ललक जगी। नौकरी छोड़कर वापस आ गया। पहले अटैंप्ट में UPSC नहीं निकला तो मैंने उसे IAS कोचिंग खोलने की सलाह दी। पुणे स्टडी का हब है।”

पहले साल इस कोचिंग में अवध ने सिर्फ एक बच्चे को पढ़ाए थे। हंसते हुए वो कहते हैं, छात्र का नाम भी ‘सद्दाम हुसैन’ था। एक ही बच्चे ने एडमिशन लिया। अभी 1000 से ज्यादा बच्चे तैयारी कर रहे हैं।

अवध हर साल 20 बच्चों को इस शर्त पर फ्री में पढ़ाते हैं कि सिलेक्शन होने के बाद छात्र पैसा देंगे। इसकी एक चयन प्रक्रिया होती है।

ओझा कहते हैं, कई बच्चे ऐसे आते हैं जिनके पास खाने तक के पैसे नहीं होते हैं। कोई ATM में गार्ड की नौकरी करके पैसा जुटाता है तो कोई किसी मॉल-स्टोर में काम करके। कई होनहार बच्चे पैसे के अभाव में पीछे रह जाते हैं। आज भी मलाल है कि मैं IAS नहीं बन पाया, क्योंकि मुझे उस वक्त कोई रास्ता दिखाने वाला नहीं था।

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