मुजफ्फरनगर दंगे की रेप पीड़िता के संघर्ष …?

मुजफ्फरनगर दंगे की रेप पीड़िता के संघर्ष की कहानी

10 साल लड़ी, तब दोषियों को सजा दिला पाई ….

मुजफ्फरनगर दंगे, साल 2013…40 मौतें, 200 से ज्यादा लोग घायल। कई लोग बेघर हुए। 7 महिलाओं से गैंगरेप का आरोप। इन आंकड़ों से उस वक्त के भयावह हालात को समझा जा सकता है। इन दंगों के 10 साल हो चुके हैं। प्रभावित लोग नई शुरुआत कर चुके हैं। मगर, 7 महिलाएं हैं, जो दंगों में मिले जख्म का दर्द भूल नहीं पाई हैं। इनमें से 6 महिलाएं अभी इंसाफ की लड़ाई लड़ रही हैं। जबकि हाल ही में एक रेप पीड़िता सलमा (बदला हुआ) को इंसाफ मिला है।

कोर्ट ने दो आरोपियों को 20 साल की सजा सुनाई है। आरोपियों ने सलमा के साथ उसके 3 महीने के बच्चे के सामने रेप किया था। सलमा ने जब आरोपियों का विरोध किया, तो उन लोगों ने उसके बच्चे की गर्दन पर चाकू रख दिया। सलमा बताती है, ”बच्चे की जान बचाने के लिए वह शांत हो गई थी। उसके बाद 3 लोगों ने उसके साथ रेप किया।”

सलमा ने हमें बताया कि कैसे 10 सालों से संघर्ष करके वह अपने दोषियों को सजा दिला पाई हैं। इस बीच उन्हें अपने बच्चों से झूठ बोलना पड़ा। आरोपी पक्ष के वकील के भद्दे सवालों का जवाब देने पड़े। लेकिन, उसके बाद भी वह हारी नहीं बल्कि…लड़ती रहीं। और आखिरकार मुझे इंसाफ मिला।

तब पूरा मुजफ्फरनगर नफरत की आग में जल रहा था
मुजफ्फरनगर के कवाल गांव में जाट और मुस्लिम समुदाय के बीच 27 अगस्त, 2013 को झड़प हो गई थी। कवाल गांव में कथित तौर पर एक जाट समुदाय की लड़की के साथ एक मुस्लिम युवक ने छेड़खानी का आरोप लगा। इसके बाद इस मामले में राजनीति शुरू हो गई। 7 सितंबर को महापंचायत से लौट रहे किसानों पर जौली नहर के पास हमला हुआ था। इसके बाद से पूरे मुजफ्फरनगर में दंगे शुरू हो गए।

 रेप पीड़िता सलमा की कहानी…

7 सितंबर को पूरे मुजफ्फरनगर में दंगे शुरू हो गए थे। मेरे पति दंगे से 2 दिन पहले ही मेरे बड़े बेटे को लेकर शामली गए थे। मेरे बड़े बेटे की तबीयत बहुत खराब थी। मैं अपने 3 महीने के बेटे के साथ घर पर अकेले थी। गांव के लोग दंगे के बारे में बात कर रहे थे। उनकी बातें सुनकर मैंने अपने को घर के अंदर बंद कर लिया था। सोचा था कि अब पति के आने के बाद ही घर से निकलूंगी। मुझे लगा था कि उपद्रवी कौन-सा उनके गांव तक आ पाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ…।

8 सितंबर की सुबह मेरी आंख गांव में हो रहे शोर से खुली। बाहर निकल कर देखा, तो गांव के लोग अपना सामान बांधकर उधर-इधर भाग रहे थे। मैंने एक अप्पी को रोककर पूछा तो उन्होंने बताया, सभी गांवों को खाली करने के लिए बोला गया है। कभी भी हमारे गांव में उपद्रवी आ सकते हैं। हम लोग अपने घरों के अंदर भी सेफ नहीं हैं, तू भी भाग जा सलमा, क्या पता मार दी जाए।

अप्पी की बात सुनकर मैं डर गई। उधर, मुझे पति की चिंता खाए जा रही थी। इधर, अपने मासूम बेटे को देखकर रोना आ रहा था। किसी तरह से हिम्मत करके मैंने घर से कुछ जरूरी सामान पैक किया। बेटे को पीठ पर बांधा और सामान को सिर पर रखकर घर से निकल गई। धूप में चलने से मुझे चक्कर आ रहे थे। एक जगह रुक कर मैंने अपने बेटे को दूध पिलाया। फिर खुद पानी पीया। कुछ देर रुकने के बाद मैं फिर चलने लगी।

उन लोगों के हाथ में चाकू, पिस्टल और एक नुकीला हथियार था”
मैं पहली बार घर से इतनी दूर अकेले आई थी। मुझे रास्ते भी पता नहीं थे। फिर भी मैं अपनी समझ से आगे बढ़ती रही। कुछ दूर चलने पर मुझे एक स्कूल दिखाई दिया। उस स्कूल के बगल से एक पक्की रोड जाती दिख रही थी। मैं ये देखकर बहुत खुश हो गई। मुझे लगा मैं अब गांव से बाहर निकल जाऊंगी। कुछ देर मैं वहीं स्कूल में जाकर बैठ गई। मन में बार-बार पति का ख्याल आ रहा था। अल्लाह से उनकी सलामती की दुआ मांग रही थी।

मैं आंखें बंद करके बैठी हुई थी। तभी मुझे कुछ आहट सुनाई दी। मैंने देखा सामने मेरे पति के जानने वाले कुलदीप, महेश और सिकंदर खड़े थे। मुझे लगा ये लोग मेरी मदद करेंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। उनमें से 2 ने मुझे कस कर पकड़ लिया और एक ने मेरे बच्चे को मेरी गोद से छीन लिया। उन लोगों के हाथ में चाकू, पिस्टल और एक नुकीला हथियार था। वो लोग मुझे खींचते हुए एक खेत में ले गए। मैं उनसे खुद को छोड़ने के लिए बोलती रही, लेकिन वो नहीं माने।

“वो लोग मुझे उधर-इधर छूने लगे”
मेरे पति टेलर हैं। वो लोग भी मेरे पति की दुकान पर कपड़े सिलवाने आते थे। उसके बाद भी उनको शर्म नहीं आई। वो लोग मुझे उधर-इधर छूने लगे, मैंने विरोध किया तो उन्होंने बेटे की गर्दन पर चाकू रख दिया। वो लोग मुझसे बोले, शांत हो जा नहीं तो तेरा बेटा अभी जान से जाएगा। उसके बाद मैं बेटे का मुंह देखकर चुप हो गई। मैंने अपना चेहरा अपने बेटे की ओर घुमा लिया। उन तीनों ने मेरे साथ रेप किया।

कुछ देर बाद वो लोग वहां से चले गए। खुद को हिम्मत देते हुए मैं उठी। अपने बच्चे को गोद में उठाया। किसी तरह से स्कूल पहुंची। वहां पर सामान से पानी निकालकर बेटे को पिलाया। फिर उसी रोड से शहर की ओर चल दी।

“रास्ते भर मेरी आंखों से आंसू निकलते रहे”
कुछ दूरी पर मुझे एक ऑटो वाला मिला। उसमें कुछ लोग बैठे थे। उन्होंने मुझसे कहा, हम लोग कैंप जा रहे हैं। आप भी हम लोगों के साथ चलो। यहां आपकी जान को खतरा है। उनकी बात सुनकर मैं ऑटो मैं बैठ गई। रास्ते भर मेरी आंखों से आंसू निकलते रहे। समझ नहीं आ रहा था आगे क्या करना है। ये सोचते कैंप आ गया। हम सभी लोग वहां उतर गए।

कैंप में मुझे पति के चाचा-चाची मिले, लेकिन मैंने उनसे एक शब्द नहीं बोला। उन लोगों ने पति के बारे में पूछा तो बता दिया कि वो शामली में हैं। हम लोगों को उसी कैंप में रुकने के लिए बोला गया था। हमें वहीं पर खाने का सामान मिल जाता था। उसी कैंप में 4 दिन बाद मेरे पति भी आ गए। उनके देखकर मैं रोने लगी। उन्होंने मुझसे पूछा तो तब मैंने बोल दिया कि आपको देखकर रोना आ गया।

“वो घटना मैं भूल नहीं पा रही थी”
मैंने उनसे पूछा, आप इतने दिन से कहां थे? तब उन्होंने हमें बताया कि मैं तुम्हारे घर चला गया था। बड़े बेटे की हालत में भी कुछ सुधार हो गया था। दंगे की बात सुनकर वहीं रुक गया था। तुमसे बात करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन किसी को फोन ही नहीं मिल रहा था। तभी बस पकड़कर यहां आ गया। मेरे पति के आने के बाद मुझे अच्छा तो लग रहा था, लेकिन वो घटना मैं भूल नहीं पा रही थी।

दंगा शांत होने के कुछ दिन बाद हम लोग अपने गांव लौटे, तो पूरा घर जला मिला। घर में रखा सारा सामान राख हो चुका था। दो कमरे का घर था मेरा, वो भी इन उपद्रवियों ने नहीं छोड़ा था। घर बाहर जो पेड़ लगा था, वो झुलस चुका था। पति की दुकान को उपद्रवी ने लूट कर आग के हवाले कर दिया था। अब तो इज्जत जाने के साथ-साथ घर भी छिन गया था। मेरा परिवार सड़क पर आ गया था।

पति बोले- क्या बात है जो तुम छिपा रही हो
हम लोग कुछ दिनों के लिए मेरे मायके चले गए थे। वहीं पर मेरे पति ने कुछ काम शुरू कर दिया। वहीं मैं घर पर रहती थी। सब ठीक था, लेकिन फिर एक दिन मेरे पति ने मुझे कसम देकर पूछा कि तुम इतना उदास क्यों रहती हो। क्या बात है जो तुम छिपा रही हो, मुझे बताओ।

पति की ये बात सुनकर मैं टूट गई। मैंने उनको उस दिन सब सच बता दिया। जिसके बाद मेरे पति ने मुझसे कहा, इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है। मैं तुम्हारे साथ हूं। हम दोनों मिलकर उन तीनों को सजा दिलाएंगे।

मेरे पति मुझे लेकर मुजफ्फरनगर पहुंचे। वहां उन्होंने उन तीनों के खिलाफ रेप का केस दर्ज करवाया। जब पुलिस इस मामले की छानबीन कर रही थी, तब तीनों आरोपी हम लोगों को धमकाते। केस वापस लेने का दबाव बनाते, लेकिन हम लोग डरे नहीं। लेकिन पुलिस की कुछ दिनों की जांच के बाद मामला शांत हो गया और केस ठंडे बस्ते में चला गया।

मुझे इस बात पर बहुत दुख हुआ, लेकिन फिर हम लोग भी शांत हो गए। कुछ दिन बाद मुझे पता चला कि मेरे साथ 6 और महिलाएं हैं, जिनके साथ रेप हुआ है। उनकी मदद कोई दिल्ली की महिला वकील कर रही है। मैं भी उन महिलाओं से बात करके उनके साथ दिल्ली गई।

वहां सुप्रीम कोर्ट में अर्जी देने के बाद मेरा केस यहां कोर्ट में शुरू हो गया। लगभग 6 महीने पर तीनों आरोपियों को भी जेल भेजा गया और कोर्ट में सुनवाई भी होती थी। मैं अपने पति के साथ कोर्ट आती थी।

वकीलों के सवाल सुनकर नजरें ऊपर नहीं उठती थीं, आंख से आंसू आ जाते थे
सलमा बताती हैं, आरोपी पक्ष के वकील जज के सामने मुझसे ऐसे बात करते थे, जैसे मैंने गुनाह किया हो। वो लोग अपने सवालों से मुझे चुप कराने की कोशिश करते थे। मुझसे पूछते थे, तुम्हें उन लोगों ने कैसे और कहां-कहां छुआ। किसने पहले रेप किया। तुम क्या कर रही थी। तुम चिल्लाई क्यों नहीं…वकीलों के ये सवाल सुनकर मुझे बहुत बुरा लगता था।

बेटे से अभी तक ये सच छुपाया, अल्लाह करे कभी उनको ये न पता चले
बेटों के मामले की जानकारी होने की बात पर सलमा बताती हैं, मेरे बेटे उस समय बहुत छोटे थे लेकिन अब वो समझदार हैं। पहले तो इस घटना के बारे में बस मेरे पति को पता था। लेकिन जब केस शुरू हुआ, तो मेरे रिश्तेदारों को पता चल गया। लेकिन हम लोगों ने ये बात आज तक अपने बेटों से छुपा कर रखी है। हम ये चाहते भी नहीं हैं कि उनको कभी सच पता चले। सुनवाई के दौरान भी हम उनसे झूठ बोलकर आते थे।

जिस जगह को अपने हाथों से सजाया, वो हमेशा के लिए छोड़ आए
सलमा बताती हैं, मेरी शादी को 15 साल हो चुके हैं। जिंदगी के 15 साल मैंने जिस घर में बिताए, जिस जगह को अपने हाथों से सजाया, उसको उजड़ा देखा तो मन बहुत दुखी हुआ। फिर जो मेरे साथ हुआ उसके बाद मन नहीं किया फिर से उस जगह जाने का। इसलिए अब हम लोग शामली में रह रहे हैं। यहां मेरे पति नौकरी करते हैं। मेरे बच्चे भी यहीं पढ़ते हैं। धीरे-धीरे मैं भी उस हादसे से बाहर आ रही हूं।

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