मंगेश यादव के एनकाउंटर ने यूपी एसटीएफ के दावे और योगी सरकार की मंशा पर सवाल

मंगेश यादव के एनकाउंटर ने यूपी एसटीएफ के दावे और योगी सरकार की मंशा पर सवाल

हाल के दिनों में यूपी में जितने भी एनकाउंटर हुए वे मीडिया रिपोर्ट्स के माध्यम से जनता के सामने आ चुके हैं. मार्च 2017 से लेकर अप्रैल 2023 तक यूपी पुलिस की ओर से 183 एनकाउंटर हुए. अगर ये संख्या 2024 के अगस्त महीने तक देखें तो ये आंकड़ा 207 हो जाता है. ये सच है कि योगी आदित्यनाथ के सीएम बनते ही एनकाउंटर की घटनाएं तेजी से बढ़ी, जबकि कई फेक एनकाउंटर के भी आरोप राज्य सरकार पर लगे. हाल में लखनऊ की घटना सामने आई, जिसमें बाइक पर सवार महिला पर पानी फेंका गया था.

यूपी में एनकाउंट और सियासत

इस घटना के बाद सीएम योगी आदित्यनाथ ने सदन में सिर्फ दो आरोपियों का नाम लिया था, जो कि मुस्लिम और यादव जाति से थे. जबकि उस मामले में कई आरोपी शामिल थे. उस समय सदन में सीएम योगी ने कहा थी की ऐसे आरोपियों पर वे बुलेट ट्रेन पर चढ़ाएंगे. इस बयान के अपने कई मायने दिख रहे हैं. 

दूसरी ओर, मंगेश यादव के एनकाउंटर की बात करें तो यूपी एसटीएफ के सीओ धर्मेश शाही पर भी सवाल उठ रहे हैं. धर्मेश शाही के अनुसार उन्होंने एनकाउंटर के समय बुलेट प्रूफ जैकेट और पूरे लाव-लश्कर के साथ किया था. लेकिन जो तस्वीरें सामने आई है, उसमें तो वो बिना बुलेट प्रुफ जैकेट के दिख रहे हैं. साथ ही वे हवाई चप्पल पर दिख रहे हैं. यानी कि उन्होंने जूते तक नहीं पहने हैं, इस कारण सवाल उठ रहे हैं कि वो भागकर कैसे एनकाउंटर किए होंगे. 

क्या है पूरा घटनाक्रम?

अगर पूरे घटनाक्रम पर नजर डालें तो यूपी एसटीएफ के अनुसार 28 अगस्त को सुल्तानपुर के भरतजी ज्वैलर्स में सवा 12 बजे दोपहर के आसपास दिनदहाड़े लूटकांड को अंजाम दिया जाता है. इस कांड में पुलिस कुल 11 लोगों को अभियुक्त बनाया जाता है. इस कांड का मुख्य आरोपी विपिन सिंह था, जो कि 4 सितंबर को कोर्ट में जाकर सरेंडर कर देता है. विपिन सिंह पर न सिर्फ यूपी में बल्कि गुजरात में भी चोरी, मारपीट हत्या आदि कुल मिलकार 36 मुकदमे दर्ज है. इस आरोप के मामले में मंगेश का मुकाबला नहीं था. सवाल ये उठ रहा है कि विपिन सिंह का एसटीएफ ने एनकाउंटर क्यों नहीं किया? वो कैसे पुलिस को चकमा देकर कोर्ट में सरेंडर करने में कामयाब रहा? 

दूसरी ओर इस कांड के तीन आरोपी सचिन सिंह, गोविंद सिंह और त्रिभुवन के साथ भी यूपी पुलिस की मुठभेड़ होती है. इसमें तीनों को एक-एक गोली कमर के नीचे लगती है और वे घायल होकर गिर जाते हैं. इसके बाद पुलिस इनको गिरफ्तार कर लेती है, जबकि मंगेश यादव से मुठभेड़ होता है तो उसमें मंगेश यादव को चार गोली लगती है. ये सारे गोली कमर से ऊपर लगती है. सवाल ये उठता है कि जब सचिन और अन्य की गिऱफ्तारी हो सकती है, तो मंगेश यादव की क्यों नहीं गिऱफ्तारी हो सकती थी? इसलिए सवाल यूपी एसटीएफ पर उठ रहे हैं. 

परिवार और STF का नहीं मेल 

यूपी STF और परिवार वाले दोनों के बयान कहीं से भी मेल नहीं खा रहे हैं. दोनों बयान में भारी अंतर है. मंगेश यादव का घर यूपी के सुल्तानपुर में स्थित है, जबकि परिवार की स्थिति भी कुछ खास ठीक नही हैं. मंगेश के परिवार के मुताबिक उसके पास कोई बाइक नहीं थी, जबकि यूपी एसटीएफ ने दावा किया कि उसके पास से 32 बोर की पिस्टल और 315 बोर का तमंचा और एक बाइक बरामद हुई. परिवार वालों का कहना है कि उनके घर में कोई बाइक नहीं है तो आखिरकार बाइक किसकी है, ये सवाल उठता है. 

28 अगस्त को लूटकांड होता है और यूपी एसटीएफ की टीम 2 सितंबर को देर रात करीब 2 बजे घर आती है और मंगेश को ये कहकर ले जाते है कि पूछताछ करने के बाद इसको छोड़ दिया जाएगा. सीधे 5 सितंबर की सुबह ये एनकाउंटर की घटना सामने आती है. मंगेश यादव की बहन के मुताबिक उसका भाई और वो स्कूल की फीस देने के लिए स्कूल गए थे, जब लूटकांड को अंजाम दिया गया था. आज का वक्त तो तकनीक का है, इससे साफतौर पर पता चल जाना चाहिए था कि ये व्यक्ति घटनाक्रम के समय कहां पर था. लेकिन यूपी पुलिस के पास कोई विशेष जानकारी नहीं है.  इसके लिए यूपी पुलिस को ठोस जवाब देना पड़ेगा. 

भाजपा से संबंध का आरोप 

मंगेश यादव एनकाउंटर के बाद विपक्ष ने ये आरोप लगाया है कि एसटीएफ के सीओ धर्मेश शाही है उनके भाजपा से संबंध है. शाही की पत्नी रितु शाही है, जो कि गोरखपुर भाजपा में महिला मोर्चा की सदस्य है. इसके साथ ही वो हाल में ही महिला आयोग की सदस्य भी बनाई गई है. इसलिए शाही पर अब आरोप लगने लगे हैं.  घटना के टाइमिंग पर भी ध्यान देने की जरूरत है, दो सितंबर को ही आयोध्या रेंज के आईजी ने मंगेश यादव पर 50 हजार का इनाम घोषित करते हैं, परिवार के मुताबिक उसी रात उसको घर से पुलिस उठाती है.

चार सितंबर को लखनऊ के एडीजी की ओर से इनाम की राशि एक लाख रूपये किया जाता है, उसके बाद पांच सितंबर को उसका एनकाउंटर हो जाता है. अचनाक से 2 दिनों के अंदर राशि बढ़ना और फिर एनकाउंटर ये सवाल खड़ा करते हैं, जिसका जवाब यूपी पुलिस को देना होगा. बाइक किसकी थी, किसके नाम पर रजिस्टर्ड थी, इसके भी जवाब पुलिस को देना होगा. 

परिवार तो यहां तक दावा कर रहा है कि मंगेश सात महीनों से गुजरात में था, हाल में ही वहां से घर आया था. उसके बाद ऐसी घटना हो जाती है. सवालों से बचने और स्थिति को देखते हुए सीएम योगी ने मजिस्टेट्रियल जांच के आदेश दे दिए हैं, विपक्ष तो ये भी सवाल उठा रहा है कि जिस एसडीएम को ये जांच दिया गया है, वो भी सीएम के स्वजातीय है. 

क्या है राजनीतिक मायने? 

मंगेश यादव एनकाउंट के बाद ही सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने ट्विट कर रहा कि ये फेक एनकाउंटर है.अखिलेश यादव ने अपने ट्वीट में ज्वैलर्स के दुकानदार के बयान को भी ट्वीट करते हैं. उसके अनुसार जो करीड डेढ़ करोड़ रुपये की लूटकांड हुआ, लेकिन  10 प्रतिशत तक की रिकवरी नहीं हो पाई. अखिलेश यादव ने यहां तक कहा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि पुलिस मुख्य आरोपी तक पहुंच ही नहीं पाई, इसलिए लूट का माल बरामद नहीं हुआ. 

इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा को काफी नुकसान हुआ है. लोकसभा के चुनाव में ज्यादातर यादव या अलग जातियां भाजपा की ओर जाति है. उनको हिंदुत्व का नारा लुभाता है, इसलिए मोदी को ध्यान में रखकर वोट करते हैं. विधानसभा में ये सपा और दूसरी पार्टियों की ओर चला जाता है. 2022 के विधानसभा में ये भाजपा की ओर चला गया था, जिससे सपा को ज्यादा नुकसान हुआ था. अब लोकसभा के चुनाव में सभी यादव और अन्य जातियों का साथ सपा को मिला है. इस कारण योगी के तल्ख थोड़ा गरम भी हुआ है. 

इससे पहले जब विकास दूबे का एनकाउंटर हुआ था उस वक्त भी सवाल उठे थे. उसके काफिले के साथ मीडिया के वाहन भी थे. अचनाक से मीडिया के वाहन को रोक दिया जाता है और फिर विकास दूबे की गाड़ी पलट जाती है औऱ फिर एनकाउंटर की खबरें सामने आती है. उसके बाद योगी से पूछा गया कि क्या भविष्य में गाड़िया पलटेगीं तो वो मुस्कुरा गए. इसलिए सवाल उठने लगते हैं. 

योगी के काल में एनकाउंटर ज्यादा 

योगी के कार्याकल में सबसे अधिक एनकाउंटर हुए हैं. इसमें सबसे ऊपर देखें तो मुस्लिम समुदाय के लोगों का हुआ है. मीडिया के आंकड़े के मुताबिक मार्च 2017 से अप्रैल 2023 तक कुल 183 एनकाउंटर हुए हैं, जिसमें से 61 मुस्लिम है. अब तो मुस्लिम के अलावा दूसरे जाति के लोग भी इसके जद में आने लगे हैं. ये स्थितियां तब है जब कि प्रदेश के दस सीटों पर उपचुनाव होना है. लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी की प्रतिष्ठा दाव पर लगी थी, लेकिन यहां तो सीएम योगी की प्रतिष्ठा दांव पर लगा हैं. 

अब यूपी मे सुरक्षा नाम के चीजों पर सवाल उठने लगे हैं. सड़क पर अगर कोई फोन से बात करता है तो उसके फोन छीन लेकर भाग जाते हैं. अब तो फिल्म सीटी से ही चोर बाइक चोरी कर ले जाते हैं, इसलिए पुलिस जहां काम करना चाहिए वहां पिछड़ रही है, और जो काम करती है वो सवालों के घेरे में आ जाता है. भले सीएम योगी कहें कि अपराधी अब डरने लगे है. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं.यह ज़रूरी नहीं है कि ….न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

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