US-UK समेत 60 देश AI के जरिए न्यूक्लियर हथियारों पर कंट्रोल करने की बना रहा है योजना!

युद्ध में AI का इस्तेमाल हो सकता है ‘परमाणु बम’ से भी ज्यादा भयानक
पिछले कुछ सालों में अमेरिका, चीन सहित कई देश सैन्य इस्तेमाल के लिए AI पर प्रयोग कर रहे हैं. बात यहां तक बढ़ी है कि अब AI के जरिए परमाणु हथियार कंट्रोल किए जाने का खतरा पैदा हो गया है.

आज के समय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI मानवीय जीवन का सबसे बड़ा साथी बनता जा रहा है. पर क्या हो अगर एआई का इस्तेमाल लोग एक दूसरे के खिलाफ विनाश को अंजाम देने के लिए करने लगें.  

कुछ समय पहले ही खबरें आईं थी कि इजरायल- गजा युद्ध के दौरान इजरायली रक्षा बलों (आईडीएफ) ने गाजा में हमास के खिलाफ ‘हबसोरा’ नाम की एआई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया था. इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल बमबारी, निशाना चुनने, हमास के चरमपंथियों के ठिकानों का पता लगाने और पहले से ही मृतकों की संभावित संख्या का अनुमान लगाने के लिए किया जाता है. 

सैन्य इस्तेमाल के लिए AI पर प्रयोग

पिछले कुछ सालों में अमेरिका, चीन सहित कई देश सैन्य इस्तेमाल के लिए AI पर प्रयोग कर रहे हैं. बात यहां तक बढ़ चुकी है कि अब AI के जरिए परमाणु हथियार कंट्रोल किए जाने का खतरा पैदा हो गया है. यही कारण है कि दुनियाभर की सेनाओं में जैसे-जैसे एआई का उपयोग बढ़ रहा है,  इस तकनीक के युद्ध में इस्तेमाल को नियंत्रित करने के लिए राजनीतिक प्रयास भी बढ़ रहे हैं. 

अगर यूक्रेन और गाज़ा में चल रही युद्ध स्थितियां “AI प्रयोगशालाएं” बन रही हैं, तो इसके साथ-साथ इस तकनीक के खतरों को सीमित करने के लिए कुछ सामान्य मानदंड स्थापित करने के लिए कूटनीतिक प्रयास भी हो रहे हैं.

युद्ध में AI के इस्तेमाल और उससे होने वाले खतरे को कम करने के प्रयासों में शामिल है REAIM शिखर सम्मेलन. 9 सितंबर 2024 को हुए इस सम्मेलन में दुनिया के 60 देश साउथ कोरिया में जमा हुए थे. इस सम्मेलन का लक्ष्य यह घोषित करना था कि परमाणु हथियारों का नियंत्रण इंसानों के हाथ में ही रहेगा, AI के नहीं.

इस समझौते में भारत समेत अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम (UK) जैसे कई बड़े देश भी शामिल हैं, हालांकि चीन ने खुद को इससे अलग रखा है. वहीं यूक्रेन के साथ चल रहे युद्ध के कारण सम्मेलन में रूस को शामिल नहीं किया गया. यानी दुनिया में परमाणु हथियारों का सबसे बड़ा जखीरा रखने वाले दो देश इस सोच से इत्तेफाक नहीं रखते कि परमाणु हथियारों का नियंत्रण इंसान के हाथ में होना चाहिये. इन दोनों देशों का शिखर सम्मेलन से दूर रहना न सिर्फ अमेरिका बल्कि अन्य पश्चिमी देशों के लिए भी सिरदर्द बढ़ाने वाली बात है.

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क्या है REAIM शिखर सम्मेलन 

REAIM एक शिखर सम्मेलन है जिसका पूरा नाम “रिस्पॉन्सिबल यूज ऑफ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इन द मिलिट्री डोमेन ” है. इसका उद्देश्य आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के सैन्य उपयोग को जिम्मेदार तरीके से करने के लिए वैश्विक मानदंड और दिशा-निर्देश स्थापित करना है.

REAIM सम्मेलन के अंतर्गत, विभिन्न देशों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों, तकनीकी कंपनियों, अकादमिक संस्थानों, और नागरिक समाज के प्रतिनिधि मिलकर इस बात पर चर्चा करते हैं कि AI को सैन्य क्षेत्र में कैसे जिम्मेदारी से और सुरक्षित तरीके से लागू किया जाए. यह शिखर सम्मेलन इस बार सियोल, दक्षिण कोरिया में 9 सितंबर को शुरू हो हुआ और इसकी मेजबानी केन्या, नीदरलैंड्स, सिंगापुर और यूनाइटेड किंगडम ने की है. 

बता दें कि यह शिखर सम्मेलन का दूसरा संस्करण है. पहला शिखर सम्मेलन फरवरी 2023 में द हेग में हुआ था, जिसकी मेजबानी नीदरलैंड्स सरकार ने की थी. हालांकि द हेग सम्मेलन में कोई बड़े परिणाम नहीं आए, लेकिन इसने AI के सैन्य उपयोग पर वैश्विक बहस को विस्तार दिया और कई नए पक्षधारकों को इस बहस में शामिल किया गया था. 

किन मुद्दों पर हुई सम्मेलन में बहस 

इस सम्मेलन में AI से जुड़े कई मामलों पर चर्चा हुई. इनमें से युद्ध के दौरान स्वायत्त हथियारों का इस्तेमाल भी शामिल है. AI की मदद से बनाए गए स्वायत्त हथियार प्रणालियां, जिन्हें अक्सर ‘किलर रोबोट्स’ कहा जाता है, एक बड़े खतरे का प्रतिनिधित्व करती हैं. ये प्रणालियां बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के लक्ष्य का निर्धारण कर उसपर हमला कर सकती हैं.

इसका मतलब है कि एक मशीन तय कर सकती है कि किसे मारना है और कब, बिना किसी मानवीय विचार या भावनाओं के. अगर ऐसी प्रणालियां गलती से या किसी तकनीकी त्रुटि के कारण गलत फैसले ले लेती हैं, तो यह बड़ी संख्या में नागरिकों की मौत का कारण बन सकती है. 

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‘ब्लूप्रिंट ऑफ एक्शन’ को मिली मंजूरी 

सियोल में हुए REAIM समिट में लगभग 100 देशों का न्योता दिया गया था, जिसमें से करीब 60 देश मौजूद रहें. इन देशों ने ‘ब्लूप्रिंट ऑफ एक्शन’ को मंजूरी दी. जिसके बाद घोषित किया गया कि ‘परमाणु हथियारों के इस्तेमाल से जुड़े सभी कार्यों के लिए मानवीय नियंत्रण और भागीदारी बनाए रखना जरूरी है’. यह घोषणा एक गैर-बाध्यकारी समझौता है.

पहले भी AI के इस्तेमाल पर आपत्ति दर्ज हो चुकी है 

साल 2023 के दिसंबर महीने में पहली बार संयुक्त राष्ट्र महासभा ने घातक स्वायत्त हथियार प्रणालियों (LAWS) पर चर्चा की थी . उस वक्त महासचिव से कहा गया कि वे सदस्य देशों के विचार एकत्र करें और स्वायत्त हथियारों से जुड़ी नैतिक, कानूनी, और परिचालनात्मक चुनौतियों को सुलझाने के संभावित तरीकों पर रिपोर्ट प्रस्तुत करें महासचिव की रिपोर्ट इस महीने के अंत में संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में पेश किए जाने की उम्मीद है. 

युद्ध में AI का इस्तेमाल क्यों खतरनाक, 5 प्वाइंट में समझिए 

गलत निर्णय लेने की संभावना: AI प्रणालियां बिना भावनाओं या नैतिकता के फैसले लेती हैं. अगर इनमें कोई गलती हो जाए या वे किसी असामान्य स्थिति का सही तरीके से अनुमान न लगा सकें, तो वे गलत निर्णय ले सकती हैं. इससे मासूम लोगों की जान को खतरा हो सकता है.

स्वायत्तता की कमी: AI के साथ स्वायत्त हथियार बिना मानवीय नियंत्रण के काम कर सकते हैं. जिसका मतलब है कि इंसान सीधे तौर पर निर्णय नहीं ले सकता कि किसे हमला किया जाए या नहीं, जिससे युद्ध के दौरान मानवीय फैसले और सुरक्षा की कमी हो सकती है.

ज्यादा तेजी से निर्णय: AI प्रणाली बहुत तेजी से फैसले ले सकती है, जिससे युद्ध की स्थिति बदल सकती है और तेजी से नुकसान हो सकता है. यह कभी-कभी स्थिति को और भी अनियंत्रित बना सकता है.

साइबर हमलों का खतरा: AI प्रणालियां साइबर हमलों के प्रति संवेदनशील हो सकती हैं. अगर कोई दुश्मन इन प्रणालियों को हैक कर ले, तो वे गलत आदेश दे सकते हैं या उन्हें नष्ट कर सकते हैं, जिससे सुरक्षा पर खतरा बढ़ सकता है.

भारत, और चीन जैसे अन्य देशों का सैन्य हथियारों में AI के उपयोग पर रुख 

REAIM शिखर सम्मेलनों के समानांतर प्रयास के रूप में, अमेरिका ने इस साल की शुरुआत में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में AI का जिम्मेदारी से इस्तेमाल करने पर एक प्रस्ताव पेश किया था, जिसे 123 देशों ने सर्वसम्मति से अपनाया. जबकि UN का प्रयास व्यापक उद्देश्यों पर केंद्रित है, REAIM प्रक्रिया अधिक बारीकियों पर चर्चा करने और सैन्य AI पर नए वैश्विक मानदंड विकसित करने के लिए एक व्यापक अंतरराष्ट्रीय गठबंधन बनाने पर ध्यान केंद्रित कर रही है. 

50 से ज्यादा देशों ने सैन्य क्षेत्र में AI के जिम्मेदार उपयोग पर अमेरिकी राजनीतिक घोषणा पत्र को समर्थन दिया है. अमेरिका ग्लोबल साउथ के अलग अलग देशों के साथ संपर्क कर रहा है ताकि उन्हें सूचित किया जा सके और नए AI पहल के लिए उनका समर्थन प्राप्त किया जा सके. भारत इस बहस में ‘देखो और प्रतीक्षा’ की स्थिति में है.

भारत मौजूदा मुद्दों और उनकी दीर्घकालिक महत्वता का अध्ययन कर रहा है, जबकि पूरी तरह से नए AI पहलों में शामिल होने से परहेज कर रहा है. भारत सतर्क रहते हुए इस बहस को देख तो रहा है लेकिन सक्रिय रूप से इसमें शामिल नहीं हो रहा है.

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