किसान आंदोलन में गांधी और चुनाव प्रचार में रथ की एंट्री, एक किताब जो ऐसे किस्सों का पिटारा है

द आर्किटेक्ट ऑफ द न्यू बीजेपी:किसान आंदोलन में गांधी और चुनाव प्रचार में रथ की एंट्री, एक किताब जो ऐसे किस्सों का पिटारा है
देश में राष्ट्रपति चुनाव बिल्कुल करीब हैं। बीजेपी का राष्ट्रपति उम्मीदवार कौन होगा, कयासों का बाजार गरम था। मंथन के बाद झारखंड की पूर्व गवर्नर द्रोपदी मुर्मु का नाम तय हुआ। सारे कयास ध्वस्त। पिछली बार भी ऐसा ही हुआ था, रामनाथ कोविंद का नाम किसी ने सोचा भी नहीं था। चौका देना पीएम नरेंद्र मोदी के काम का हिस्सा है।

उत्तराखंड में भला किसने सोचा था कि पुष्कर धामी सीएम होंगे। ये सब कुछ बेमकसद नहीं। मौजूदा पीएम नरेंद्र मोदी की सधी हुई रणनीति का हिस्सा है। संघ के एक सामान्य कार्यकर्ता से लेकर जिम्मेदार संगठनकर्ता और फिर बाद में बीजेपी में शामिल होने तक मोदी ने रणनीतिबद्ध तरीके से कई ऐसे काम किए और फैसले लिए जो विपक्षी ही नहीं बल्कि पार्टी के लोगों के लिए भी हैरान करने वाले थे।

पिछले 40 सालों में आखिर मोदी ऐसा क्या कर रहे थे जिसकी वजह से न सिर्फ संगठन बल्कि खुद के लिए सफलता का रास्ता साफ करते जा रहे थे? इन सब सवालों के रोचक किस्सों के जरिए जवाब देती एक किताब हाल ही में आई है जिसका नाम है द आर्किटेक्ट ऑफ द न्यू बीजेपी- हाऊ नरेंद्र मोदी ट्रांसफॉर्म्ड द पार्टी।

राष्ट्रपति के प्रेस सेक्रेटरी अजय सिंह ने इस किताब को लिखा है। हालांकि, किताब अभी औपचारिक रूप से रिलीज नहीं हुई है।

राजनीति में रथयात्रा की एंट्री
किताब खुलासा करती है कि यह मोदी ही थे जिन्हें भरोसा था कि गुजरात में भाजपा अकेले चुनाव लड़ेगी और जीतेगी भी। यह मोदी ही थे जिन्होंने गुजरात चुनाव में रथ यात्रा जैसा गैरपारंपरिक चुनाव के प्रचार का रास्ता अपनाया। और फिर इसी कॉन्सेप्ट पर सोमनाथ से अयोध्या के लिए आडवाणी का रथ सजा। मुरली मनोहर जोशी की एकता यात्रा कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर निकली। यात्रा के अंत में जब कश्मीर में आतंकवाद चरम पर था, तब लाल चौक पर झंडा फहराने का प्लान भी मोदी का ही था।

1984 मे किसान आंदोलन में गांधी और क्राउड फंडिंग की एंट्री
मोदी की रणनीतिक क्षमता से जुड़ा 1984 का एक किस्सा है। दरअसल 1984 में गुजरात में किसान बेहतर मुनाफे के लिए क्रॉस बार्डर ट्रेड की डिमांड कर रहे थे। राज्य सरकार झुकने को तैयार नहीं थी। अब क्या करें? उस वक्त परदे के पीछे से नरेंद्र मोदी ने इस आंदोलन की कमान संभाली।

2 अक्टूबर को अहमदाबाद में 1 लाख किसान इकट्ठे हुए। सरकार को संदेश दिया गया, गांधी ने नमक बनाकर सरकार के नियम तोड़े थे, किसान भी अपने हक के लिए सीमापार ट्रेड पर लगे बैन को तोड़ेंगे। गांधी की एंट्री, मोदी की रणनीति का हिस्सा थी। दरअसल, उस वक्त तक संघ पर गांधी की हत्या के आरोप का दाग बहुत गहरा था, लेकिन इस आंदोलन के बाद वह धुंधला पड़ने लगा।

उधर, आंदोलन पर गोलियां चलीं तो कई किसान मारे गए। मोदी ने आंदोलन को और बड़ा बनाने की सोची। उन्होंने आम लोगों से मृतकों के परिवारों को मदद करने के लिए अभियान शुरू किया। यह पहला वाकया था जब किसी आंदोलन के लिए देश में क्राउड फंडिंग हो रही थी।

किताब में मोदी के ‘राजनीतिक प्रयोगों’ का जिक्र
एक नहीं कई ऐसे मौकों में नरेंद्र मोदी के कुशल नेतृत्व की क्षमता ने सबको अपना लोहा मनवाया। उनका हर कदम बीजेपी और संघ को कई कदम आगे ले जा रहा था। चुनाव में पहली बार रथों का प्रयोग, किसान आंदोलन में गांधी का प्रयोग यह सब उनके कुशल रणनीतिकार और संगठनकर्ता की मिसाल है।

1987 में अहमदाबाद की जगन्नाथ रथ यात्रा को स्वयंभू यात्रा बना आस्थावानों या फिर लीक से हटकर स्लोगन गढ़कर वोटरों के दिल जीतना हो, मोदी किसी भी काम में मैक्रो से लेकर माइक्रो लेवल तक इन्वॉल्व रहे। 1990 के गुजरात चुनाव में ‘अब तो बस भाजपा’ स्लोगन भ्रस्टाचार से त्रस्त जनता की आवाज बन गया।

1987 में अहमदाबाद में हुए म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के चुनाव में मोदी एक माहिर संगठनकर्ता बनकर उभरे। किसी को इस बात का भरोसा नहीं था कि इतनी बड़ी जीत इन चुनावों में हो सकती है, लेकिन मोदी ने पार्टी को रीस्ट्रक्चर कर और बेहतरीन रणनीतिक के जरिए इन चुनावों में इतनी बड़ी जीत हासिल की जिसका अंदाजा पार्टी के किसी भी नेता को नहीं था।

किताब में कुख्यात गुजरात के गैंगस्टर अब्दुल लतीफ का भी जिक्र रोचक अंदाज में है। जेल में बंद लतीफ वार्ड चुनाव चुनाव लड़ रहा था, पिंजरे में बंद दहाड़ते शेर के प्रतीक के साथ। और उससे लोहा ले रहे थे मोदी और उनकी सेना।

किताब में दर्ज किस्से जहां एक ओर गांधी की हत्या के आरोप से दागदार हुई संघ की छवि को साफ करने तो दूसरी ओर भाजपा को परंपरागत खोल से बाहर लाकर एक नई भाजपा को गढ़ने के किस्सों का पिटारा है। किताब पेंगुइन पब्लिकेशन के बैनर तले प्रकाशित हुई है। इस किताब का फॉरवर्ड मशहूर लेखक और साउथ एशिया स्टडीज के पूर्व प्रमुख वाल्टर एंडरसन ने लिखा है।

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