डॉक्टरों की बाबूगीरी खत्म …? प्रशासनिक कार्य में लगे विशेषज्ञ डॉक्टर सिर्फ, मरीजों का इलाज करेंगे

मप्र में इस समय 1000 स्पेशिएलिटी डॉक्टरों की कमी, आदेश के बाद 100 से ज्यादा संख्या बढ़ेगी

  • स्वास्थ्य विभाग ने आदेश निकाला है कि ऐसे डॉक्टरों से कार्यालयों व स्वास्थ्य प्रोग्रामों का जिम्मा ले लिया जाए

दफ्तरी काम के साथ प्रशासनिक कार्य में लगे विशेषज्ञ डॉक्टरों और पीजी चिकित्सा अधिकारियों को अब मरीजों का इलाज करना होगा। स्वास्थ्य विभाग ने आदेश निकाला है कि ऐसे डॉक्टरों से कार्यालयों व स्वास्थ्य प्रोग्रामों का जिम्मा ले लिया जाए। मप्र में 1000 विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है।

सीएमएचओ व सिविल सर्जन को जारी आदेश के मुताबिक दफ्तरों में काम कर रहे और प्रशासकीय पदों का जिम्मा संभाल रहे विशेषज्ञ, प्रभारी विशेषज्ञ, पीजी चिकित्सा अधिकारियों को अस्पतालों में पदस्थ किया जाए। आदेश में लिखा है कि इन कार्यक्रमों का जिम्मा ऐसे नियमित चिकित्सा अधिकारियों को सौंपा जाए जो पब्लिक हेल्थ मैनेजमेंट का काम जानते हैं।

ग्वालियर के कारण निकला आदेश.. एक एमडी मेडिसिन लेप्रोसी ऑफिसर तो दूसरा ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) है

हाल ही स्वास्थ्य के अधिकारी ग्वालियर दौरे पर गए थे। वहां जिला अस्पताल पहुंचे तो एक ही एमडी मेडिसिन डॉक्टर काम कर रहा था। जानकारी ली गई तो पता चला कि एक एमडी मेडिसिन वहां लेप्रोसी ऑफिसर है और दूसरा एमडी मेडिसिन ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) प्रोग्राम देख रहे हैं। जिला अस्पातल में मरीजों की संख्या ज्यादा है। इसी के बाद उक्त आदेश निकला।

1000 लोगों पर एक डॉक्टर होना चाहिए, मप्र में 2000 पर एक

डब्ल्यूएचओ के पैरामीटर्स के अनुसार 2024 तक भारत में प्रति हजार की आबादी पर एक एलोपैथिक डॉक्टर होना चाहिए। मप्र में स्वास्थ्य विभाग, चिकित्सा विभाग के साथ ही प्राइवेट डॉक्टरों को जोड़ा जाए तो भी फिलहाल 2 हजार लोगों पर एक एलोपैथी डॉक्टर है।

स्वास्थ्य विभाग, नेशनल हेल्थ मिशन में सबसे ज्यादा बाबूगीरी

कार्यालयीन काम में लगे सबसे ज्यादा डॉक्टर स्वास्थ्य विभाग और नेशनल हेल्थ मिशन में हैं। यह संख्या 30 से 40 के बीच है। जिलों और संभागों में भी कई डॉक्टर बाबूगीरी में लगे हैं।

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