भाजपा ने अपनी गलती से खोया सिंगरौली …? ब्राह्मणों की नाराजगी को हल्के में लिया …
कांग्रेस को गुटबाजी ले डूबी; अब ‘आप’ का ‘रानी राज’
सियासी तौर पर देखें तो सिंगरौली में आप की जीत कांग्रेस की तुलना में बीजेपी के लिए बड़ा नुकसान है। इसकी वजह उम्मीदवार चयन में ब्राम्हणों की उपेक्षा। जिसका सीधा फायदा रानी अग्रवाल को मिला। वैसे तो रानी चुनाव लड़ने की इच्छुक नहीं थी। क्योंकि वे पिछले 2 महीने से बीमार थी। बीजेपी में चले टिकट युद्ध को भांप कर उन्होंने मैदान में उतरने का मन बनाया।
रानी अग्रवाल साल 2018 के विधानसभा चुनाव में सिंगरौली से विधायक का चुनाव भी लड़ी थीं और 32167 वोट हासिल किए थे। दूसरे स्थान पर रहीं कांग्रेस उम्मीदवार रेणु शाह को 32980 वोट मिले थे। हालांकि बीजेपी के उम्मीदवार रामलल्लू वैश्य 36706 वोट पाकर जीत दर्ज की थी।
रानी बैढ़न से बीजेपी से जिला पंचायत सदस्य थी। उन्होंने पार्टी से इस्तीफा देकर आम आदमी पार्टी का दामन थाम कर सबको चौका दिया था। तब उन्होंने आरोप लगाया था कि सिंगरौली में पार्टी चंद लोगों की गिरफ्त में है। उन्होंने कहा था कि उनकी चार पीढ़ियों ने BJP की सेवा की है, लेकिन उन्हें पार्टी से कोई बड़ी जवाबदारी नहीं मिली। आप की सदस्यता ग्रहण करने के बाद उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग का एलान किया था। उन्होंने कहा कि सीएम शिवराज सिंह की योजनाएं सिर्फ कागजों में चल रही हैं।
बीजेपी के लिए कांग्रेस नहीं, आप थी चुनौती
सिंगरौली में बीजेपी के लिए कांग्रेस के उम्मीदवार अरविन्द सिंह चंदेल चुनौती नहीं थे, क्योंकि कांग्रेस की गुटबाजी अभी भी कायम है। लेकिन रानी अग्रवाल बीजेपी के लिए चुनौती बनकर खड़ी हो गई । सोने पर सुहागा ये है कि ब्राह्मण और साहू बहुसंख्यक मतदाता चंद्रप्रताप विश्वकर्मा को टिकट देने से खासा नाराज था। ब्राह्मण नेताओं ने खुलकर रानी अग्रवाल का प्रचार किया। कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद कुन्दन पाण्डेय खुलकर रानी अग्रवाल के खेमे में पहुंच गए थे। महापौर के टिकट के दावेदार इंद्रेश पाण्डेय भी खुलकर आम आदमी पार्टी के साथ दिखाई दिए।
ऐसे समझें जातीय समीकरण
ब्राह्मण 37 हजार
साहू 35 हजार
दलित 17 हजार
आदिवासी 15 हजार
कुशवाहा 15 हजार
मुस्लिम 12 हजार
अन्य 12 हजार