बीजेपी ने गंवाए 4 नगर निगम …? ग्वालियर में सिंधिया पर संगठन हावी रहा, जबलपुर में कैंडिडेट चयन में गलती; सिंगरौली में ब्राह्मणों का गुस्सा ले डूबा
मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव के नतीजे लगभग आ चुके हैं। पहले चरण के 11 में से 7 नगर निगमों में बीजेपी का मेयर होगा, जबकि कांग्रेस को जबलपुर, ग्वालियर और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा में नगर सरकार बनाने में सफलता मिली है। ग्वालियर में कांग्रेस 57 साल बाद जीती। सबसे बड़ा उलटफेर सिंगरौली में हुआ, जहां आम आदमी पार्टी ने मप्र की सियासत में धमाकेदार एंट्री की है। बीजेपी-कांग्रेस के लिए 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले यह लिटमस टेस्ट है। हालांकि, अभी पिक्चर बाकी है, क्योंकि दूसरे चरण में 20 जुलाई को 5 नगर निगमों के रिजल्ट बाकी है।
इस चुनाव रिजल्ट को सियासी तौर पर देखें, तो बीजेपी को नुकसान और कांग्रेस को फायदा हुआ है, लेकिन भोपाल-इंदौर जैसे गढ़ को बचाने में बीजेपी सफल रही है। उज्जैन और बुरहानपुर में बीजेपी बाउंड्री पर आकर जीती है। वोट बैंक के लिहाज से देखें तो ये रिजल्ट बीजेपी के लिए अलार्मिंग है। क्योंकि 11 में से 6 निगमों में ही अध्यक्ष बीजेपी का बनेगा। यानी यहां जीतने वाले पार्षदों की संख्या बहुमत से कम है।
भोपाल में बीजेपी प्रत्याशी मालती राय को जिताने के लिए मंत्री विश्वास सारंग समेत बीजेपी विधायकों ने एकमत होकर गारंटी ली थी। इंदौर में राजनीति के मंझे खिलाड़ी और कांग्रेस विधायक संजय शुक्ला के धन-बल के सामने BJP ने नए चेहरे पुष्यमित्र भार्गव को उतारकर खेल पलट दिया।
जबलपुर में बीजेपी के डाॅ. जितेंद्र जामदार एक मात्र ऐसे महापौर उम्मीदवार हैं, जो गृह वार्ड से हार गए। उनकी उम्मीदवारी को लेकर पार्टी में स्थानीय स्तर पर नाराजगी थी, लेकिन संघ के करीबी होने के कारण खुलकर विरोध नहीं हुआ। यही वजह है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तीन रोड शो किए। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बूथ कार्यकर्ताओं की बैठक के अलावा युवा सम्मेलन भी किया था। बावजूद इसके बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा।
प्रेशर पॉलिटिक्स में सिंधिया हारे… तो कांग्रेस ने बना रही महापौर
ग्वालियर में महापौर की कुर्सी कांग्रेस ने बीजेपी से छीन रही है। यहां से कांग्रेस की शोभा सिकरवार ने बीजेपी की सुमन शर्मा को हराया है। कांग्रेस यहां 57 साल बाद जीती। सुमन को केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का समर्थक माना जाता है। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया चाहते थे कि पूर्व मंत्री माया सिंह को मैदान में उतारा जाए। यही वजह है कि कोर ग्रुप की 4 बैठकों के बाद अंतिम फैसले से पहले स्थानीय नेताओं को संतुष्ट करने का मौका दिया गया। बावजूद इसके स्थानीय नेता ब्राहम्ण उम्मीदवार के पक्ष में अड़े रहे। इससे साफ है कि सिंधिया की प्रेशर पॉलिटिक्स पर ग्वालियर का संगठन हावी रहा। सुमन को संगठन की पसंद बताकर उम्मीदवार बना दिया था।
राजनीति के जानकार मानते हैं कि ग्वालियर में कांग्रेस की जीत का असर अंचल में पड़ेगा। आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कड़ी मेहनत करना पड़ेगी। प्रदेश में एक मात्र सीट ग्वालियर थी, जहां उम्मीदवार के चयन को लेकर पार्टी के अंदर के झगड़े पब्लिक में आए। उम्मीदवार चयन को लेकर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ स्थानीय नेताओं की लंबी बैठक हुई थी, लेकिन निष्कर्ष नहीं निकल पाया था। क्योंकि सिंधिया का पक्ष कमजोर करने के लिए स्थानीय नेता ब्राह्मण उम्मीदवार को टिकट देने के लिए अड़ गए थे। हालांकि सिंधिया ने पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा की पत्नी शोभा मिश्रा का नाम प्रस्तावित कर नया दांव खेला था।
जबलपुर में 18 साल बाद फिर कांग्रेस का महापौर
कांग्रेस ने सबसे बड़ी जीत जबलपुर में हासिल की है। यहां कांग्रेस के जगत बहादुर सिंह अन्नू ने बीजेपी के डाॅ. जितेंद्र जामदार को 44 हजार से अधिक वोटों से हराया है। 18 साल बाद कांग्रेस यहां नगर सरकार बना रही है। खास है कि 11 नगर निगमों में एक मात्र जबलपुर है, जहां परिषद में अध्यक्ष भी कांग्रेस का होगा। यहां कुल 79 में 32 वार्डों में कांग्रेस के पार्षद जीते हैं। फ्लैश बैक में जाएं, तो यह स्थिति वर्ष 2000 में बनी थी, जब कांग्रेस के विश्वनाथ दुबे महापौर बने थे, लेकिन परिषद में बहुमत बीजेपी का ही था। इस बार कांग्रेस ने बीजेपी को पछाड़ दिया है।
राजनीति के जानकार मानते हैं कि 18 साल बाद पहली बार कांग्रेस एकजुट होकर चुनाव लड़ी, जबकि बीजेपी में उम्मीदवारों को लेकर उठापटक हुई। बीजेपी के कार्यकर्ता डाॅ. जितेंद्र जामदार को महापौर उम्मीदवार बनाए जाने से नाराज थे, लेकिन पार्टी ने उनकी मांग को अनसुना कर दिया। कांग्रेस से राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा ने कहा है कि नगर निगम में ही नहीं, जिला पंचायत और जनपदों में भी कांग्रेस ने बीजेपी को हराया है।
बुरहानपुर में बाउंड्री पर आकर जीती बीजेपी, परिषद में फंसेगा पेंच
बुरहानपुर में बीजेपी ने महापौर की कुर्सी पर कब्जा बरकरार रखा है। यहां बीजेपी की माधुरी पटेल कांग्रेस की शहनाज अंसारी को 588 वोटों हराकर महापौर बनी हैं। पटेल की जीत में ओवैसी की पार्टी AIMIM का अहम रोल रहा है। उसकी उम्मीदवार शाइस्ता हाशमी ने 10 हजार से ज्यादा वोट लेकर कांग्रेस को कुर्सी से दूर कर दिया, लेकिन नगर निगम की परिषद में अध्यक्ष को लेकर पेंच फंसेगा। यहां 48 वार्डों में से बीजेपी ने 24 व कांग्रेस ने 23 जीते हैं, जबकि एक पार्षद ओवैसी की एआईएमआईएम से बना है।
सिंगरौली- जातीय समीकरण से बीजेपी ने गंवाई कुर्सी
बीजेपी के गढ़ सिंगरौली में आम आदमी पार्टी की रानी अग्रवाल ने महापौर की कुर्सी पर कब्जा किया है। वजह बीजेपी के अंतर्कलह और जातीय समीकरण माना जा रहा है। सिंगरौली में सबसे ज्यादा वोटर 37 हजार ब्राह्मण हैं, लेकिन बीजेपी ने चंद्र प्रताप विश्वकर्मा पर दांव लगाया। इससे यह बड़ा वर्ग नाराज हो गया था। हालांकि ब्राह्मणों को मनाने पूर्व मंत्री राजेन्द्र शुक्ला ने घर-घर दस्तक दी थी। समाज की बैठकों में शामिल हुए। बावजूद इसके ब्राह्मणों का झुकाव आम आदमी पार्टी की तरफ था। बीजेपी की हार में आप उम्मीदवार रानी अग्रवाल का भी अहम रोल रहा। वे बीजेपी से इस्तीफा देकर आप पार्टी में शामिल हुई थी। उन्होंने सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए थे।