‘फूफाओं’ की अनदेखी BJP को पड़ी महंगी! …? बेचारे मंत्री के साथ फिर हो गया ‘खेला’; जब CM ऑफिस के दो अफसरों की बोलती बंद हो गई
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फूफा… शादी-ब्याह में इनकी खूब पूछ-परख होती है। हर बात के लिए पूछा जाता है, आगे रखा जाता है… और अगर ऐसा ना हो तो, ये नाराज होकर बखेड़ा भी खड़ा कर देते हैं। BJP को ऐसे ही फूफाओं की नाराजगी महंगी पड़ गई। मौका शादी का तो नहीं था, लेकिन राजनीतिक दलों के लिए चुनाव ही तो शादी है।
हुआ यूं कि नगरीय निकाय चुनाव की वोटिंग से पहले एक विधायक ने सत्ता और संगठन की एक संयुक्त बैठक में कहा था कि पूछ-परख नहीं होने से पुराने नेता चुनाव में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। एक विधायक ने तो यह तक कह दिया था कि फूफाओं को साधने में भी भलाई है, लेकिन पार्टी ने इस सलाह को अनसुना कर दिया। फिर क्या था, नतीजा सबके सामने है। 16 में से 7 नगर निगम में BJP के मेयर प्रत्याशी हार गए। अब पार्टी के विधायकों को यह कहते सुना जा रहा है कि पुराने नेताओं की उपेक्षा भारी पड़ गई।
मंत्री स्टाफ के सवाल और CM ऑफिस के अफसरों की बोलती बंद
किसी को कुछ कहना, सलाह देना आसान होता है, लेकिन जब बात खुद पर आती है तो बड़ी मुश्किल हो जाती है। CM हाउस के दो अफसरों को ऐसी ही मुश्किल का सामना करना पड़ा। दरअसल, हाल ही में मंत्री स्टाफ के लिए ट्रेनिंग सेशन आयोजित किया गया। इसमें CM ऑफिस के दो अफसर ट्रेनर बने। सुना है कि मंत्री स्टाफ ने ही उनकी क्लास ले ली। एक मंत्री के स्टाफ ने पूछा- प्रमुख सचिव-मुख्य सचिव को नोटशीट भेजी जाती है तो वह जवाब नहीं देते। उन्हें सलाह दी गई कि अब नोटशीट भेजते समय CM ऑफिस को CC (प्रतिलिपि) कर दें। इस पर एक अन्य मंत्री के स्टाफ ने तपाक से कहा- हम तो मुख्यमंत्री कार्यालय को CC में रखते हैं, वहां से भी कोई जवाब नहीं आता। फिर क्या था, बात जब खुद पर आई तो दोनों अफसरों की बोलती बंद हो गई।
CS की कुर्सी के लिए अफसर की कसरत
नेता हो या अफसर कुर्सी सबको प्यारी होती है। कुर्सी पाने के लिए हर तिकड़म भिड़ा देते हैं। एक बड़ा अधिकारी भी कुछ इसी जुगाड़ में लगा है। दरअसल, प्रदेश को जल्द ही नया प्रशासनिक मुखिया मिलेगा, वजह है- मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस का रिटायरमेंट। हालांकि, इसमें अभी 4 महीने बाकी है, लेकिन दावेदार अभी से लॉबिंग में जुट गए हैं।
एक अफसर को तो इतना भरोसा है कि उन्होंने अपने हाव-भाव ही बदल लिए हैं। ताकि इस कुर्सी पर बैठने के बाद कोई यह ना कहे कि वे बदले-बदले से नजर आ रहे हैं। सुना है कि सीनियर को पछाड़ कर इस कुर्सी पर बैठने के लिए प्रबल दावेदार ने सरकार, संगठन और संघ तक अपने घोड़े दौड़ाना शुरू कर दिए है। इसकी वजह एक अफसर ने बताई कि अब केवल ‘सरकार’ का खास होने से काम नहीं चलेगा। अगले साल चुनाव है। लिहाजा मुख्य सचिव कौन बनेगा? यह दिल्ली में तय होगा। बता दें कि यह वही अफसर है, जिसकी कमलनाथ सरकार में भी पकड़ मजबूत थी।
बेचारे मंत्री पूरी रात जागे, शाबाशी कोई और ले गया
मेहनत कोई करे…श्रेय कोई और ले जाए। कितना बुरा लगता है ना। बुंदेलखंड में एक मंत्री के साथ कुछ ऐसा ही हो गया। दरअसल, ये मंत्री महापौर उम्मीदवार चयन से नाराज थे। लिहाजा इन्होंने अपनी विधानसभा क्षेत्र में आने वाली नगर पालिका और नगर परिषदों पर ही फोकस रखा। जबकि एक जाति वर्ग में इनका बड़ा होल्ड है। यही वजह है कि वोटिंग के एक दिन पहले BJP संगठन महामंत्री के अलावा मुख्यमंत्री ने इनसे कहा कि जीत-हार अब आप पर निर्भर है। आप आज रात ही सामाजिक नेताओं से बात करें।
फिर क्या था मंत्री जी पूरी रात जागे, पूरी जमावट की। नतीजा BJP उम्मीदवार की जीत हुई, लेकिन सुना है कि उन्हें इस जीत का श्रेय नहीं मिला। जबकि, इनके राजनीतिक विरोधी को जीत के लिए शुभकामनाएं और तारीफ मिल रही हैं। इस मंत्री के साथ पहले भी विधानसभा उपचुनाव में ऐसा ‘खेला’ हो चुका है।
और अंत में…
दो IAS को मिलेगा ईनाम
नगरीय निकाय चुनाव के नतीजे आने के बाद प्रशासनिक गलियारे में दो IAS अफसरों को लेकर खुसुर-फुसुर चल रही है। माना जा रहा है कि दोनों अफसरों को ‘सरकार’ ईनाम देंगे। दरअसल, जिन जिलों की कमान इनके हाथों में है, वहां BJP जीती। जबकि ये माना जा रहा था कि दोनों जिलों में महापौर बनने के लिए कांटे का मुकाबला है। एक जिले में तो BJP की जीत एकतरफा रही, जबकि दूसरे जिले में BJP बॉउंड्री पर आकर जीती है। इसका राजनीतिक श्रेय सरकार और संगठन को दिया जा रहा है, लेकिन अफसर इसका क्रेडिट दोनों जिलों के कलेक्टर को दे रहे हैं। इस पर एक समकक्ष अफसर की टिप्पणी- बड़े जिले वाले कलेक्टर तो अपनी अलग कार्यप्रणाली से ‘सरकार’ को खुश रखते हैं। सुना है कि उन्हें जल्द ही होने वाली प्रशासनिक सर्जरी में बड़ा ओहदा मिलेगा। उनकी कुर्सी खाली होगी तो दूसरे को उनकी जगह मिलेगी।