पहले चरण में BJP के 9 मंत्रियों की परीक्षा … वेस्ट यूपी में इस बार राह हो सकती है कठिन, जानिए पूरा गणित
यूपी विधानसभा चुनाव में 3 दिन बाद होने वाले पहले चरण के मतदान में वेस्ट यूपी की 58 सीटों में भाजपा के 9 मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इन मंत्रियों को इस चुनावी प्रचार में भारी विरोध का भी सामना करना पड़ा है। किसान आंदोलन के बाद भाजपा के खिलाफ बगावती सुर और सपा-रालोद का गठबंधन इन मंत्रियों के लिए बड़ी चुनौती बन गया है। जातीय समीकरणों से लेकर क्षेत्र में जनता के साथ व्यवहार दोनों ही मुद्दों पर योगी के मंत्रियों की कड़ी परीक्षा है।
जनता इन मंत्रियों का विरोध कर उनके खिलाफ नाराजगी जता रही है। गठबंधन के कारण बदल रहे समीकरणों ने मंत्रियों के सामने चुनौती खड़ी कर दी है। इस बार मंत्री महोदय की जीत इतनी आसान नहीं है। पिछली दफा भाजपा की लहर में जीत आसान थी, उन्हीं सीटों पर इस बार चुनाव फंसा हुआ है।
2017 के चुनाव में पहले चरण की 58 सीटों पर ये हालात
वेस्ट यूपी के 11 जिलों (मेरठ, मुजफ्फरनगर, बागपत, हापुड़, बुलंदशहर, गाजियाबाद, गौतबुद्धनगर,मथुरा, आगरा, अलीगढ़) की 58 सीटों पर पहले चरण में 10 फरवरी को मतदान है। पिछले विधानसभा चुनाव में 58 में से 53 सीटों पर कमल खिला था। बसपा और समाजवादी पार्टी को दो-दो और राष्ट्रीय लोकदल को एक सीट मिली थी। इस बार सपा और आरएलडी गठबंधन में चुनाव लड़ रहे हैं।
पहले चरण में बीजेपी के नौ मंत्री सुरेश राणा, कपिल देव अग्रवाल, दिनेश खटीक, अतुल गर्ग, अनिल शर्मा, जीएस धर्मेश, श्रीकांत शर्मा,लक्ष्मी नारायण चौधरी और पूर्व सीएम कल्याण सिंह के पौत्र संदीप सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।
यूपी के इन 11 जिलों में 10 फरवरी को होगा मतदान
मुजफ्फरनगर, मेरठ, हापुड़, गौतम बुद्ध नगर (नोएडा), गाजियाबाद, बागपत, बुलंदशहर, मथुरा, अलीगढ़, आगरा, शामली
1. सुरेश राणा थानाभवन

उप्र सरकार के गन्ना मंत्री सुरेश राणा। शामली की थानाभवन सीट से भाजपा के प्रत्याशी हैं और सिटिंग एमएलए भी हैं। पिछले दिनों गन्ना मंत्री का शामली में ही ग्रामीणों ने घेराव कर विरोध प्रदर्शन किया। किसान आंदोलन की तपिश से जलते पश्चिमी यूपी में जब किसानों को संभालने की बात आई तो मंत्री जी लगभग फेल साबित रहे और आंदोलन चलता रहा। अंत में सरकार को बैकफुट पर आकर कृषि कानून वापस लेने पड़े तब किसानों ने आंदोलन वापस लिया। गन्ना बकाया का भुगतान हो या गन्ने के रेट बढ़ाने की बात दोनों बातों पर क्षेत्र के किसानों को सुरेश राणा से जो उम्मीदें थीं वो असंतुष्ट नजर आ रही हैं। सुरेश राणा के सामने गठबंधन से मुस्लिम उम्मीदवार अशरफ अली मैदान में हैं।
2. दिनेश खटीक हस्तिनापुर

उप्र सरकार में लगभग चार से पांच महीने पहले ही राज्यमंत्री बने दिनेश खटीक मेरठ की हस्तिनापुर सीट से सिटिंग एमएलए हैं और इस बार भी प्रत्याशी हैं। हस्तिनापुर रिजर्व सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। हस्तिनापुर सीट के लिए चलन हैं कि सीट पर कभी एक विधायक दो कार्यकाल लगातार रिपीट नहीं हुआ। इसलिए दिनेश खटीक की जीत पर अटकलें लगी हैं। उस पर सपा-रालोद गठबंधन से मजबूत चेहरा पूर्व विधायक योगेश वर्मा सामने हैं।
2017 में जो गुर्जर वोट दिनेश खटीक के साथ था उस वोट में इस बार बिखराव है क्योंकि गुर्जरों पर फर्जी मुकदमों और भ्रष्टाचार के कारण क्षेत्र के गुर्जरों में दिनेश खटीक का लगातार विरोध जारी है। पिछले दिनों गुर्जरों ने यहां दिनेश के खिलाफ लगातार विरोध प्रदर्शन किया और मार्च निकाले। सीएए, एनआरसी आंदोलन के बाद जेल गए योगेश वर्मा दलितों में बड़ा चेहरा बन चुके हैं।
योगेश की पत्नी सुनीता वर्मा भाजपा लहर में नगर निगम मेयर का चुनाव जीती। क्षेत्र का गुर्जर भी अंदरखाने योगेश के साथ होने की बात कह रहा है। भाजपा के पूर्व विधायक गोपाल काली ने भी सप्ताहभर पहले सपा का दामन थाम लिया है। भाजपा में एससी का बड़ा वोटबैंक गोपाल काली के कारण अब सपा को सपोर्ट करेगा। ऐसे में दिनेश खटीक की राह आसान नहीं है।
3. अतुल गर्ग गाजियाबाद

उप्र सरकार में स्वास्थ्य राज्यमंत्री अतुल गर्ग गाजियाबाद सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं, सिटिंग एमएलए भी हैं। कोरोना की वैक्सीन और स्वास्थ्य सेवाओं में बड़े बड़े दावे करने वाले अतुल गर्ग को जब दोबारा टिकट मिला तो क्षेत्र में काफी विरोध हुआ। पार्टी के ही कुछ नेताओं और जनता ने अतुल गर्ग के खिलाफ क्षेत्र में पर्चे बांटकर विरोध जताया। दूसरा कोरोना काल में मंत्री जी से जनता को शिकायत रही कि न वो घर से निकले न लोगों को अच्छा इलाज मुहैया करा सके केवल दावे करते रहे। इसके कारण क्षेत्र में विरोध हैं। सामने गठबंधन से विशाल वर्मा हैं मंत्री जी का चुनाव पूरी तरह फंसा हुआ है।
4. श्रीकांत शर्मा ऊर्जा मंत्री मथुरा

उप्र सरकार के श्रीकांत शर्मा मथुरा से सिटिंग एमएलए हैं और पुन: इस बार भाजपा के टिकट पर ही चुनाव लड़ रहे हैं। यूपी को इंवरटर फ्री बनाने का दावा करने वाली बात को जनता आज भी नकार रही है। यही कारण है कि श्रीकांत शर्मा जिन जिलों में गए वहां भाजपाइयों ने ही उनके सामने सबसे बड़ी समस्या बिजली कटौती की रखी।
मेरठ में भाजपा नेताओं ने एक बैठक में बिजली मंत्री से कहा था कि हमें आने वाले दिनों में चुनाव लड़ना है बिजली नहीं आई तो जनता वोट नहीं देगी। इसलिए बिजली मंत्री को चुनाव में जनता बिजली का झटका दे सकती है। इस सीट पर सपा ने सादाबाद के पूर्व विधायक देवेंद्र अग्रवाल को मैदान में उतारा है, तो बसपा ने भाजपा के बागी एसके शर्मा पर दांव लगाया है।
5. कपिलदेव अग्रवाल मुजफ्फरनगर

उप्र सरकार के कौशल विकास राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार कपिलदेव अग्रवाल मुजफ्फरनगर सीट से पिछली बार चुनाव जीते इस बार भी मैदान में हैं। दंगा वाले जिले मुजफ्फरनगर से चुनाव लड़ रहे कपिलदेव अग्रवाल ने पिछली बार सपा के प्रत्याशी को हराया था। इस बार यहां चुनावी पेंच फंसा हुआ है।
इस बार मंत्री के सामने सपा-रालोद गठबंधन का प्रत्याशी है। किसान आंदोलन का गढ़ रहे मुजफ्फरनगर में मंत्रीजी की राह 2017 की तरह आसान नहीं है। क्योंकि चुनाव में इस बार मुद्दा दंगा या पलायन नहीं बल्कि किसान आंदोलन है। 2014, 2017 और 2019 के चुनाव में दंगे ने भले भाजपा को जीत दिलाई हो इस बार किसान आंदोलन से बदली चुनावी हवा का रुख भाजपा को नुकसान दे सकता है।
6. लक्ष्मी नारायण सिंह छाता

उप्र सरकार के पशुधन एवं दुग्ध विकास मंत्री चौधरी लक्ष्मी नारायण छाता सीट से भाजपा के टिकट पर प्रत्याशी हैं। चौधरी लक्ष्मी नारायण चार बार के विधायक हैं। पांचवीं बार विधानसभा पहुंचने में उनका मुकाबला चिर-परिचित प्रतिद्वंद्वी रालोद के ठाकुर तेजपाल सिंह से है। इस बार चौधरी साहब की जीत फंसी आसान नहीं है। छुट्टा पशुओं के कारण जनता परेशान है जिसका जिक्र समय-समय पर होता रहा है। इसकी वजह से जनता परेशान है मंत्री के सामने कई बार इसका जिक्र भी किया है।
सामने रालोद के ठाकुर तेजपाल सिंह से मुकाबला करना होगा। इस विधानसभा क्षेत्र में ठाकुर और जाट मतदाता हैं। ऐसे में दोनों के बीच कांटे की टक्कर है। मंत्री चौधरी लक्ष्मी नारायण 1996 में कांग्रेस के टिकट पर छाता सीट से जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। 2017 के विधानसभा चुनाव में इसी सीट पर भाजपा के चौधरी लक्ष्मी नारायण चुनाव जीतकर विधायक बने, वह बसपा सरकार में मंत्री भी रहे हैं।
7. डॉ. जीएस धर्मेश आगरा

उप्र सरकार में समाज कल्याण राज्यमंत्री डॉ. जीएस धर्मेश हैं आगरा से उम्मीदवार। आगरा में डा. जीएस धर्मेश ने अपनी राजनीति की शुरुआत वार्ड के चुनाव से की थी। वे वर्ष 1989 में चुनाव वार्ड 37 से चुनाव लड़े थे। उस समय नगर महापालिका हुआ करती थी। उन्होंने रिकार्ड मतों से जीत दर्ज की थी।
1995 में भाजपा महानगर महामंत्री बने और दो कार्यकाल किए। इसके बाद महानगर सदस्यता प्रमुख और भाजपा अनुसूचित मोर्चा प्रदेश उपाध्यक्ष सहित कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में भी वे भाजपा के प्रत्याशी रहे थे, लेकिन उन्हें बसपा प्रत्याशी गुटियारी लाल दुबेश से हार का सामना करना पड़ा था। वर्ष 2017 में पार्टी ने उन पर पुन: दांव खेला और जीत दर्ज की। इसके बाद उन्हें सरकार में राज्यमंत्री भी बनाया गया।
8. संदीप सिंह अतरौली

पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत कल्याण सिंह के पौत्र व वित्त, प्राविधिक शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा संदीप सिंह अतरौली विधानसभा सीट से प्रत्याशी हैं। अलीगढ़ जिले की अतरौली विधानसभा सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह और उनके परिवार का दबदबा माना जाता है। 2017 के चुनाव में संदीप ने 50,000 से ज्यादा मतों से जीत दर्ज की थी।
संदीप सिंह एटा सांसद राजबीर सिंह के बेट हैं अब तक इस सीट पर कुल 11 बार कल्याण सिंह और उनके परिवार के सदस्य जीत दर्ज कर विधानसभा पहुंचे हैं। बाबूजी के निधन के बाद क्षेत्रवासियों की संवेदनाएं संदीप सिंह के लिए बढ़ी हैं मगर कार्यक्षेत्र के अनुसार देखें तो जनता पर इनका प्रभाव घटता दिखता है।
9. अनिल शर्मा, शिकारपुर

उप्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्री अनिल शर्मा बुलंदशहर की शिकारपुर सीट से भाजपा कैंडिडेट हैं 2017 का चुनाव भी जीते हैं। यह सीट भाजपा का गढ़ कही जाती है, लगाता पांच बार यहां भाजपा जीती है। 2017 के चुनाव में अनिल शर्मा विधायक निर्वाचित हुए थे और उन्होंने बसपा के मुकुल उपाध्याय को 50 हजार से अधिक वोटों से शिकस्त दी थी।