बच्चों के व्यवहार और आदतों से परेशान है हर चौथा पालक

 ‘बेहतर माता-पिता’ बनने की होड़ में ये दो-तीन नहीं बल्कि कई अभिभावक हैं। मनोचिकित्सकों की मानें तो हर चौथा अभिभावक बच्चों की वजह से अवसाद में है। इसकी वजह पढ़ाई से लेकर हर काम में सर्वश्रेष्ठ होने की होड़ से लेकर इकलौते बच्चे की जिद, व्यवहार और उनका अकेलापन सभी शामिल है। अपने इकलौते बच्चे से जरूरत से ज्यादा उम्मीद रखकर माता-पिता खुद डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं। बच्चों और रिश्तेदारों के सामने खुद को सर्वश्रेष्ठ साबित करने की होड़ में माता-पिता खुद को कहीं न कहीं खुशहाल जीवन से दूर करते जा रहे हैं। मनोचिकित्सकों के पास हर चौथा केस ऐसे अभिभावक का दर्ज हो रहा है जो बच्चों की हरकतों से परेशान होकर पहुंच रहे हैं। मेहरा दंपती सुबह से शाम तक नौकरी पर रहते हैं और आठ साल की बच्ची को आयाबाई संभालती है। दंपती के शाम को घर लौटने पर भी बच्चा उनसे न खेलता है न कुछ बात करता है। वे बड़े-बड़े गिफ्ट ले जाते हैं फिर भी आकर्षित नहीं कर पाते थे। अभिभावक बच्ची पर गुस्सा उतारने लगे जिससे उनके बीच दूरी और बढ़ गई।  पिता का बड़ा व्यवसाय है और मां शुरू से गृहिणी रही। पिता ने इकलौते बेटे की हर ख्वाहिश पूरी की जिससे उसे किसी बात में नहीं सुनने की आदत ही नहीं थी। स्कूल में पढ़ने तक तो बच्चा मां की हर बात मानता था लेकिन कॉलेज जाने पर उसने दोस्तों के साथ धूम्रपान शुरू कर दिया। मां के मना करने पर वह गुस्सा करने लगता। धीरे-धीरे आपस में बातचीत कम हो गई। बच्चे के बदलते व्यवहार का गुस्सा पति पर निकलने लगा।

करोड़पति दंपती ने अपनी इकलौती बेटी को शहर के सबसे बड़े स्कूल में प्रवेश दिलाया। वे सालभर में बेटी की पढ़ाई पर करीब ढाई लाख रुपए खर्च करते हैं पर उसका परीक्षा परिणाम बहुत औसत रहता है। बच्ची पर रोज-रोज पढ़ाई का दबाव बनाने से उसने स्कूल जाना छोड़ दिया। माता-पिता परेशान हो रहे हैं कि उसे पढ़ने के लिए कैसे तैयार करें? बच्ची कहती है कि उसे इतने बड़े स्कूल में नहीं बल्कि सामान्य स्कूल में जाना है पर माता-पिता इसे खुद की शान के खिलाफ समझते हैं।

चुनौतीपूर्ण है अच्छा अभिभावक बनना

इंदौर साइकेट्रिक सोसायटी के क्लिनिकल सेक्रेटरी डॉ. पवन राठी कहते हैं कि हमारे पास हफ्ते में एक केस किसी न किसी परिजन का होता है जो तनाव में रहते हैं। पहले की तरह अब बच्चों को पालना आसान नहीं रह गया है। आज अच्छे अभिभावक बनना चुनौतीपूर्ण है। क्योंकि बच्चों के पास सीखने के लिए बहुत से साधन हो चुके हैं। माता-पिता को बच्चों से उम्मीद रखनी चाहिए पर उनकी क्षमताओं को समझते हुए। दूसरों से तुलना करने में बच्चे मानसिक रूप से प्रताड़ित होते हैं जिससे वे माता-पिता से दूर होते हैं। बच्चों और अभिभावकों में भावनात्मक लगाव रहना बहुत जरूरी है।

बच्चों के सामने अपना आदर्श प्रस्तुत करना जरूरी

वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ.वीएस पाल कहते हैं कि बच्चों के सामने माता-पिता को अपना आदर्श प्रस्तुत करना बहुत जरूरी है। माता-पिता के व्यवहार का भी बच्चों पर बहुत असर पड़ता है। उनके आपसी तनाव से बच्चे परेशान होते हैं फिर जब बच्चे उनका सम्मान नहीं करते तो अभिभावक तनाव में जाने लगते हैं। हर चौथा अभिभावक अवसाद का शिकार है।

ये हैं परेशानी के कारण

– इकलौते बच्चों की जरूरत से ज्यादा जिद पूरी करना

– बच्चों को ‘न’ सुनने की आदत नहीं डालना

– माता-पिता दोनों के काम पर रहने से बच्चे और अभिभावक में भावनात्मक लगाव कम होना

– छोटा परिवार होने से अभिभावकों को ही सभी काम करने होते हैं जिससे बच्चे पर कम ध्यान देना

– मोबाइल-टीवी के कारण बच्चों को माता-पिता की जरूरत कम लगने लगी है

ऐसी चुनौतियों का भी सामना कर रहे अभिभावक

बेटी की खातिर सिंगापुर से नौकरी छोड़ इंदौर शिफ्ट हुए

डॉ. राठी ने बताया कि माता-पिता अपनी छह साल की बच्ची के लर्निंग डिसऑर्डर (शब्दों को उल्टा पढ़ना) की परेशानी के कारण सिंगापुर से नौकरी छोड़कर इंदौर में शिफ्ट हो गए। वहां बच्ची के साथ कोई खेलने और बात करने के लिए नहीं होने से वह काफी चिढ़चिढ़ी हो गई है। अभिभावक को लग रहा है कि विदेश में वे आर्थिक तौर पर तो संपन्ना हो रहे हैं पर बच्ची को अच्छा जीवन नहीं दे पा रहे। बेटी की खातिर उन्होंने इंदौर में ही कम संसाधन में अच्छी जिंदगी जीने का फैसला किया।

‘गोद लिया है’ पता चला तो 14 साल के बेटे ने बना ली दूरी

हाल ही में शहर में एक ऐसा मामला भी सामने आया कि 14 साल के बच्चे को उसे माता-पिता द्वारा गोद लेने की बात पता चली तो वह अवसाद में चला गया। बेटे को किसी रिश्तेदार से यह बात मालूम हो गई। इसके बाद से उसने माता-पिता से दूरी बना ली। वह काफी गुस्सैल हो गया। अभिभावक के बहुत समझाने पर भी नहीं समझा और उसका व्यवहार हिंसक हो गया। बेटे की ऐसी स्थिति से 50 वर्षीय दंपती अवसाद में चले गए। सभी की हालत बिगड़ने लगी। इन दिनों पूरे परिवार का इलाज जारी है।

ऐसा हो अभिभावकों का व्यवहार

– कोई बच्चा शांत, कोई मस्तीखोर तो कोई सामान्य होता है, स्वभाव के अनुसार उसके साथ व्यवहार करें

– जरूरत से ज्यादा प्यार भी न दिखाएं

– छोटी गलती पर हंगामा करने के बजाय पहले समझाए और सजा का स्तर धीरे-धीरे बढ़ाएं

– घर में नियम-कायदे बड़े-छोटे सभी के लिए एक जैसे बनाएं, सिर्फ बच्चों पर जोर जबरदस्ती न करें

– उम्र के अनुसार बच्चों के साथ तौर-तरीके बदलने होते हैं, थोड़ा बड़ा होने पर उन्हें अकेला भी छोड़ें

– अपनी इच्छा थोपने के बजाय बच्चों की भावना समझें, उन्हें भी सम्मान दें

– बच्चों को जीने की आजादी दें न कि हर जगह साथ-साथ रहें

– बच्चों की गतिविधि पर निगाह रखें लेकिन उन्हें निगरानीशुदा न रखें

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