हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि आसानी से मिला पैसा हमेशा एक जाल होता है
अगर मोबाइल पर विज्ञापन दिखे कि आप 20 हजार रुपए लोन के पात्र हैं और यह बिना किसी कागजात के चंद मिनटों में ही मोबाइल पर कुछ स्टेप्स फॉलो करने के बाद मिल जाएगा, तो आपमें से कुछ लोग खुशी से उछल पड़ेंगे। उन पैसों के इस्तेमाल के लिए आपको सिर्फ 400 रु. साप्ताहिक ब्याज देना होगा। जितना कम पैसा चाहें, उतना ले सकते हैं और उस हिसाब से ब्याज कम होगा।
लोगों को लगेगा कि इससे आसानी से मौजूदा हालातों से बाहर निकल आएंगे। और वे विज्ञापनदाता के कहे अनुसार मोबाइल पर उन स्टेप्स का पालन करते हैं। बावजूद इसके कि ऋणदाता ने ब्याज और भारी प्रक्रिया शुल्क पहले ही दिन काट लिया था और छठवें दिन ग्राहक को ताकीदगी भरा मैसेज आता है कि अगले दिन पैसा भर दें, पर ग्राहक को कभी अहसास नहीं होता कि उनके साथ धोखा हुआ है। उन्हें नहीं पता कि इस प्रक्रिया में विज्ञापनदाता ने पहले ही उसकी सारी संपर्क सूची-फोन का कंटेंट हथिया लिया है।
जब ग्राहक मूलधन चुकाने के लिए एक-दो दिन की मोहलत मांगता है, तब उन्हें कर्ज देने वाले का असली रूप दिखता है। ऋणदाता, जिसके पास कर्जदार के सारे रिश्तेदारों-मित्रों का नंबर पहले ही पहुंच चुका होता है, वो उन्हें इस लेनदेन के बारे में बता देता है और कुछ लोग तो मोबाइल में अवांछित तत्वों के साथ अपनी तस्वीरों को मॉर्फ करके उन्हें बदनाम करने की धमकी पर उतर आते हैं।
जाहिर है लोग इससे आत्महत्या जैसे कदम उठाने पर मजबूर हो जाते हैं और फिर भारतीय जांच एजेंसियां इसके पीछे मौजूद लोगों का पता लगाती हैं। ऐसे ही एक मामले की जांच में पुलिस ने पाया कि उनके राडार में 500 के लगभग एप्स के सर्वर चीन, मकाउ, हांगकांग में है और इसमें चीनी नागरिकों की भूमिका है। इन साइ्टस पर गुजरात आदि के पते फर्जी हैं। इत्तेफाकन कर्जदारों को धमकाने वाले कॉल सेंटर्स नेपाल में हैं।
दो महीने जांच के बाद अंतत: इस सप्ताह नेपाल पुलिस ने काठमांडू और रूपान्देही में छापेमारी की और पता चला कि ये सेंटर्स नेपाली नागरिकता से रजिस्टर्स थे, पर चीनी नागरिकों द्वारा संचालित हो रहे थे। जांच में उजागर हुआ कि कॉल सेंटर्स में हिदायत दी गई थी कि छोटा लोन चाह रहे कमजोर आय वर्ग के भारतीयों को निशाना बनाया जाए।
एक चीनी नागरिक हू युइहुआ (43), दो भारतीय मनोज सैनी (26) और नेहा गुप्ता (19) के साथ 33 नेपाली नागरिकों को 362 लैपटॉप्स और 748 डेस्कटॉप के साथ पकड़ा गया। पुलिस का दावा है कि उनके पास चीनी संबंध के ठोस सबूत हैं, जिन्होंने काफी पहले 2018 में यहां अपनी दुकान जमा ली थी और कोविड से पहले ठिकानों पर लौट गए थे।
जांच एजेंसियों से बचने के लिए आरोपी 10 से ज्यादा यूपीआई आईडी यूज करते थे और पैसे क्रिप्टो में बदलकर चीन भेज रहे थे। जून के आखिरी हफ्ते में पुलिस ने आंध्रप्रदेश के सुधाकर रेड्डी (25) का पता लगाया, जो उन्हें कर्नाटक में पांच और लोगों तक ले गया और फिर गुड़गांव, हरियाणा, मणिपुर, नैनीताल, मुंबई में लोगों का पता चला। कुछ चीनी नागरिकों के खिलाफ लुक आउट नोटिस जारी हुआ है।
फंडा यह है कि हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि आसानी से मिला पैसा हमेशा एक जाल होता है। जब भी कोई अपने आपको मसीहा बताने की कोशिश करे, तो जाल में फंसने से बचने के लिए खुद से पूछें कि वह क्यों ऐसा कर रहा है या कर रही है?