चार हफ्तों के लिए सोशल मीडिया छोड़कर देखिए, फिर देखिए आपके परिवार में आपस में कितना वक्त बचता है

हाल में मैं एक यूनिवर्सिटी कैम्पस के गेस्ट हाउस में ठहरा था। नई जगह होने से रात में दो बार मेरी नींद खुली। हर बार जब मैंने लड़कों के हॉस्टल की ओर खुलने वाली खिड़की का परदा हटाया, तो मुझे कुछ कमरों में भुतहा नीली रोशनियां इधर-उधर घूमती दिखींं। अगर आप मेरी उम्र के हैं और 1960 के दशक से वास्ता रखते हैं तो नीली रोशनी लिए घूमती परछाइयों को देखकर आपको ‘गुमनाम’ जैसी फिल्मों की याद आएगी।

जिसमें सफेद साड़ी पहने कोई स्त्री इस तरह का गाना गाती फिरती थी- ‘आज अगर तुम जिंदा हो तो, कल के लिए माला जपना, गुमनाम है कोई, बदनाम है कोई…’ पर अगले ही पल हम अपने इस विचित्र विचार पर मुस्करा बैठेंगे, क्योंकि हम जान जाएंगे कि यह नीली रोशनी मोबाइल फोन की है, जिसे चलाने वाला शख्स तकिए के नीचे छुपाकर सोशल मीडिया पर नॉन-स्टॉप स्क्रॉलिंग कर रहा है। आज सोशल मीडिया पर होना वैसा ही है, जैसा पुराने दिनों में स्मोकर होना था।

आपको मेरा यकीन नहीं तो गूगल से ऊपर बताए गाने की क्लिप दिखाने के लिए कहें। आप देखेंगे कि हीरो मनोज कुमार से लेकर विलेन प्राण तक सभी पुरुष स्मोकिंग कर रहे हैं। सबको पता था कि स्मोकिंग बुरी है, पर वो उससे बाज नहीं आते थे। यही हालत आज भी है। हर युवा को पता है कि सोशल मीडिया पर जरूरत से ज्यादा समय बिताना बुरा है, फिर भी सभी मोबाइल से चिपके रहते हैं। वो इसलिए कि पहले हीरो को स्क्रीन पर स्मोकिंग करते देख हम लड़के भी वैसा ही करते थे।

वैसे ही आज अगर हम चाहते हैं कि युवा सोशल मीडिया छोड़ें तो हमें ऐसे इंफ्लूएंसर्स चाहिए, जिन्होंने खुद सोशल मीडिया छोड़ा हो। सोशल मीडिया क्विटर्स की सूची में सबसे नया नाम है 26 साल के टॉम हॉलैंड का, जो स्पाइडरमैन के रूप में चर्चित हैं। इस सप्ताह उन्होंने सार्वजनिक रूप से यह कहते हुए ट्विटर-इंस्टाग्राम से ब्रेक की घोषणा की- ‘जब मैं अपने बारे में कही जा रही ऑनलाइन बातें पढ़ता हूं तो मैं उनमें उलझ जाता हूं और इससे मेरी मानसिक दशा खराब होती है।

इसलिए मैंने पीछे हटने का निर्णय लिया और ये एप डिलीट किए…’ यह उन्होंने इंस्टाग्राम पर पोस्ट किए वीडियो में कहा! मैं ऐसे कई लोगों को जानता हूं जिन्होंने सोशल मीडिया छोड़ दिया है, ठीक उसी तरह, जैसे पांच दशक पहले हम दोस्तों के बीच सुनते थे कि उनमें से किसी ने स्मोकिंग छोड़ दी है। जब मैंने एक व्यक्ति से सोशल मीडिया छोड़ने का कारण पूछा तो उन्होंने कहा, मैं कभी भी 10 से 15 मिनट स्क्रॉलिंग किए बिना फेसबुक से बाहर नहीं निकल पाता था, इसलिए मैंने एप ही डिलीट कर दिया।

अगर आप उनसे पूछें कि क्या अब वे खुश हैं और क्या एप डिलीट करने के बाद उनकी समस्या सुलझ गई, तो वे कहते हैं, एक बात तो तय है कि अब हमारे पास अपनी रुचि के और अन्य काम करने के लिए बहुत सारा समय है। सोशल मीडिया अब लत बन चुका है। आज उसे छोड़ना उसी तरह से मुश्किल हो गया है, जैसे हमारे समय में स्मोकिंग के आदी हो चुके किसी व्यक्ति के लिए उसे छोड़ना कठिन होता था।

2019 में स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी ने युवाओं के साथ एक प्रयोग किया था, जिसमें उनसे चार सप्ताह के लिए अपने सोशल मीडिया एप्स को डीएक्टिवेट करने को कहा था। इससे उनकी वेलबीइंग में सुधार हुआ और सामाजिक व्यवहार बेहतर हो गया। अंत में रिसर्चरों ने पाया कि इसके बाद उन्होंने स्वत: ही सोशल मीडिया का इस्तेमाल करना कम कर दिया।

फंडा यह है कि अगर आपके या बच्चों के पास वक्त की कमी है, तो चार हफ्तों के लिए सोशल मीडिया छोड़कर देखिए, फिर देखिए आपके परिवार में आपस में कितना वक्त बचता है।

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