देश का हर बड़ा शहर आज पानी को तरस रहा …?
सरकारें नींद में हैं और नगर निगम लापरवाह, कौन बचाए पानी?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा- पानी का अभाव विकसित भारत के संकल्प में अवरोध बन सकता है। सही है, लेकिन सच यह है कि ज्यादातर राज्य सरकारें इस ओर कोई प्रयास करना ही नहीं चाहतीं। आप राजस्थान की छोटी-छोटी ढाणियों में जाइए, बारिश कम होते हुए भी छोटी-छोटी तलैया बनाकर अपने लिए पानी सुरक्षित कर लिया जाता है।
मध्यप्रदेश के किसी गांव में जाइए, हर खेत में तलैया होती है और आठ महीने पानी भरा रहता है। पीने के काम भी आता है और खेत का जलस्तर भी बना रहता है। ये बात और है कि नहरें आने के बाद लोगों ने ज्यादा से ज्यादा रकबे में फसल बोने के फेर में उन तलैयों को पूर दिया है, लेकिन व्यवस्था गांव और ढाणियों के स्तर पर भी थी। कहीं-कहीं अब भी है।
लेकिन सरकारों में यह चेतना कभी नहीं आई। सरकारों में इसलिए कि जब गांव का गरीब व्यवस्था कर सकता है तो सरकार जो पूरी तरह से साधन संपन्न होती है वह भी पानी बचाने के प्रयास करने लगे तो क्या से क्या हो जाएगा! एक तरफ तो हम बात करते हैं कि तीसरा विश्वयुद्ध अगर हुआ तो वह पानी के लिए ही होगा और दूसरी तरफ हमारी सरकारें इस ओर सोचना ही नहीं चाहतीं।
करोड़ों रुपए खर्च कर मप्र में इंदौर और भोपाल में नर्मदा का पानी रोज लाया जा रहा है, लेकिन भोपाल का पानी भोपाल में रोकने, इंदौर का पानी इंदौर में रोकने की कोई व्यवस्था नहीं है। हाल ही में हुई भारी बारिश में कितना पानी बेकार बह गया, अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता।
जैसा कि आज गोवा ने किया- हर घर जल संरक्षित, वैसा हर प्रदेश, हर शहर में कर लिया जाए तो पानी की कभी किल्लत आए ही नहीं। सरकारों ने कभी यह तय ही नहीं किया कि बिना वॉटर रिचार्ज के कोई घर बनेगा ही नहीं। तय किया भी तो इस नियम का पालन कड़ाई से कभी नहीं किया।
पैसे लेकर नक्शे पास करने वाला नगर निगम तैयार बैठा रहता है सरकार की हर योजना को विफल करने के लिए। आप किसी भी शहर की किसी भी कॉलोनी या सोसाइटी में चले जाइए, वॉटर रिचार्ज की व्यवस्था ढूंढते रह जाएंगे। अगर हर घर में वॉटर रिचार्ज की व्यवस्था सुनिश्चित कर दी जाए तो पानी का संकट हमें छू भी नहीं पाएगा।
घर का पानी घर में और खेत का पानी खेत में रह जाए तो इससे बड़ी कोई उपलब्धि हो ही नहीं सकती, लेकिन इसके लिए सरकारों को नींद से जागना होगा। सख्ती और ईमानदारी से इसके पालन के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है। जल संरक्षण से बड़ा आज न तो कोई काम है और न ही कोई पुण्य।
वॉटर रिचार्ज में कोई बड़ा खर्च नहीं होता। हम प्लॉट पर घर बनाते हैं तो सबसे पहले बोरिंग करवाते हैं। धरती से पानी ले लेते हैं, लेकिन वही पानी धरती को वापस देने की कोई व्यवस्था नहीं करना चाहते। गोवा ने यह कर दिखाया है। बड़े राज्य भी ठान लें तो निश्चित ही पानी के संकट पर विजय पाने का रास्ता मिल जाएगा।
कितनी शर्म की बात है कि नदियों-तालाबों के इस देश का हर बड़ा शहर आज पानी को तरस रहा है। हम दस या बीस मंजिल का घर बनाकर सबसे ऊपर वाले माले में स्विमिंग पूल तो बनाते हैं, लेकिन वॉटर रिचार्ज की व्यवस्था के लिए हमारे पास पैसे का संकट आ जाता है!