इंदौर : स्कीम 97-2:10 एकड़ जमीन पर मुआवजा पारित कर उसे ही मुक्त कर दिया IDA अफसरों ने

इंदौर विकास प्राधिकरण (आईडीए) की स्कीम नंबर 97-2 की जमीनों में एनओसी देने के मामले में बड़ी गड़बड़ी सामने आई है। अफसरों ने जिस जमीन को स्कीम में शामिल करने के लिए अधिग्रहित किया और मुआवजा जारी किया, उसी में बाद में कुछ निजी जमीन मालिकों को फायदा पहुंचाने के लिए एनओसी जारी कर दी। नतीजा ये हुआ कि इन जमीन मालिकों ने ताबड़तोड़ हाउसिंग सोसायटियां बना लीं और प्लॉट काट डाले।

ऐसी ही एक संस्था ज्याेति हाउसिंग सोसायटी थी, जिसने आईडीए की एक टीप का फायदा उठाया, जिसमें लिखा था कि स्कीम के दायरे में कोई हाउसिंग सोसायटी की जमीन आ रही हो तो उसे दो साल में विकास करने की अनुमति रहेगी। इस शर्त के सामने आने के बाद ही संस्था बनी और 10 एकड़ जमीन पर आईडीए से एनओसी लेकर 5-5 हजार वर्गफीट के प्लॉट काट दिए।

सदस्यों को प्लॉट आवंटित भी हो गए, लेकिन उसके बाद न विकास हुआ न कोई वैधानिक निर्माण। संस्था की कारगुजारियां पता चलने के बाद अफसरों ने हर सदस्य को भी अलग से एनओसी दी। खास बात यह है कि अब 40 साल बाद भी यहां खेत हैं और कोई काम नहीं चल रहा।

इधर, आईडीए की जमीन उलझी हुई है वह अलग। बताते हैं कि मामला कुछ दिन पहले नगरीय विकास व आवास मंत्री भूपेंद्र सिंह के पास पहुंचा तो उन्होंने सीईओ रामप्रकाश अहिरवार को जांच करने के आदेश दिए हैं। अहिरवार ने चीफ सिटी प्लानर रचना बोचरे को जांच सौंपी है।

1980 में घोषित की थी स्कीम स्कीम 97-2

आईडीए ने 1980 में 97-2 स्कीम घोषित की थी। इसमें तेजपुर गड़बड़ी के सर्वे नंबर 304 से लेकर 308 तक को शामिल किया था, जिसका कुल रकबा 10 एकड़ था। तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर एनके जायसवाल ने मुआवजा पारित करने के बाद उसे कलेक्टर कार्यालय में जमा भी करा दिया था।

जमीन मालिक ने इसे भले ही नहीं लिया, लेकिन नियमानुसार एक बार अवॉर्ड पारित होने के बाद जमीन पर आईडीए का ही स्वामित्व हो जाता है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट भी पहले स्पष्ट आदेश दे चुका है कि अवॉर्ड पारित होने के बाद उसे वापस नहीं लिया जा सकता। इस आधार पर हाई कोर्ट ने भी तमाम योजनाओं के मामले में आईडीए के पक्ष में फैसला दिया है।

अब पता कर रहे एनओसी कैसे होगी निरस्त

जांच शुरू करने के साथ ही अफसर इस बात पर माथापच्ची कर रहे हैं कि भूअर्जन शाखा में 1980 से 1983 के बीच किन अफसरों की पदस्थापना थी, जिन्होंने इन जमीनों की एनओसी दी। फिर स्कीम में आगे विकास कार्य करने के लिए भी क्या रास्ते निकाले जा सकते हैं, इस पर विधिक राय ली जा रही है।

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