ग्वालियर में ‘एफआईआर आपके द्वार’ नहीं सिर्फ कागजों में ..
ग्वालियर में ‘एफआईआर आपके द्वार‘ नहीं सिर्फ कागजों में
एफआइआर आपके द्वार…यानि घटनास्थल पर ही एफआइआर। न थाने आने की झंझट न अधिकारियों के चक्कर काटने की जरूरत। करीब दो साल पहले यही सपना दिखाया गया था लोगों को, बस एक फोन करेंगे तो पुलिस घर पहुंच जाएगी और एफआइआर भी लिख ली जाएगी।
ग्वालियर, एफआइआर आपके द्वार…यानि घटनास्थल पर ही एफआइआर। न थाने आने की झंझट न अधिकारियों के चक्कर काटने की जरूरत। करीब दो साल पहले यही सपना दिखाया गया था लोगों को, बस एक फोन करेंगे तो पुलिस घर पहुंच जाएगी और एफआइआर भी लिख ली जाएगी। बड़े जोर-शोर से पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू हुई, लेकिन अब यह योजना सिर्फ कागजों में रह गई है। ग्वालियर के यूनिवर्सिटी और घाटीगांव थाने से इसकी शुरुआत हुई थी, लेकिन ग्वालियर में यह योजना इन दो थानों से आगे नहीं बढ़ पाई। यहां भी यह महीनों पहले बंद हो गई। पुलिस अधिकारियों ने इसकी सुध ही नहीं ली। यह उदाहरण है- किस तरह स्मार्ट पुलिसिंग सिर्फ हवा हवाई दावे हैं, पुलिस महकमे में जिस जोर-शोर से योजना शुरू होती है, वह कुछ दिन तो चलती है इसके बाद ठप हो जाती है। नईदुनिया टीम ने जिन दो थानों में इस योजना की शुरुआत हुई थी, वहां की हकीकत जानी।
कब हुई थी शुरुआत: 2020 में इसकी शुरुआत हुई थी। ग्वालियर सहित अन्य जिलों में भी इसकी शुरुआत हुई थी। ग्वालियर में यूनिवर्सिटी और घाटीगांव थाने से इसकी शुरुआत हुई थी। एफआरवी में ही इंटरनेट कनेक्शन, प्रिंटर, लैपटाप उपलब्ध कराए गए थे। एक एएसआइ को प्रभारी बनाया गया था, इसके साथ दो सिपाही भी तैनात किए गए थे।
यह है स्थिति:
घाटीगांव: घाटीगांव थाने में शुरुआत से ही इंटरनेट कनेक्टिविटी परेशानी थी। कुछ दिन तो यह चली, लेकिन बाद में बंद हो गई। जनवरी में घाटीगांव थाने का फर्स्ट रिस्पांस व्हीकल ही खराब हो गया। इसे आफ रोड कर दिया गया। किराए की बोलेरो लेकर थाने में लगा दिया गया। इसमें यह उपकरण ही नहीं है।
यूनिवर्सिटी: ग्वालियर शहर में यूनिवर्सिटी थाने की एफआरवी में सारी सुविधाएं दी गई थी। यहां कनेक्टविटी की कोई परेशानी नहीं थी, लेकिन स्टाफ ने कुछ दिन ही इसे चलाया फिर खुद ही बंद कर दिया। एफआरवी खराब होने के बाद इसे दोबारा शुरू ही नहीं किया गया।
क्या होना था: 31 अगस्त तक दो थानों में एफआइआर आपके द्वार प्रोजेक्ट का परिणाम देखने के बाद इसकी समीक्षा होनी थी। समीक्षा में जो खामियां थी, उन्हें दूर कर इसे दूसरे थानों में भी शुरू कराना था लेकिन यह दो थानों से आगे नहीं बढ़ पाई।