ग्वालियर : तीन साल में बदल दिए 3 नगर निगम आयुक्त, कहां से सुधरेगी रैंक

केन्द्र सरकार के शहरी विकास मंत्रालय ने स्वच्छता सर्वेक्षण के परिणाम जारी कर दिए हैं। लगातार तीसरी साल है जब देश में ग्वालियर की रैंक पिछड़ी है। इस साल 2022 में 10 लाख आबादी वाले शहरांे में ग्वालियर 18वें स्थान पर आया है। पर इससे पहले साल 2021 में 15वां स्थान और साल 2020 में 13वें स्थान पर था। क्या आप जानते हैं लगातार तीसरी साल है जब रैंक पिछड़ रही है। एक्सपर्ट की माने तो इसका सबसे बड़ा कारण राजनीतिक हस्तक्षेप है।

ग्वालियर में बीते तीन साल में तीन नगर निगम कमिश्नर बदल गए हैं। हर साल एक नया कमिश्नर होता है। जब तक वह काम को समझकर रैंक के लिए काम करते हैं उन्हें हटा दिया जाता है। तीन साल में तीन कमिश्नर संदीप माकिन, शिवम वर्मा और किशोर कान्याल नगर निगम ग्वालियर की कमान संभाल चुके हैं। जबकि इसके उल्टा भोपाल और इंदौर में देखें तो वहां नगर निगम में स्थायित्व दिखता है।

यह आया है स्वच्छता का परिणाम
शनिवार को केन्द्र सरकार द्वारा जारी स्वच्छता रैंकिंग में ग्वालियर देश में 18वें नंबर पर रहा है। स्वच्छता मंे 10 लाख आबादी वाले शहरों में 15वें स्थान से फिसलकर 18वें स्थान पर पहुंच गया है, जबकि ओवरऑल रैंकिंग में भी 43वें स्थान से 53वें पायदान पर पहुंच गया है। हर स्तर पर रैंग गिरी है। इसके अलावा मध्य प्रदेश में 10 लाख आबादी वाले शहरों में ग्वालियर तीसरे नंबर पर बरकरार है। पिछले साल की रैंक को यथावत रखने में ग्वालियर के अफसर कामयाब रहे हैं। प्रदेश में ओवर ऑल रैंकिंग में 14वां स्थान पर पहुंच गए हैं। ओवर ऑल रैंकिंग में देश में ग्वालियर का बुरा हाल हुआ है, लेकिन प्रदेश में आगे नहीं बढ़े तो पीछे भी नहीं गए हैं। चलिए जानते हैं वो तीन कारण जिनके कारण बार-बार ग्वालियर की रैंक पिछड़ रही है।

रैंक गिरने का पहला कारण
तीन साल में बदल दिए नगर निगम के तीन आयुक्त

– ग्वालियर की लगातार तीन साल से देश में रैकिंग गिर रही है। इसकी बजह बार-बार नगर निगम कमिश्नर की बदली करना है। साल 2019 में देश में स्वच्छता रैंकिंग में ग्वालियर 59वें नंबर पर था। अगले साल 2020 मंे 13वें नंबर पर आए, 2021 में 15वें और अब साल 2022 में 18वें नंबर पर पहुंच गए हैं। अब यहां बात कर लें कि नगर निगम आयुक्त कब कौन रहा। साल 2020 में नगर निगम के मुखिया संदीप माकिन हुआ करते थे। जिनको मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने सफाई कर्मचारियों की हड़ताल के बाद सीधे एक बैठक में चलता कर दिया था। इसके बाद साल 2021 मंे नगर निगम की कमान IAS शिवम वर्मा को सौंपी गई, लेकिन साल 2022 आते-आते उन्हें बदली कर IAS किशोर कान्याल को नगर निगम का आयुक्त बना दिया गया, जबकि बात करें देश के टॉपर इंदौर की तो वहां तीन साल मंे इस पद को छेड़ा तक नहीं गया है। इसके साथ ही भोपाल का भी यही हाल है। इंदौर-भोपाल में कलेक्टर भी नगर निगम के साथ रैंकिंग के लिए प्रयास करते हैं, लेकिन ग्वालियर में कलेक्टर का ज्यादा प्रयास दिखा नहीं।

रैंक गिरने का दूसरा कारण
शहर के लोगों की मानसिकता बदलने में लग रहा समय

– ग्वालियर में नगर निगम का अमला और अन्य प्रशासनिक अधिकारी जो स्वच्छता की रैंक को बनाने में मेहनत कर रहे रहें उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती शहर के लोगों की मानसिकता को बदलना है। शहर में लोग खुले में कचरा फेंकना अपनी शान समझते हैं, कोई रोकता है तो उससे झगड़ा करने पर अमादा हो जाते हैं। अमला लगातार एक्शन लेता है, लेकिन लोगांे को जागरुक करने की जरुरी है। ऐसे लोगों की मानसिकता को बदलना पड़ेगा और उसमें समय लग रहा है। नगर निगम के अफसरों को लोगों को यह समझाना पड़ेगा कि शहर की स्वच्छता सिर्फ सफाई दूतों का काम नहीं है आम लोगों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी।

रैंक गिरने का तीसरा कारण
ग्वलियर में हद से ज्यादा राजनीतिक हस्तक्षेप

– देश में ग्वालियर की रैंक प्रदेश के अन्य शहरों के मुकाबले गिरने की सबसे बड़ी बजह ग्वालियर-चंबल अंचल में हद से ज्यादा राजनीतिक हस्तक्षेप होना है। इंदौर, भोपाल में डेयरियां शहर से बाहर हो चुकी हैं, लेकिन ग्वालियर मंे शहर के अंदर डेयरियां संचालित हैं। भैंस को गोबर को सीवर में बहाया जा रहा है, जिससे सीवर चौक हो जाते हैं। सड़कों पर गंदगी फैलती है। जब यहां नगर निगम का अमला कार्रवाई करने जाता है तो हर दूसरा व्यक्ति पार्षद, विधायक, मंत्री जी का आदमी होता है। कार्रवाई से पहले फोन आ जाता है। राजनीतिक दबाव के चलते कड़ा एक्शन नहीं हो पाता।

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