ग्वालियर : बनने लगी गजक …!

बनने लगी गजक:बाजार खुलने से मांग बढ़ी, गजक कारोबारियों को डेढ़ गुना खपत की उम्मीद
  • तिल, गुड़, देशी घी व लेबर महंगी होने के कारण इस साल मुरैना की मशहूर मिठास के 15% तक अधिक दाम चुकाने होंगे

नई सड़क, दानाओली के गजक कारोबारी श्रीकृष्ण राठौर ने बताया कि बीते दो साल गजक के कारोबार पर भी कोरोना का दुष्प्रभाव रहा। मगर प्री-कोविड के मुकाबले इस साल गजक की मांग करीब डेढ़ गुना रहने की उम्मीद है। क्योंकि इस साल लोग खुलकर अन्य शहरों में घूमने जा रहे हैं, ऐसे में अन्य शहरों व राज्यों में भी मुरैना की मशहूर गजक पहुंच सकेगी। चूंकि गजक मशीनों क बजाय पूरी तरह से हेंड मेड होती है। इसलिए कोरोनाकाल में लोग गजक का सेवन करने से भी कतरा रहे थे।

फालका बाजार के गजक कारोबारी अनूप चौरसिया ने बताया कि इस साल गजक खाने के शौकीन लोगों को लजीज स्वाद लेने के लिए 10 से 15% तक अधिक कीमत चुकानी होगी। क्योंकि तिल, गुड़, देशी घी, ईंधन (कोयला) एवं लेबर महंगी हो जाने के कारण गजक के दाम भी 10-15% तक बढ़ गए हैं। बावजूद इसके गजक की मांग बढ़ने लगी है, बिक्री तेज होने लगी है।

देरी से बारिश का तिली पर पड़ा दुष्प्रभाव

दाल बाजार के तिली कारोबारी अनिल बंसल (अन्नू) ने बताया कि रेवड़ी व गजक में इस्तेमाल होने वाली चिकनी एवं धुली तिली बीते साल 145-150 रुपए किलो थी। जो इस साल 170-175 रुपए किलो हो गई है। कारोबारियों ने बताया कि इस साल फसल कम होने से तिली महंगी हुई है।

500 क्विंटल महंगा हुआ गुड़

दाल बाजार के गुड़ कारोबारी रामलाल मादन ने बताया कि बीते साल के मुकाबले इस साल गुड़ 400-500 रुपए प्रति क्विंटल महंगा है। वर्तमान में चाकू गुड़ 4600, लड्‌डू 4700, पंसेरा 3400-3600 एवं चीनी बूरा 4100-4300 रुपए प्रति क्विंटल बिक रहा है। सर्दी बढ़ने पर कीमत में उतार-चढ़ाव आ सकता है।

कोयला, देशी घी व लेवर भी महंगी

पिछले साल कोयला करीब 2 हजार रुपए का आता था, अब 2600 रुपए क्विंटल आ रहा है। देशी घी 5800 से 7000 रुपए का था, अब 7900 से 9300 रुपए टीन आ रही है। लेवर भी अब बढ़ती महंगाई के अनुपात में अधिक मजदूरी मांगते हैं, अन्य खर्चा भी बढ़ गया है।

ऐसे बनती है गजक

सबसे पहले गुड़ को पानी में गलाया जाता है। फिर उसमें शक्कर मिलाकर तेज आंच पर गर्म करते हैं। लोचदार चासनी बनने के बाद में उसे खींचते हैं, जिससे उसका रंग साफ हो जाता है। फिर चासनी में धुली हुई भुनी तिल को मिलाया जाता है। इसके बाद उसे लकड़ी के हथोड़े से तब तक कूटा जाता है, जब तक उसकी लोच खत्म होकर खस्ता न हो जाए। अंत में गुड़-तिली के इस प्रोसेस मिश्रण को गजक के रूप में काट दिया जाता है।

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