G-20 शिखर सम्मेलन पर भू-राजनीतिक तनाव हावी होना तय, वैश्विक आर्थिक सुधार की संभावना नहीं
एक ऐसी दुनिया में जो शायद पहले से अधिक विभाजित दिखती है, अभी भी उम्मीद है कि बुधवार को इस सम्मेलन के समाप्त होने पर खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा जैसे आपसी चिंता के मुद्दों पर विश्व के नेताओं के बीच कुछ बात बनेगी.
यूक्रेन में चल रहे युद्ध के बीच इंडोनेशिया के बाली में मंगलवार से शुरू हो रहे दो दिवसीय जी-20 शिखर सम्मेलन पर भू-राजनीतिक तनाव हावी होना तय है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस शिखर सम्मेलन के दौरान स्वास्थ्य, खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा और डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन जैसे मुद्दों पर तीन सेशन में भाग लेंगे. ये सत्र ऐसे-ऐसे समय आयोजित हो रहे हैं जब यूक्रेन पर रूस के आक्रमण से वैश्विक ऊर्जा और खाद्य बाजार की हालत पस्त है. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के इसमें शामिल नहीं हो रहे हैं. हालांकि इस शिखर सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्ज, ब्रिटिश प्रधान मंत्री ऋषि सुनक, फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों सहित 19 देशों और यूरोपीय देशों के नेता शामिल होंगे.
लेकिन विदेश मंत्री एस जयशंकर के नेतृत्व में नई दिल्ली ने पहले ही अपनी नीति स्पष्ट कर दी है कि भारत का हित विदेशी ताकतें तय नहीं कर सकतीं. हालांकि, भारत यूक्रेन के खिलाफ दुश्मनी खत्म करने के लिए रूस पर दबाव जारी रखेगा, लेकिन वह ऐसा कोई रुख नहीं अपनाएगा जिससे उसके सबसे पुराने और भरोसेमंद गैर-पश्चिमी सहयोगी को ठेस पहुंचे.
पीएम मोदी बाली में अपने दो दिवसीय प्रवास के दौरान 20 बैठकों में भाग लेंगे. ये बैठकें ऊर्जा सुरक्षा, कृषि, पर्यावरण, स्वास्थ्य और अन्य मुद्दों पर केंद्रित होंगी. समापन सत्र में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो जी-20 की अध्यक्षता भारत को सौंपेंगे.
बढ़ती महंगाई
यूक्रेन युद्ध की वजह से वैश्विक ऊर्जा बाजार में संकट छाया है और दुनिया में भोजन की कमी भी पैदा कर दी है. दो दिवसीय इस शिखर सम्मेलन में यह मुद्दा हावी रहेगा. दुनिया के नेता इस संकट से बाहर निकलने का रास्ता खोजने की कोशिश करेंगे. यूक्रेन संकट ने दुनिया को परमाणु तबाही के कगार पर ला खड़ा किया है. चीन की जीरो-कोविड नीति, जिसने सप्लाई चेन को भी बाधित किया है, विश्व के नेताओं के एजेंडे में टॉप पर होगी. क्योंकि इसकी वजह से कई देश आर्थिक संकटों का सामना कर रहे हैं और कई देशों में मुद्रास्फीति ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गई है. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार, वैश्विक मुद्रास्फीति 2021 में 4.7 प्रतिशत की तुलना में 2022 में 8.8 प्रतिशत को छूने के लिए तैयार है. इसकी मुख्य वजह ईंधन की बढ़ती कीमतें हैं.
ताइवान का मसला
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की शिखर सम्मेलन से पहले सोमवार को पहली आमने-सामने बैठक होगी. कई जानकार का मानना है कि उनकी बातचीत के दौरान ताइवान का सवाल उठेगा.
सहयोग की कमी
इस बीच कई विशेषज्ञों का मानना है कि चीन और रूस से निपटने के तरीके पर पश्चिम में मतभेद के कारण, इस शिखर सम्मेलन से महंगाई को कम करने और ऊर्जा व अन्य आपूर्ति श्रृंखलाओं को व्यवस्थित करने की दिशा में महत्वपूर्ण सफलता मिलने की संभावना कम है. जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्ज ने चीन की यात्रा शुरू करने से पहले चीन के साथ एक महत्वपूर्ण कंटेनर सौदे को हरी झंडी दिखाई थी. इस यात्रा को यूरोपीय एकता में दरार के संकेत के रूप में पेश किया गया था, इटली भी चीन और रूस को आर्थिक रूप से दंडित करने के लिए पश्चिमी प्रयास में शामिल होने के लिए उत्सुक नहीं है.
एक ऐसी दुनिया में जो शायद पहले से अधिक विभाजित दिखती है, अभी भी उम्मीद है कि बुधवार को इस सम्मेलन के समाप्त होने पर खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा जैसे आपसी चिंता के मुद्दों पर विश्व के नेताओं के बीच कुछ बात बनेगी.