रिजिजू ऐसे ही नहीं उठाते नेहरू पर सवाल …?
रिजिजू ऐसे ही नहीं उठाते नेहरू पर सवाल, आंबेडकर और पटेल की सलाह मानते तो नहीं होतीं ये 6 गलतियां
जब कश्मीर में सेना भेजने की बात हो रही थी तो माउन्टबेटन ने कहा कि ऐसा राज्य जिसका भारत में विलय नही हुआ है, वहां भारत की सेना कैसे जा सकती है? सरदार पटेल ने बहुत ही दृढ़ता के साथ कहा कि विलय हुआ हो अथवा नही. कश्मीर को सैन्य सहायता में कुछ भी बाधक नही हो सकता.
केंद्रीय कानून मंत्री किरन रिजिजू कश्मीर पर विवाद के लिए देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को जिम्मेदार ठहराते रहे हैं. पंडित नेहरू की जयंती पर एक बार फिर रिजिजू ने एक लेख लिखकर पंडित नेहरू को कश्मीर समस्या के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने रिजिजू के आरोपों पर जमकर हल्ला बोला. कश्मीर को लेकर जो बातें कानून मंत्री ने की हैं इसके पहले बहुत से इतिहासकारों ने भी कुछ ऐसे ही तथ्य पेश किए हैं. वास्तव में अगर पंडित जवाहर लाल नेहरू ने सरदार पटेल और डॉक्टर आम्बेडकर का कहना मान लिया होता तो कश्मीर का इतिहास आज कुछ और होता.
ये सभी जानते हैं कि अंग्रेजों की नीति ही थी कि भारत को कई भागों में बांट दिया जाए. लॉर्ड माउंटबेटन कोई इससे अलग नहीं थे. हम जानते थे कि वह भारत का भला कभी नहीं चाहेगा उसे भारत का पहला गवर्नर जनरल क्यों बना दिया? जिन अंग्रेजों ने 170 साल तक भारत के साथ न जानें क्या नहीं किया उसके प्रतिनिधि को आप कैसे यह पद दे सकते थे? नेहरू ने ही आजादी के बाद लॉर्ड माउंटबेटन को भारत का गवर्नर जनरल बनाया था. पहली बात यह है कि जो 562-563 रियासतें थीं वो सभी भारत का हिस्सा थीं. ये कोई स्वतंत्र राज्य नहीं थे. ब्रिटिश काल में इन्हें इंडियन प्रिंसली स्टेट कहा जाता था, दूसरे इंडियन प्रोविंस थे. अंग्रेजों ने भारत को दो टुकड़ों में नहीं 564 टुकड़ों में बांटा था. इन सबको स्वतंत्र देश बताकर वो इन्हें आजाद कर गए थे.
माउंटबेटन यही काम कश्मीर के लिए कर रहे थे. वे सिर्फ एक दिन के लिए हरिसिंह से मिलने गए थे और उनके दिमाग में बैठा दिया कि आप स्विट्जरलैंड की तरह का एक देश बना लीजिए और स्वतंत्र रहिए. आप किसी भी यूनियन (भारत या पाकिस्तान) को जॉइन मत कीजिए. उसके बाद जब सरदार वल्लभ भाई पटेल विलय का पूरा डॉक्यूमेंट ले आते हैं तो माउंटबैटन उसके ऊपर लिख देते हैं कि यह टेम्परेरी है. नेहरू उसे स्वीकार कर लेते हैं.
जब कश्मीर में सेना भेजने की बात हो रही थी तो माउन्टबेटन ने कहा कि ऐसा राज्य जिसका भारत में विलय नही हुआ है, वहां भारत की सेना कैसे जा सकती है? सरदार पटेल ने बहुत ही दृढ़ता के साथ कहा कि विलय हुआ हो अथवा नही. कश्मीर को सैन्य सहायता में कुछ भी बाधक नही हो सकता. आखिर में तय हुआ कि मेनन तुरन्त श्रीनगर रवाना हों और वहां हथियार भी भेजे जाएं.
2-नेहरू के चलते ही पीओके का अस्तित्व सामने आया
टाइम्स नाऊ चैनल से बातचीत करते हुए इतिहासकार प्रोफेसर कपिल कुमार कहते हैं कि जब नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र में जाने की बात की थी तो पटेल ने आगाह किया था – ‘मिस्टर नेहरू! डू यू वॉन्ट टू लूज कश्मीर?’ (क्या आप कश्मीर को खो देना चाहते हैं). इस पर नेहरू चुप हो जाते हैं. उसके बाद नेहरू फिर गलती करते हैं. कैबिनेट की पहली मीटिंग में ही पटेल प्रस्ताव रखते हैं कि जिन दर्रों से ये कबाइली घुस रहे हैं और पाकिस्तानी सेना आ रही है, इन पर एयरफोर्स से बम बार्डिंग कराकर रस्ता रोकते हैं. नेहरू इस प्रस्ताव को नहीं मानने से इनकार कर देते हैं. सेना ने दो टूक कहा था कि जब तब इन कबाइलियों को कश्मीर से खदेड़ नहीं दिया जाता है तब तक युद्ध विराम नहीं किया जाना चाहिए. उसके बावजूद देश के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू ने युद्ध विराम कर लिया. कुमार का कहना है कि इसी के चलते नेहरू ने ही पीओके अस्तित्व में आया.
3-आंबेडकर ने खुलकर किया था 370 का विरोध
जनसंघ के अध्यक्ष बलराज मधोक अपनी किताब में लिखते हैं, “मैंने आंबेडकर को कथित राष्ट्रवादी नेताओं से ज्यादा राष्ट्रवादी और कथित बुद्धिजीवियों से ज्यादा विद्वान पाया.” उन्होंने अपनी आत्मकथा में एक पूरा अध्याय ‘विभाजित कश्मीर और राष्ट्रवादी आंबेडकर’ के विषय पर लिखा है. डॉक्टर ऑंम्बेडकर का कहना था कि राज्य में सड़क हम बनवाएं, सुरक्षा हम करें और आप अपनी मनमानी के लिए स्वतंत्र रहें ऐसा कोई भी उपबंध संविधान में नहीं किया जाएगा. आंबेडकर से नाख़ुश शेख़ अब्दुल्ला नेहरू के पास गए, उस समय वो विदेश दौरे पर जा रहे थे. नेहरू ने गोपालस्वामी अयंगर से कहा कि वो अनुच्छेद 370 तैयार करें. अयंगर उस समय बिना किसी पोर्टफ़ोलियो के मंत्री थे. इसके अलावा वो कश्मीर के पूर्व दीवान और संविधान सभा के सदस्य भी थे.
4- राजमोहन गांधी भी कहते हैं कि कश्मीर मसले पर नेहरू से नाराज थे पटेल
राजमोहन गांधी ने अपनी किताब में लिखा है, ”कश्मीर को लेकर भारत सरकार के कई क़दमों के बारे में वल्लभभाई नाराज़ थे. ‘जनमत संग्रह, संयुक्त राष्ट्र में मामले को ले जाना, ऐसी हालत में संघर्ष विराम करना जबकि एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान में चला गया और महाराजा के राज्य से बाहर जाने जैसे कई मसलों को लेकर सरदार सहमत नहीं थे. राजमोहन गांधी ने अपनी किताब में लिखा है कि “समय-समय पर उन्होंने कुछ सुझाव दिए और आलोचनाएं भी रखीं, लेकिन उन्होंने कश्मीर मुद्दे पर कोई समाधान नहीं सुझाया था. वास्तव में अगस्त 1950 में उन्होंने जयप्रकाशजी को बताया था कि कश्मीर का मुद्दा सुलझाया नहीं जा सकता.” जयप्रकाशजी ने कहा कि सरदार की मौत के बाद उनके अनुयायी भी ये बता पाने में अक्षम थे कि आख़िर वो ख़ुद कैसे इस मामले को हल करते. और ये एक सच्चाई थी.
5- पटेल के रोकने पर भी नेहरू ने कश्मीर मसला UNO को सौंपा
कश्मीर के मसले पर सरदार पटेल के हस्तक्षेप के चलते नेहरू ने उन्हें एक पत्र भेजकर शिकायत की थी. जिसके चलते पटेल ने इस्तीफे की पेशकश की, बाद में नेहरू ने भी उत्तर देते हुए इस्तीफे की पेशकश कर दी थी. इस मुद्दे पर सरदार ने गांधी जी से भेंट की. गांधी जी की नेहरू से भी अलग से मुलाकात हुई. किसी का इस्तीफ़ा नही हुआ. पर सरदार की कश्मीर में भूमिका खत्म हो चुकी थी. मंत्रिमंडल के सहयोगी के तौर पर सरदार फिर भी खामोश नही रहे. माउंटबेटन के साथ नेहरू की प्रस्तावित लाहौर यात्रा का उन्होंने कड़ा विरोध किया. कहा, जब हम सही हैं. मजबूत हैं तो जिन्ना के सामने रेंगने क्यों जाएं ? देश की जनता हमे क्षमा नहीं करेगी.
नेहरू की बीमारी के साथ ही सरदार के कड़े विरोध ने नेहरू का माउंटबेटन के साथ लाहौर जाना रोका. माउंटबेटन की सलाह पर कश्मीर के सवाल को सयुंक्त राष्ट्र संघ को सिपुर्द करने का भी सरदार ने कड़ा विरोध किया था. वह इस सवाल को समय से कार्रवाई के जरिये कश्मीर की जमीन पर ही हल करने के हिमायती थे. पर सरदार की नही चली. नेहरू कश्मीर की जिम्मेदारी ले चुके थे. इसमें दख़ल उन्हें नापसन्द था.
6- नेहरू के चलते ही भारतीय सेना पूरा कश्मीर लेने से चूक गई
भारतीय सेना पूरा कश्मीर लेने की जगह बीच में क्यों रुक गई ? ये सवाल पूछा था, मशहूर पत्रकार कुलदीप नैय्यर ने कश्मीर अभियान का नेतृत्व करने वाले लेफ्टिनेंट जनरल कुलवंत सिंह से लड़ाई के कई वर्षों बाद, जनरल का जबाब था, प्रधानमंत्री ने उन्हें सिर्फ उस इलाके तक जाने के लिए कहा था जहां कश्मीरी बोली जाती है, नेहरू पंजाबी भाषी इलाके ( गुलाम कश्मीर ) में जाने के इच्छुक नही थे.
22 अक्टूबर को कश्मीर पर पाकिस्तान की ओर से तीन सौ से अधिक लारियों में लगभग पांच हजार हमलावर कश्मीर में दाखिल हुए. भारी मात्रा में हथियार-गोला बारूद उनके साथ थे. जाहिर तौर पर वे कबाइली थे. पर ये सभी जानते हैं कि कबाइलियों की आड़ में वे पाक सैनिक थे. हमलावरों ने मुजफ्फराबाद पर कब्जा करके शहर को आग लगा दिया. कश्मीर रियासत की सेना की कमान लेफ्टिनेंट नारायण सिंह के हाथों में थी. बताया जाता है कि उनकी बटालियन के मुस्लिम जवानों ने उन्हें गोली मार दी.
23 अक्टूबर को महाजन ने सरदार को लिखा कि हमारी मुस्लिम सेना और पुलिस ने या तो हमारा साथ छोड़ दिया है या फिर सहयोग नही कर रहे. 24 अक्टूबर को हमलावरों ने महुरा पावर हाउस पर कब्जा करके श्रीनगर को अंधेरे की चादर ओढा दी. रात तक वे राजधानी श्रीनगर से सिर्फ चालीस मील दूर थे. भारत सरकार को हमले की जानकारी 24 अक्टूबर की शाम हताश राजा हरी सिंह की मदद की अपील के जरिये मिली. ठीक उसी समय भारतीय सेना के कमांडर इन चीफ़ जनरल लॉकहार्ट के पास उनके पाकिस्तानी सहयोगी के जरिये यह सूचना पहुंची. 25 अक्टूबर को कैबिनेट की डिफेन्स कमेटी की बैठक में सरदार पटेल ने कश्मीर के राजा की मदद की जबरदस्त पैरोकारी की. इस बैठक के पहले वह महात्मा गांधी की भी सहमति ले चुके थे.