राहुल की यात्रा के बहाने परखे जा रहे चेहरे …!
राहुल की यात्रा के बहाने परखे जा रहे चेहरे:मालवा-निमाड़ में यात्रा का परफॉर्मेंस तय करेगा टिकट
राहुल गांधी ने 15 नवंबर (बिरसा मुंडा जयंती) को सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया था। इसमें कहा गया कि आज आदिवासियों को खदेड़ा जा रहा है। उनका सम्मान गायब हो रहा है। उनके सम्मान को फिर से वापस लाने की जरूरत है। इसके कुछ दिन बाद कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा की पहले हिंदी भाषी राज्य मध्य प्रदेश में एंट्री हुई।
एमपी में ये यात्रा जिस रूट से गुजर रही है, वो आदिवासी बाहुल्य है। विधानसभा चुनाव के पिछले आंकड़े बताते हैं कि ये आदिवासी सीटें ही राज्य में सत्ता का निर्णय करती हैं। आदिवासियों के सम्मान के बहाने कांग्रेस अपने सम्मान को भी लौटाने की जुगत में है। कांग्रेस ने यात्रा के रूट में आने वाले जिलों और विधानसभा क्षेत्र के लिए स्थानीय चेहरों को जिम्मेदारी दी है। इस बहाने पार्टी आगामी चुनाव को लेकर इन्हें परख भी रही है।
मालवा-निमाड़ की जीत ने खत्म किया था कांग्रेस का वनवास
दक्षिण भारत में 2 हजार किलोमीटर का सफर पूरा करने के बाद राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने 23 नवंबर को देश की हिंदी पट्टी में प्रवेश किया। बुरहानुपर से यात्रा की शुरुआत हुई। ये यात्रा प्रदेश के मालवा-निमाड़ के 6 जिलों के 14 विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुजर रही है। मालवा-निमाड़ में 66 विधानसभा सीट हैं। पिछले 4 चुनाव का ट्रेंड बताता है कि मालवा-निमाड़ में जो पार्टी ज्यादा सीट जीतती है, उसकी सरकार बनती है।
2018 में यहां बीजेपी को 29 सीट मिली थी, जबकि कांग्रेस 34 सीट जीतकर 15 साल बाद सत्ता पर काबिज हुई थी। इससे पहले हुए तीन चुनावों में बीजेपी, कांग्रेस से ज्यादा सीट हासिल कर सत्ता में बनी रही। अगले चुनाव में कांग्रेस की कोशिश 35 सीट जीतने की है।
कार्यकर्ताओं को चुनाव के लिए अभी से तैयार करना
जानकार कहते हैं कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा एमपी में कांग्रेस के लिए सत्ता का रास्ता बना सकती है। बुरहानपुर में प्रदेश के सभी दिग्गज नेताओं ने पहुंचकर यात्रा की अगवानी की। इतना ही नहीं, राहुल को मालवा और निमाड़ की संस्कृति से अवगत कराने के लिए अलग-अलग रंग-रूप से स्वागत किया गया। इस यात्रा के जरिए कांग्रेस अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को सक्रिय करना चाहती है, ताकि एक साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले उनकी जनता में पकड़ का आकलन भी हो सके। इस लिहाज से ही नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी।
नेता एकजुट होंगे, तभी होगा यात्रा का असर
राजनीतिक विश्लेषक अरुण दीक्षित मानते हैं कि दक्षिण में राहुल गांधी की यात्रा को उम्मीद से ज्यादा समर्थन मिला है, क्योंकि 1984 के बाद कांग्रेस दक्षिण में खड़ी हो पाई। फिर भी देश की निगाहें हिंदी भाषी पट्टी से गुजरने वाली यात्रा पर है। इसकी वजह यह है कि कांग्रेस की शुरुआत हिंदी भाषी राज्यों से हुई थी, लेकिन दुर्भाग्य है कि कांग्रेस अपने आप को आंतरिक कलह से दूर नहीं कर पाई। मध्यप्रदेश में गुटबाजी हावी है। कमलनाथ दूर करने की कोशिश कर रहे हैं।
उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय स्तर की राजनीति के बारे में तो राहुल गांधी बात कर रहे हैं, लेकिन जरूरत है राज्य और खासकर स्थानीय मामलों पर ध्यान देने की। इसके लिए नेता राज्य की परेशानियों के बारे में भी बताएं, ताकि जो लोग उनकी सभाओं में आ रहे हैं, वह सुनें और अपने आप को इस यात्रा से कनेक्ट कर पाएं।
जागरूक आदिवासी को अपने साथ करने की कवायद
इस सवाल पर दीक्षित कहते हैं, आप देखिए, पिछले विधानसभा चुनाव में आदिवासी सीट कांग्रेस को ज्यादा और बीजेपी को कम मिली थीं। दरअसल, आदिवासियों को लेकर बातें ज्यादा हो रही हैं। यह वर्ग अब जागरूक हो चुका है, लेकिन दुर्भाग्य यह है कि आदिवासी नेतृत्व बिक जाता है या फिर लालच में आ जाता है। राहुल गांधी यात्रा के दौरान गरीब, किसान और निचले और उपेक्षित तबके की बात कर रहे हैं।
मुझे लगता है कि प्रदेश के नेता प्रदेश के मुद्दों को सही दिशा में उठाने और ले जाने की कोशिश करेंगे तो असर जरूर पड़ेगा। कांग्रेस का अध्यक्ष कोई भी हो, गांधी परिवार सर्वमान्य नेतृत्व करने वाला परिवार है। यही वजह है कि बीजेपी की कोशिश होगी कि मध्यप्रदेश में इस यात्रा को विवादित बनाए। नारे वाले वीडियो को लेकर जिस प्रकार भाजपा ने हमला बोला, उससे ऐसा माना भी जा रहा है।
जब बड़ा नेता आता है, तो असर छोड़ता है
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के रूट में उन विधानसभा क्षेत्रों को शामिल किया गया है, जहां 2018 के चुनाव में कांग्रेस कमजोर थी। यात्रा बुरहानपुर और नेपानगर विधानसभा सीट से शुरू हुई। नेपानगर विधानसभा सीट पर पिछली बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी, लेकिन सुमित्रा कास्डेकर कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आई थीं और अब बीजेपी से विधायक हैं।
जानकारों का कहना है कि कांग्रेस भले ही राहुल गांधी की इस यात्रा को राजनीति से अलग कर रही है। फिर भी इसका असर मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनावों में देखने को जरूर मिलेगा। उनका कहना है कि जब सेंट्रल लेवल का एक बड़ा नेता सीधे जनता से मिलता है, तो इसका असर पड़ता है। इतिहास बताता है कि अभी तक देश में नेताओं ने जितनी भी यात्राएं की हैं, उनका फायदा जरूर हुआ है।
यात्रा के दम पर 66 में से 35 पर जीतना चाहती है कांग्रेस
मालवा-निमाड़ बीजेपी का गढ़ कहा जाता है। यहां कुल 66 विधानसभा सीटें हैं। साल 2013 में बीजेपी ने यहां 56 और कांग्रेस ने 9 सीटें जीती थीं। साल 2018 में बीजेपी 29 सीटों पर सिमट गई थी। कांग्रेस ने 34 सीटें जीती थीं। 2018 में कांग्रेस ने 15 साल का वनवास खत्म कर सत्ता में वापसी की थी, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक विधायकों के बीजेपी में शामिल होने पर सरकार गिर गई।
अभी तक यही ट्रेंड रहा है कि मालवा निमाड़ में जिस पार्टी ने अधिक सीटें जीतीं सरकार उसी ने बनाई है। साल 2003 में 47 सीटें और 2008 में 66 सीटों में 42 सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी। अब कांग्रेस की कोशिश 35 से ज्यादा सीटें जीतना है, ताकि सत्ता में वापसी की जा सके।.
बुरहानपुर और खरगोन में भाजपा का खाता ही नहीं खुला
कांग्रेस-बीजेपी दोनों ही पार्टियों की आदिवासी वोट बैंक पर नजर है। कोई भी राजनीतिक दल किसी वर्ग को नाराज नहीं करना चाहता, लेकिन मालवा-निमाड़ के खंडवा, बुरहानपुर, खरगोन, झाबुआ, धार, बड़वानी जिले में आदिवासी वर्ग की आरक्षित सीट्स हैं। कांग्रेस की मालवा-निमाड़ से निकल रही भारत जोड़ो यात्रा को इससे भी जोड़ कर देखा जा रहा है।
भारत जोड़ो यात्रा जिन 6 जिलों से होकर गुजर रही है, वहां 30 सीट हैं। इसमें से कांग्रेस ने 2018 में कांग्रेस ने 14 व बीजेपी ने 13 सीटों पर कब्जा किया था। तीन सीट पर निर्दलीय जीते थे। इसमें से दो जिले बुरहानपुर व खरगोन ऐसे हैं, जिनमें बीजेपी का खाता ही नहीं खुला था, बाद में कांग्रेस के 3 विधायक बीजेपी में शामिल हो गए थे।