ईयर फोन बढ़ा रहा दिल का दर्द ..!

राष्ट्रीय प्रदूषण निवारण दिवस आज: पूरे शरीर पर ध्वनि प्रदूषण का खतरनाक प्रभाव
ईयर फोन बढ़ा रहा दिल का दर्द
जिम-क्लब में तेज बजते गाने बिना एहसास बना रहे बहरा
इंदौर. प्रदूषण हर स्तर पर मानव जीवन को प्रभावित कर रहा है। ध्वनि प्रदूषण ने शहरों को खतरनाक श्रेणी में ला दिया है। मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों में प्रदेश के सर्वाधिक ध्वनि प्रदूषण वाले शहरों में शामिल इंदौर के कई इलाकों में शोर अमानक स्तर पर हैं। इससे दिनचर्या प्रभावित हो रही है। कान दर्द के मरीज बढ़ रहे हैं। विशेषज्ञों की माने तो ध्वनि प्रदूषण से प्रभावित मरीज हर माह 5 हजार से ज्यादा हो गए हैं। इनमें कुछ हृदय रोग की ओर बढ़ रहे हैं। 65 डेसीबेल से ज्यादा ध्वनि के कानों तक पहुंचने से ऐसा हो रहा है। तकनीकी दौर में भी वायु व ध्वनि प्रदूषण मापने की व्यवस्था सरल नहीं हुई है। कुछ साफ्टवेयर, ऐप चलन में हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रभारी प्रधान वैज्ञानिक एसएन पाटिल ने बताया, आम व्यक्ति के लिए वायु प्रदूषण का स्तर मापने की व्यवस्था नहीं है। इसे मापने का कोई ऐप नहीं है। ध्वनि प्रदूषण के लिए साउंड लेवल मीटर है, जो वायरलेस फोन जैसा है। साउंड मीटर नामक ऐप प्ले स्टोर पर है। इससे ध्वनि प्रदूषण स्तर पता किया जा सकता हैं।

भोपाल जिम, जुंबा व क्लब में तेज आवाज में बज रहे गाने बिना अहसास के बहरा बना रहे हैं। रोज तेज आवाज में गाने सुनने से कान की नसें कमजोर हो रही हैं। जब अहसास होता है तब तक कोई इलाज भी नहीं बचता। वाहनों के बढ़ते उपयोग से भी ध्वनि प्रदूषण का स्तर बढ़ गया है। यह कानों पर गहरा असर डाल रहा है। वायु प्रदूषण से बार-बार एलर्जी होती है। इससे कान के पर्दे सिकुड़ने के केस बढ़ रहे हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि अधिकांश मरीज 20-40 साल के बीच के हैं। नाक-कान-गला रोग विशेषज्ञ इसे चिंताजनक मान रहे हैं।

बता दें, प्रदूषण शरीर पर चौतरफा वार कर रहा है। बढ़ते प्रदूषण से सांस व हृदय के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। राजधानी के हमीदिया, जेपी समेत सरकारी और निजी अस्पतालों में रोज नाखून रोग के भी मरीज पहुंच रहे हैं। इस रोग में मरीज की आंखों में धूल के कण पहली परत में पहुंच जाते हैं। इससे काफी परेशानी होती है।

प्रदूषण से दिखते हैं ये लक्षण

कान में भारीपन, सुनने की क्षमता कमजोर होना

सुस्ती, मतली, उल्टी, सिरदर्द व तनाव

मुंह, गले व आंखों में जलन या खुजली

नाक बहना, नाक से खून आना

खांसी व गले में खराश

सांस लेने में दिक्कत

पेट में दर्द, डायबिटीज

शोर ही नहीं, अन्य कारण भी जिम्मेदार

सीमा से अधिक शोर स्वास्थ्य पर असर डालता है। अन्य माध्यमों से हो रहा ध्वनि प्रदूषण कानों के लिए हानिकारक है। तेज धुन वाले म्युजिक सिस्टम, हॉर्न, वाहनों का शोर और ईयर फोन से घंटों सुनने से कानों की क्षमता प्रभावित हो रही है। एमवायएच आौर जिला अस्पताल के नाक-कान-गला (ईएनटी) रोग विभाग में कानों की समस्या लेकर हर माह 5 हजार से ज्यादा मरीज आ रहे हैं। निजी अस्पतालों-क्लीनिक में भी ध्वनि प्रदूषण से प्रभावितों की संख्या बढ़ रही है।

बोर्ड ने चेताया, फिर भी मानक पार

डॉक्टरों की माने तो 65 डेसीबेल से ज्यादा शोर कानों को नुकसान करता है। इंदौर के अधिकांश क्षेत्र में यह मानक से ज्यादा मिला। यहां लोग सांस, साइनोसाइटिस, आंखों में जलन का शिकार हो रहे हैं। वहीं, ध्वनि प्रदूषण से सुनने की क्षमता पर असर पड़ रहा है। त्योहारी आयोजनों व आम दिनों में भी ध्वनि प्रदूषण 38 डेसीबेल से 52 डेसीबेल तक पहुंच गया है। डॉक्टरों का मानना है कि रात में आसपास 35 डेसीबेल से अधिक आवाज नहीं होना चाहिए। वहीं, दिन का शोर भी 45 डेसीबेल से ज्यादा हानिकारक हो जाता है।

ध्वनि प्रदूषण कान को प्रभावित करता है। वायु प्रदूषण से साइनोसाइटिस, जुकाम, एलर्जी होती है। यह कानों को प्रभावित करती हैं। जिम व जुंबा में तेज आवाज से कान की नसें प्रभावित होती हैं। यह बिना अहसास लोगों को बहरा बना रहा है।

ईएनटी विशेषज्ञ, हमीदिया अस्पताल

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