मध्यप्रदेश के सरकारी कॉलेजों में प्रिंसिपल के 496 और प्रोफेसर के 3 हजार 997 पद खाली
एनईपी तो लागू हुई पर प्रोफेसर्स की कमी बरकरार…:
मध्यप्रदेश के सरकारी कॉलेजों में प्रिंसिपल के 496 और प्रोफेसर के 3 हजार 997 पद खाल
प्रदेश में नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (एनईपी) के दो साल पूरे होने के बाद भी अब तक यूजी कॉलेजों में प्रिंसिपल के 96 फीसदी पद खाली हैं। इसकी मुख्य वजह 20 साल से भी ज्यादा समय से प्रोफेसर्स के प्रमोशन न होना है। यही स्थिति इंजीनियरिंग और पॉलिटेक्निक कॉलेजों की भी है।
यहां के हालत और भी बिगड़े हुए हैं। प्रिंसिपल के पद खाली होने की वजह से कॉलेज में किसी सीनियर प्रोफेसर को इंचार्ज बनाकर काम चलाया जा रहा है। इसका सीधा असर यह पड़ता है कि वे स्वयं भी क्लास नहीं ले पाते और केवल प्रशासनिक कामों में ही व्यस्त रहते हैं।
एनईपी के तहत कॉलेजाें में विभिन्न कोर्सेस भी शुरू किए गए, लेकिन इसके साथ एक बड़ी समस्या सब्जेक्ट एक्सपर्ट्स की कमी भी है। योग सहित अनेक विषयों में फैकल्टी की कमी है। यही नहीं, कॉलेजों में एडमिनिस्ट्रेटिव वर्क की वजह से भी कई प्रोफेसर एंगेज रहते हैं। शहरी क्षेत्रों के बड़े कॉलेजों में तो प्रोफेसर्स हैं, लेकिन ज्यादा दिक्कत नए खुले और कस्बाई क्षेत्रों के कॉलेजों में होती है।
इंचार्ज प्रिंसिपल बनते ही एक प्रोफेसर हो जाता है कम
सरकारी पीजी कॉलेजों में प्रिंसिपल के 98 पद हैं, इनमें से 84 खाली हैं। केवल 14 पर ही प्रिंसिपल हैं। बाकी सभी जगह इंचार्ज प्रिंसिपल हैं। इसी तरह यूजी कॉलेजों में 426 में से 412 पद खाली हैं। उच्च शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने बताया कि जो सीनियर प्रोफेसर इंचार्ज प्रिंसिपल बना दिए जाते हैं, वे ऑफिशियल कामों में व्यस्त रहते हैं और क्लास नहीं ले पाते। इस वजह से इंचार्ज प्रिंसिपल बनते ही एक प्रोफेसर जरूर कम हो जाता है। अधिकारियों के मुताबिक 20 साल से ज्यादा समय से प्रोफेसर्स के प्रमोशन नहीं हुए। इस कारण प्रिंसिपल के पद रिक्त होते गए।
फैकल्टी नहीं होने से प्रोजेक्ट और ग्रांट मिलने में दिक्कत
गवर्नमेंट कालेजों में प्रिंसिपल की कमी के साथ ही टीचिंग स्टाफ के पद भी बड़ी संख्या में खाली हैं। इस वजह से प्रदेश में करीब 5 हजार अतिथि विद्वान पढ़ा रहे हैं। लेकिन, परमानेंट फैकल्टी न होने की वजह से विभिन्न प्रोजेक्ट और ग्रांट मिलने में कॉलेजों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। स्थायी फैकल्टी न होने से संबंधित फंडिंग एजेंसियां भी ग्रांट देने में संकोच करती हैं। इससे पढ़ाई का स्तर भी गिरने की संभावना है।
अब भी 4 हजार प्रोफेसर्स कम हैं, अतिथि के भरोसे चल रहे कॉलेज
इसी के साथ कॉलेजों में अब भी करीब चार हजार प्रोफेसर्स कम हैं। कॉलेजों में प्रोफेसर के 848 और असिस्टेंट प्रोफेसर के 9633 पद स्वीकृत हैं। इस तरह से कुल 10,481 पदों में से 3997 खाली हैं। दो साल पहले असिस्टेंट प्रोफेसर के पद भरे गए थे। अतिथि विद्वान महासंघ के डॉ. आशीष पांडेय ने बताया कि कई बार अतिथि विद्वानों को स्थायी करने की मांग की गई, लेकिन कुछ नहीं हुआ। कॉलेज में साढ़े चार हजार अतिथि विद्वान पढ़ा रहे हैं।
यहां भी हालात खराब– प्रदेश के पांचों इंजीनियरिंग कॉलेज में इंचार्ज प्रिंसिपल
प्रदेश में पांच इंजीनियरिंग कॉलेज हैं। पांचों में सीनियर प्रोफेसर को इंचार्ज बनाया गया है। चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें प्रोफेसर के 63 पद स्वीकृत हैं और 62 पद खाली हैं। सह प्राध्यापक के 138 पद हैं जिनमें से केवल 7 भरे हुए हैं। इधर, पॉलिटेक्निक कॉलेजों में प्रिंसिपल के 67 पदों में से 54 खाली हैं। एचओडी के 297 पदों में से 247 पद खाली हैं