नीतीश कह रहे हैं शराब पियोगे तो मरोगे, लेकिन अवैध शराब पर रोक की ज़िम्मेदारी किसकी?
बिहार में शराब से मौतें:नीतीश कह रहे हैं शराब पियोगे तो मरोगे, लेकिन अवैध शराब पर रोक की ज़िम्मेदारी किसकी?
बिहार के छपरा के आस- पास गाँवों में अवैध शराब पीने से अब तक लगभग 65 लोगों की मौत हो चुकी है। हालाँकि सरकारी आँकड़ा अभी 30 ही है। सरकार की ओर से आधे से भी कम मौतें क्यों बताई जा रही है, इसका राज भी खुल गया है।
दरअसल, मृतकों के शवों का पोस्टमार्टम कराने ले जा रहे परिजन को पुलिस धमका रही है। कह रही है कि पोस्टमार्टम कराओगे तो खुद ही फँस जाओगे। क्योंकि बिहार में शराबबंदी लागू है। गाँव में ही अंतिम संस्कार कर दीजिए और मौत का कारण ठण्ड बताइए। ऐसा करने से चार लाख रुपए आर्थिक सहायता भी मिल जाएगी।
इस तरह डरा- धमकाकर पुलिस ने कई लोगों का अंतिम संस्कार गाँवों में ही करवा दिया है। यही वजह है कि ये अधिकांश मौतें सरकारी रिकॉर्ड पर आ ही नहीं रही है। उधर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विपक्ष के हंगामे के बाद कहा था कि जब शराब पर बंदिश है तो लोग पी क्यों रहे हैं? पीएंगे तो मरेंगे। बात सही भी है क्योंकि अवैध शराब तो अवैध है। उसमें किसने क्या मिलाया कौन जाने?
लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि राज्यभर में शराबबंदी लागू है, तब अवैध शराब की बिक्री को रोकने की ज़िम्मेदारी किसकी है? जो पुलिस मरे हुए लोगों को धमकाकर पोस्टमार्टम नहीं कराने दे रही है, वही पुलिस अवैध शराब की बिक्री को क्यों नहीं रोकती? ऐसा तो है नहीं कि ज़िले में या कहीं भी अवैध शराब बेची जा रही हो और पुलिस को पता ही नहीं हो!
सरकार ने तो शराबबंदी अच्छे प्रयोजन से ही लागू की थी, लेकिन उसे लागू करने वाली नौकरशाही, पुलिस और अन्य ज़िम्मेदार लोग सख़्ती से अमल क्यों नहीं कर पा रहे हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि पुलिस ही सरकार की आँखों में धूल झोंक रही हो! हो सकता है अवैध शराब बेचने वाले सरगनाओं से पुलिस द्वारा लम्बी-चौड़ी बंदी ली जा रही हो, और इसी वजह से धड़ल्ले के साथ बिक्री हो रही हो।
शराबबंदी लागू करना अच्छा निर्णय है लेकिन इसे सख़्ती से लागू करवाना भी सरकार की ही ज़िम्मेदारी है। पुलिस वाले जब तक अपने इलाक़ों में इसकी बिक्री होने देंगे या ज़िम्मेदारी निभाने से मुँह फेर लेंगे, तो अवैध शराब इसी तरह बिकती रहेगी और लोग मरते रहेंगे।