जनगणना:देश में जनगणना की बढ़ती तारीख़ों का आख़िर राज क्या है?
जनगणना की बढ़ती तारीख़ों को लेकर इन दिनों चर्चा गर्म है। केंद्र सरकार 2021 से लगातार तारीख़ें बढ़ाती जा रही है। कभी कोविड के नाम पर तो कभी और किसी वजह से। इस बार फिर टाल दी गई है। दरअसल, पिछली जनगणना 2011 में हुई थी। तब देश की आबादी 121 करोड़ थी। अब अनुमान है कि हम जनसंख्या में चीन से आगे निकलने वाले हैं।
पहली जनसंख्या भारत में 1881 में हुई थी। तब आबादी 25.38 करोड़ थी। सवाल ये उठता है कि किसी देश की बढ़ती आबादी उसके लिए फ़ायदेमंद है या नुक़सानदेह? हमने बचपन से यह सुना और पढ़ा है कि जनसंख्या वृद्धि एक विस्फोट की तरह है। इस पर क़ाबू नहीं पाया गया तो देश ग़रीबी के गर्त में चला जाएगा।
कई विशेषज्ञों का मानना है कि जनसंख्या ज़्यादा होना किसी भी देश के लिए फ़ायदेमंद ही होता है, नुक़सानदेह नहीं। मान लीजिए कि एक व्यक्ति घर में कमाने वाला है। उसके चार बच्चे हैं। आगे चलकर चारों कमाने लगें तो यह उस परिवार के लिए फ़ायदेमंद ही है। नुक़सानदेह तब था जब घर में एक ही व्यक्ति कमाता था और खाने वाला पूरा परिवार होता था। अब ऐसा नहीं है।
अब तो घर का हर व्यक्ति, चाहे वह महिला हो या पुरुष, सब नौकरी या बिज़नेस में जुटे हैं। चीजों को चैनलाइज करने की ज़रूरत होती है। जो हो भी रही हैं। इसीलिए, जनसंख्या वृद्धि अब अभिशाप नहीं, बल्कि वरदान है। किसी भी देश को आगे बढ़ने के लिए सबसे ज़रूरी बात है मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट्स की संख्या बढ़ाना। जैसा चीन ने किया।
आज से साठ साल पहले भारत और चीन की इकोनॉमी लगभग बराबरी पर थीं। लेकिन जनसंख्या सबसे ज़्यादा होते हुए भी चीन हमसे बहुत आगे बढ़ गया। चूँकि भारत दुनिया में सबसे बड़ा कंज्यूमर बाज़ार है इसलिए चीन ने हमें ही बाज़ार माना। आज हालत यह है कि हम जो चीजें इस्तेमाल कर रहे हैं, उनमें से अस्सी प्रतिशत चीजें चीन में ही बनती हैं। यहाँ तक कि कंघी जो हर घर में चार- छह तो होती ही हैं, चीन से ही बनकर आ रही हैं।
हम केवल दीवाली पर चीनी झालरों का बहिष्कार करके यह समझते हैं कि चीनी चीजों को भारत से भगा दिया गया है और अब उसकी इकोनॉमी गड़बड़ा जाएगी। जबकि ऐसा नहीं है। अगर जनसंख्या के साथ हमें अर्थ व्यवस्था को भी चीन से आगे ले जाना है तो हमारे यहाँ मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स बढ़ानी होंगी।
जहां तक जनगणना की तारीख़ें आगे बढ़ाने का सवाल है, केंद्र सरकार पिछड़ा वर्ग की संख्या सामने आने से डर रही है। अभी केवल अनुसूचित जाति और जनजाति की संख्या ही जनगणना में आती है। अब कई राज्य जातिगत गणना की माँग कर रहे हैं। ख़ासकर, पिछड़ा वर्ग की गणना। केंद्र सरकार इस पचड़े में पड़ना नहीं चाहती, इसलिए तारीख़ें बढ़ाई जा रही हैं।