Industries of Indore: इंदौर, । उद्योग लगाने से पहले ही उद्योगपतियों से सरकार टैक्स वसूली में जुट रही है। मप्र में उद्योग लगाने के लिए कर्ज लेना भी अन्य प्रदेशों के मुकाबले महंगा है। दरअसल अपने कर्ज पर छोटे मध्यम उद्योगों को कर्ज की राशि का आधा प्रतिशत और बड़े उद्योगों को एक प्रतिशत टैक्स स्टांप ड्यूटी के लिए देना पड़ता है। कर्ज पर भी मोटी टैक्स वसूली न केवल भारी पड़ रही है बल्कि इससे प्रदेश को भी आगे जाकर नुकसान उठाना पड़ रहा है।

किसी भी तरह के औद्योगिक व बिजनेस लोन पर सरकार 0.25 प्रतिशत स्टांप ड्यूटी और 0.25 प्रतिशत दृष्टिबंधक (हाइपोथिकेशन) चार्ज लेती है। यानी लोन राशि का आधा प्रतिशत उद्योग लगाने से पहले ही उद्योगों को सरकार के खजाने में बतौर टैक्स जमा करवाना पड़ता है। यदि आने वाला निवेश या औद्योगिक इकाई एमएसएमई की परिभाषा से बाहर है और बड़े उद्योग की श्रेणी में आती है तो फिर उस पर प्रदेश के टैक्स का यह भार दोगुना हो जाता है।
सीधे तौर पर देखा जाए तो एक करोड़ रुपये का लोन लेने पर 50 हजार रुपये छोटे उद्योगों को सरकार के खजाने में जमा करना पड़ता है। इसके साथ ही बैंक की फीस व खर्च अलग होते हैं।
उद्योगपतियों के अनुसार इसके मुकाबले दिल्ली व अन्य प्रदेशों की नीति ज्यादा सहज और स्पष्ट है। वहां लोन पर लिया जाना वाला स्टांप शुल्क कुछ सौ रुपयों से लेकर कुछ हजार रुपये होता है। दिल्ली में तो उद्योगों को बड़े से बड़े लोन पर भी सरकार को सिर्फ एक से पांच हजार रुपये का स्टांप शुल्क चुकाना होता है।
बैंक बदलने पर दोबारा वसूली
मप्र में लोन पर टैक्स वसूली एक बार में खत्म नहीं हो जाती। कोई उद्योग ब्याज दर में कमी या किसी अन्य लाभ के लिए या फिर राशि बढ़वाने की गरज से कुछ वर्षों या महीनों बाद बैंक बदलता है तो इस लोन के बैंक ट्रांसफर पर भी उस उद्योग को पूरा से पूरा टैक्स फिर से वसूला जाता है। यानी एक ही लोन पर बैंक बदलने के चलते प्रदेश सरकार दो बार स्टांप ड्यूटी की वसूली करती है।
उद्योग हैरान तो हैं ही वर्षों से इस वसूली को कम करने और स्टांप ड्यूटी को युक्तिसंगत करने की मांग उठा रहे हैं। हालांकि सरकार इस पर न तो ध्यान दे रही है न ही वसूली बंद हुई है। सवाल खड़ा हो रहा है कि उद्योगों की संपत्ति या गारंटी गिरवी रख बैंक लोन देता है ऐसे में सरकार को उस पर मोटा शुल्क लेने का अधिकार कैसे मिल सकता है।
लंबी अवधि में प्रदेश का नुकसान
एसोसिएशन आफ इंडस्ट्रीज मप्र (एआइएमपी) के अनुसार कर्ज पर ड्यूटी वसूली की सरकारी नीति से प्रदेश को कोई लाभ नहीं है। सरकार मोटा टैक्स वसूली कर थोड़े समय के लिए खुश हो सकती है लेकिन इससे दीर्घ अवधि का नुकसान है। दरअसल कई कंपनियां जिन्हें बड़ा लोन लेना होता है वे अपना हेडआफिस मप्र के बाहर शिफ्ट कर लेती है। यहां की संपत्ति वहां के बैंकों में गिरवी रख लोन मंजूर करवाती है। आगे इसका असर ये होता है कि जीएसटी जैसे केंद्रीय कर में वह कंपनी अन्य प्रदेश में पंजीकृत होती है तो उसके हिस्से के टैक्स की क्षतिपूर्ति या हिस्सेदारी मप्र की बजाय दूसरे प्रदेश में जाती है। कई निवेशक लोन पर टैक्स सुनकर मप्र में आने का इरादा ही टाल देते हैं।
नीति बदलने की जरूरत
प्रदेश को नीति में बदलाव करने की जरूरत है। कर्ज पर स्टांप ड्यूटी एक तरह से उद्योग लगने से पहले ही उस पर टैक्स का बोझ डाल देना है। इससे प्रदेश में निवेश प्रभावित होता है। आगे जाकर राजस्व का नुकसान भी होता है। दिल्ली में कुछ हजार रुपये लोन की स्टांप ड्यूटी ली जाती है। एआइएमपी ने इस बारे में प्रदेश सरकार से मांग भी की है।
– योगेश मेहता, अध्यक्ष एआइएमपी

 

 

 

 

बैंक गारंटी पर भी शुल्क

 

 

टैक्स सिर्फ लोन पर नहीं बैंक गारंटी बनवाने पर भी इस तरह का टैक्स देना पड़ रहा है। किसी भी काम या ठेका लेने पर परफार्मेंस गारंटी, अर्नेस्ट मनी या सिक्युरिटी डिपाजिट के लिए बैंक गारंटी देनी होती है। सरकार उस पर भी इसी दर से स्टांप ड्यूटी लेती है। बैंक की फीस अलग। सवाल है कि आखिर बैंक से दिए कर्ज और गारंटी पर सरकार मोटा टैक्स किस अधिकार से वसूल रही है।

 

 

– प्रमोद डफरिया, उद्योगपति

 

 

 

 

लोन के पंजीयन के लिए एक हजार पर्याप्त

 

 

लोन का पंजीयन करवाने के लिए स्टांप ड्यूटी ली जाती है तो एक से दो हजार रुपये का शुल्क काफी है। सरकार को सोचना होगा कि उद्योग लगेंगे तो आगे जाकर वे प्रदेश में रोजगार देंगे और सैकड़ों गुना ज्यादा राजस्व हर माह देंगे। एक ही लोन के ट्रांसफर पर दोबारा शुल्क लेना तो मनमानी ही है।

 

 

– महेश गुप्ता, अध्यक्ष लघु उद्योग भारती