कृषि उद्योगों पर ध्यान देने से बदल सकती है किसानों की किस्मत

कृषि उद्योगों पर ध्यान देने से बदल सकती है किसानों की किस्मत …

खेती-किसानी: ग्रामीण युवा शहरों-कस्बों में नौकरी तलाशने की जगह शहरी युवाओं को रोजगार दे सकते हैं …

स्वतंत्र भारत में सभी सरकारों की सद्इच्छा के बावजूद, लघु और सीमान्त किसानों की खुशहाली आकार नहीं ले सकी। खेती पर निर्भर बहुसंख्यक ग्रामीण परिवारों की आय इतनी भी नहीं, जितनी मनरेगा में कार्य करते तो होती। असल में नींव में ही ‘खोट’ रह गई। विदेशों में कृषक संचालित कृषि उद्योगों (कृषि उत्पादन, मूल्य संवर्धन और बिक्री) पर खास ध्यान है, जबकि भारत में यह व्यवस्था नगण्य है। वर्र्ष 2016 में इस मॉडल को किसान वैज्ञानिकों की जीवनशैली में उतारकर, देश-विदेश में उनकी पहचान के विस्तार की कोशिश ‘मिशन फार्मर साइंटिस्ट परिवार’ के जरिए की गई। जो मॉडल सोचा, वह खरा साबित हुआ। असल में कृषि की पारम्परिक और आधुनिक कार्य पद्धति के बीच समन्वय की आवश्यकता है। प्रत्येक ग्राम पंचायत में कृषि मूल्य संवर्धन के लिए, वहां होने वाले कृषि उत्पादन के अनुरूप मशीनें लगाकर, उनका दायित्व किसानों के पढ़े-लिखे बेटे-बेटियों को सौंपा जाए। ये बड़े बुजुर्गों को कृषि के नए गुर सिखा सकते हैं। अनाज और सब्जियों का मूल्य संवर्धन गांव में ही करके, उसे पास के कस्बों और शहरों में जाकर बेचें। इससे किसानों की दोगुनी से अधिक आय होगी और उपभोक्ता को शुद्ध खाद्य पदार्थ एक तिहाई से आधे तक सस्ता मिल जाएगा। इन सबके लिए बिक्री के सीजन में कर्ज की जगह निर्धारित समय के लिए बैंक लिमिट दी जाए। जो किसान निश्चित अवधि में राशि लौटा दें, उनसे ब्याज नहीं लिया जाए।

शहरी लोग भी कृषि व्यवस्था को समझना चाहते हैं । विशेष रूप से बच्चे देख, सुन, समझ कर खेती के ‘क, का’ में पारंगत होना चाहते हैं। खुद फल-सब्जियां तोड़कर, घर ले जाकर पकाने का आनंद ही दूसरा है। पारम्परिक आवास स्थल खेत की परिधि में हों और वहां रहने का मौका मिल जाए, तो सोने पर सुहागा। इसलिए कृषि पर्यटन पर भी ध्यान देना होगा। यूके की तीन यात्राओं में कृषि पर्यटन को देखने और समझने का मौका मिला। स्वागत कक्ष में प्रवेश शुल्क देकर, तोड़ी जाने वाली सब्जियों को एकत्रित करने के लिए प्लास्टिक कैरट दिए जाते हैं। वहां मूल्य सूची भी टंगी है। कृषि नवाचारों को समझो, फल-सब्जियां तोड़ कर कैरट में एकत्रित करो, भरपूर फोटो खींचो। लौटते समय प्रवेश के समय दिया गया प्रवेश शुल्क, तोड़ी गई फल-सब्जियों के कुल बिक्री मूल्य से घटा दिया जाता है। इन सबसे, कृषि उत्पादन के बाद खेत पर ही मूल्यसंवर्धन और उपभोक्ता को सीधे बिक्री बिचौलियों से मुक्ति दिलाती है। किसान वैज्ञानिकों और नवाचारी किसानों में कृषि पर्यटन की चर्चा को आगे बढ़ाने की कोशिश निरंतर जारी है। इसके सुपरिणाम दस्तक देने लगे हैं। इसे व्यापक रूप से लागू करने के लिए, समन्वित प्रयासों की जरूरत है। कर्ज, कर्ज माफी, अनुदान, मुफ्त सहायता आदि के मायाजाल से किसानों का खास भला नहीं होता। तात्कालिक लाभ के लिए मोह, अन्नदाता को मानसिक विकलांगता ही देता है। निर्धनता के कारण कर्ज का अन्यत्र उपयोग करना पड़ जाता है। कृषि आदान बाजार से सीधे खरीदने पर, कई बार अनुदान व्यर्थ लगने लगता है। घालमेल के कारण ‘लेन-देन’ और खेत पर अनुदानित संसाधनों के न लगने के किस्से भी सुनाई देते हैं। इसलिए किसानों को इन सबके प्रदूषण से बचाने के लिए, सुझाए कृषि मॉडल पर ध्यान देना ही होगा।

सरकार समर्थन मूल्य पर, किसानों से कृषि उपज खरीदती है। बाजार शक्तियों और उन पर नियंत्रण रखने वाले तंत्र के ‘दोस्ताने’ से, किसानों का इसका वास्तविक लाभ नहीं मिल पाता। यदि सरकार समर्थन मूल्य से कम पर कृषि उपज खरीदने और उसका ऑनलाइन भुगतान न करने को दंडनीय अपराध घोषित कर दे, तो किसान शक्तिशाली वर्ग के शोषण से बच सकेगा। कृषक संचालित कृषि उद्योग बाजार शक्तियों को स्वीकार्य नहीं होगा। यह सुदृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति के बिना संभव नहीं। जिन किसान वैज्ञानिकों के बच्चे गांव में ही कृषि उद्योग में जुट गए, उनके घर-गांव की शक्ल ही बदल गई। वे कहने लगे कि कृषक संचालित कृषि उद्योग का मॉडल जमीनी शक्ल ले ले, तो पढ़े-लिखे ग्रामीण युवा शहरों-कस्बों में नौकरी तलाशने की जगह शहरी युवाओं को रोजगार देने लगेंगे। गांवों में कुटीर उद्योग विकसित कर आय के अतिरिकत संसाधन जुटा पाएंगे।

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