सीएम राइज स्कूलों के खराब परीक्षा परिणाम के सबक …?

सीएम राइज स्कूलों के खराब परीक्षा परिणाम के सबक ….
सीएमराइज स्कूलों में 100 फीसदी रिजल्ट पर भी फोकस किया जा रहा है, लेकिन छ: माही के परिणामों ने निराश कर दिया है।

ए क्सीलेंस और मॉडल स्कूल के बाद सीएम राइज स्कूलों में बेहतर शिक्षा के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। सरकार ने प्रदेश में लगभग 9200 विद्यालयों को सीएम राइज स्कूल के रूप में चिह्नित कर इन्हें नजी स्कूलों की तरह सर्वसुविधायुक्त विद्यालय बनाने का लक्ष्य रखा है। इसीलिए इनमें 100 फीसदी परीक्षा परिणाम पर भी फोकस किया जा रहा है, लेकिन इन सभी में छ: माही परीक्षा के परिणाम कदापि संतोषजनक नहीं हैं। सागर जिले की बात करें तो यहां के 11 सीएम राइज स्कूलों में कक्षा दसवीं में 1897 में से 650 विद्यार्थी फेल हो गए। ए प्लस परीक्षा परिणाम लाने वाले छात्र-छात्राएं केवल 27 हैं। वहीं कक्षा बाहरवीं की परीक्षा में 3415 छात्रों में से 916 फेल हो गए। बाहरवीं में ए प्लस में केवल 42 हैं। यह स्थिति तब है जब इस वर्ष बेहतर परिणाम के लिए स्कूल शिक्षा विभाग ने छ: माही परीक्षा एक माह देरी से ली थी। प्रदेश भर में ऐसा ही हाल है। अब बोर्ड परीक्षा के लिए केवल एक माह का समय रह गया, ऐसे में 100 फीसदी परीक्षा परिणाम लाना मुश्किल लग रहा है। साफ है कि ऐसे स्कूल खोलने के पीछे की सरकार की मंशा पूरी होती नजर नहीं आ रही है। ऐसा इसलिए है कि अधिकतर सीएम राइज स्कूलों में शिक्षकों की कमी है। खासकर कस्बाई इलाके के स्कूलों में पढ़ाने के लिए योग्य और पर्याप्त शिक्षक नहीं हैं। ग्रामाीण क्षेत्र के स्कूलों में बिजली पानी की समस्या है। स्कूलों में जगह की भी बहुत कमी है। इन सब अभावों के साथ सरकार आगे बढ़ती जा रही है। यही कारण है कि ये सफलता से सर्वथा दूर हैं। सरकार स्कूल शिक्षा सुधारने के लिए इन्हें ड्रीम प्रोजेक्ट के तौर पर लेकर आई है, पर शुरू से ही असुविधाओं व अव्यवस्थाओं का इसमें बोलबाला रहा है। वैसे तो स्कूलों को दिल्ली मॉडल की तरह विकसित किया जाना था, लेकिन लगभग 7000 करोड़ रुपए का मोटा बजट होने के बाद भी सरकार इन स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं करा पाई। इस प्रोजेक्ट की सीधे तौर पर सीएम ऑफिस से निगरानी भी नहीं की गई। सरकार भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर और इंदौर जैसे बड़े शहरों के सीएम राइज स्कूलों में पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध नहीं करा पाई तो निचले स्तर के स्कूलों से बेहतर परिणाम लाने की उम्मीद कैसे की जा सकती है। स्थिति सरकार के लिए सबक है कि वह पुख्ता और स्थायी कदम उठाए, तभी ये स्कूल उद्देश्य की पूर्ति कर पाएंगे।

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