पंजाब सरकार सुनिश्चित करे कि आम क्लिनिक बनाने से स्वास्थ्य तंत्र कमजोर न हो

स्वास्थ्य के क्षेत्र में क्या सुधार किए जाएं, यह किसी राज्य या जिले की परिस्थिति पर निर्भर करता है। इसका सबसे नया उदाहरण पंजाब से निकलकर आ रहा है। वहां पर नई सरकार ने दिल्ली के मोहल्ला क्लिनिक की तर्ज पर आम आदमी क्लिनिक चालू लिए हैं। लेकिन अब खबरें आ रही हैं कि आम आदमी क्लिनिक वहां के स्वास्थ्य तंत्र को मजबूत करने की बजाय कमजोर कर रहे हैं। इस पर समय रहते ध्यान देने की जरूरत है।

दरअसल, मोहल्ला क्लिनिक ने दिल्ली जैसे शहरी क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं को नया आयाम दिया। मोहल्ला क्लिनिक खोलने पर नए डॉक्टर और नर्स नियुक्त किए गए थे। सरकार ने वित्तीय आबंटन भी बढ़ाया। नए सेंटर बनाए गए, जो झुग्गी-झोपड़ियों और गरीब तबके के पास थे और इनसे डॉक्टरों और स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता बढ़ी।

इसके विपरीत, पंजाब में खोले गए आम आदमी क्लिनिक अधिकतर या तो पुराने केंद्रों का नया नाम हैं, या पहले से उपलब्ध डॉक्टरों की नई जगह पोस्टिंग कर दी जाती है। अपेक्षित वित्तीय आबंटन भी नहीं बढ़ा। पहले से स्थापित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को आम आदमी क्लिनिक का नाम देना चिंता का विषय और प्रतिगामी कदम है।

मोहल्ला क्लिनिक को देश भर में काफी तारीफ मिली है। मैं इस योजना को शुरुआती समय से सलाह-मशविरा देता रहा हूं और इस प्रकार के सामुदायिक क्लिनिक का बड़ा समर्थक हूं। शहरी क्षेत्र- जहां अस्पतालों में भीड़ लगी रहती है- वहां बीमारियों के उपचार के लिए तो इस तरह के क्लिनिक सही समाधान हैं, लेकिन ये ग्रामीण क्षेत्रों के लिए उचित नहीं।

ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को एकीकृत स्वास्थ्य सेवाएं चाहिए, जो बीमारियों से बचाव करें, मलेरिया-टीबी से बचाव-इलाज करें, टीकाकरण व गर्भवती महिलाओं की जांच और डिलीवरी इत्यादि करें, साथ ही बीमार का इलाज करें। यह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से ही सम्भव है।

दिल्ली के मोहल्ला क्लिनिक इसी समग्र विचार से शुरू किए गए थे कि धीरे-धीरे ये प्रिवेंटिव सुविधाएं और कम्युनिटी में जाकर लोगों की जांच और इलाज पर ध्यान देंगे और उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार करेंगे। आज से करीब सात साल पहले दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री के कक्ष में ऐसे प्रस्ताव पर सहमति भी बनी थी, लेकिन मोहल्ला क्लिनिक के माध्यम से स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार नहीं हो पाया है। ऐसे में पंजाब सरकार द्वारा बिना पूरी योजना को समझे- सिर्फ बीमारी के इलाज पर ध्यान देने वाली योजना- जिससे पहले से बने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र कमजोर हो रहे हैं- पर पुनर्विचार करने की जरूरत है।

सरकारें स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार कई सालों में एक बार करती है। ऐसे में कोई भी सुधार उस राज्य या जिले की परिस्थिति के आधार पर किए जाने चाहिए। मोहल्ला क्लिनिक से प्रेरणा लेते हुए, तेलंगाना राज्य ने अप्रैल 2018 में बस्ती दवाखाना बनाना शुरू किए थे।

उसके कई कदम मोहल्ला क्लिनिक से भी बेहतर हैं लेकिन इनपर इतना ध्यान नहीं दिया जाता क्योंकि ये मीडिया की चमक और राजधानी से दूर हैं। इसी तरह, केंद्र सरकार ने 2018 में आयुष्मान भारत कार्यक्रम के तहत 150,000 हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर की घोषणा की थी।

इस योजना में कई अच्छे कदम थे, जिनमें स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता बढ़ाना, बिल्डिंग की मरम्मत और रखरखाव के लिए पैसा देना भी शामिल था। वर्ष 2022 के अंत तक आधिकारिक रूप से 150,000 हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर्स बन भी गए हैं।

सवाल है कि क्या इनसे स्वास्थ्य सेवाएं आसानी से मिलने लगी हैं और क्या अब लोग पहले से स्वस्थ हैं? जवाब है कि ज्यादा बदलाव नहीं हुआ। वजह यही कि हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर्स भी कोई नए केंद्र नहीं हैं बल्कि दशकों से बने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और उपस्वास्थ्य केंद्रों का नया नाम मात्र हैं।

सरकारों को अधिक जिम्मेदार होने की जरूरत है और स्वास्थ्य सुधारों के लिए सतही नहीं ठोस कदम उठाने चाहिए। पंजाब सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि आम आदमी क्लिनिक बनाने में कहीं स्वास्थ्य तंत्र कमजोर न हो जाए। दिल्ली में मोहल्ला क्लिनिक को समग्र स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने की ओर बढ़ना चाहिए।

केंद्र सरकार को हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर का स्वतंत्र आकलन करवाना चाहिए कि जो सोचा गया था, वह हो रहा है? सरकारें लोगों की जरूरतों को केंद्र में रखेंगी, तभी स्वास्थ्य सेवाएं सुधरेंगी और भारत एक स्वस्थ देश बन सकेगा। दिल्ली में मोहल्ला क्लिनिक को समग्र स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने की ओर बढ़ना चाहिए। वहीं केंद्र सरकार को हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर का स्वतंत्र आकलन करवाना चाहिए कि जो सोचा गया था, वह हो रहा है?

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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