कांशीराम – 21 साल की मायावती से कहा था- तुम्हारे पीछे IAS अफसरों की लाइन लगा दूंगा
कांशीराम के जन्मदिन पर उनसे जुड़े दिलचस्प किस्से …
टीवी प्रोग्राम आप की अदालत का सेट। कांशीराम कठघरे में बैठे हैं। पत्रकार रजत शर्मा सवाल पूछते हैं- ‘आपके सहयोगी बताते हैं कि आपने जब मूवमेंट चलाया था तो 3 कसमें खाई थीं। पहली- कभी शादी नहीं करूंगा, दूसरी- कभी संपत्ति नहीं बनाऊंगा और तीसरी- कभी सत्ता की कुर्सी पर नहीं बैठूंगा।’
कांशीराम बड़ी सहजता से जवाब देते हैं- ‘तीन नहीं दो प्रतिज्ञा ली थी। मेरी कोई फैमिली नहीं होनी चाहिए। मेरे ऊपर पैसे का कोई इल्जाम न लगे, इसलिए प्रॉपर्टी भी नहीं होनी चाहिए। मुझे कुर्सी पर नहीं बैठना है, ये तो कभी नहीं सोचा था। ये जरूर सोचा था कि मुझे कुर्सी पर ही बैठना है। कुर्सी नहीं तो तीन गद्दे बिछाकर, कुर्सी जितना ऊंचा कर दो।’
कांशीराम की इस हाजिर जवाबी से वहां मौजूद ऑडिएंस और खुद रजत शर्मा खिलखिलाकर हंस पड़े।
बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम का आज जन्मदिन है। उन्होंने दलित समाज को एकजुट किया और उन्हें राजनीतिक समाज में बदलकर पहली बार सत्ता का स्वाद चखाया। जन्मदिन पर हम उनसे जुड़े 7 दिलचस्प किस्से पेश कर रहे हैं…
1. सरकारी नौकरी छोड़ शुरू की दलितों की राजनीति
कांशीराम का जन्म 15 मार्च 1934 को पंजाब के रोपड़ जिले के खवासपुर गांव में हुआ था। वह रैदास जाति के थे। परिवार ने उनके जन्म के बाद धर्म परिवर्तन कर लिया और रैदासी सिख हो गए।
‘बहनजी’ नाम की किताब लिखने वाले अजय बोस बताते हैं, ‘सिख समाज में धर्म परिवर्तन करके शामिल हुए दलितों की वह हैसियत तो नहीं होती जो ऊंची जातियों की होती है, लेकिन उन्हें हिन्दू समाज के दलितों की तरह लगातार अपमान और दमन का सामना नहीं करना पड़ता था।’
1956 में कांशीराम ग्रेजुएट हो गए। उसी साल आरक्षित कोटे से केंद्र सरकार में नौकरी लग गई। 1958 में उनकी नौकरी पुणे के पास किरकी के DRDO में लग गई। यहां वह गोला-बारूद फैक्ट्री की लेबोरेट्री में असिस्टेंट के पद पर थे। नौकरी के दौरान ही एक घटना हुई, जिसके बाद वो राजनीति की तरफ मुड़े।
कांशीराम की जीवनी लिखने वाले प्रो. बद्रीनारायण के मुताबिक, ‘उन्हीं के ऑफिस में फुले के नाम पर कोई छुट्टी रद्द कर दी गई। इसका उन्होंने विरोध किया। तमाम कवायद के बाद दलित कर्मचारी एकजुट हुए तो वो छुट्टी वापस रीस्टोर कर दी गई। यहां से उन्हें समझ आ गया कि जब तक दलित कर्मचारी इकट्ठा नहीं होंगे, तब तक हमारी बात नहीं सुनी जाएगी।’
2. ‘हरवाहा से हाकिम’ बनने का सूत्र दिया
पढ़े-लिखे और नौकरी-पेशा दलितों को एकजुट करने के लिए कांशीराम ने 14 अप्रैल 1973 को ऑल इंडिया बैकवर्ड माइनॉरिटी कम्युनिटीज एम्प्लॉइज फेडरेशन का गठन किया। इसे शॉर्ट में बामसेफ कहा गया। कांशीराम कहते थे कि एजुकेट द एजुकेटेड पर्सन यानी पढ़े-लिखों को समझाना है।
80 के दशक में बामसेफ की बैठकों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वाले संजय निषाद एक इंटरव्यू में बताते हैं, ‘कांशीराम कहते थे जब तक दलितों के मस्तिष्क में दूसरी पार्टियों का कब्जा होगा, तब तक उनके घर हरवाहा पैदा होगा। अगर दलितों के मस्तिष्क में उनकी पार्टी का कब्जा होगा, तो उनके घर हाकिम पैदा होगा।’
नौकरीपेशा दलितों को एकजुट करने का ये प्रयोग काफी सफल रहा। 1981 के अंत में इस संगठन को नया किया और नाम दिया दलित शोषित समाज संघर्ष समिति यानी DS-4। 1984 में बहुजन समाज पार्टी की शुरुआत हुई।

3. 21 साल की मायावती में देख लिया था भविष्य का दलित नेता
1977 की बात है। मायावती उस वक्त सिर्फ 21 साल की थीं और दिल्ली के एक सरकारी प्राइमरी स्कूल में पढ़ाती थीं। इसके साथ ही वो IAS की तैयारी भी कर रही थीं।
प्रो. बद्रीनारायण के मुताबिक, ‘दिल्ली के किसी कार्यक्रम में कांशीराम ने मायावती को जोरदार स्पीच देते सुना। अगले दिन वो एक और सहयोगी के साथ मायावती के घर पहुंचे। कांशीराम ने मायावती से पूछा कि तुम क्या बनना चाहती हो। मायावती ने कहा कि मैं आईएएस बनकर समाज की सेवा करना चाहती हूं। इसके बाद कांशीराम ने कहा कि हम तुम्हें ऐसा पद दे देंगे कि बहुत सारे आईएएस तुम्हारे आगे-पीछे घूमेंगे।’
कांशीराम ने मायावती के पिता से उन्हें मूवमेंट में शामिल करने की मांग की, लेकिन पिता ने बात को टाल दिया। पिता की मर्जी के खिलाफ मायावती ने अपना घर छोड़ दिया और पार्टी ऑफिस में जाकर रहने लगीं।

3 जून 1995 को जब कांशीराम ने मायावती को मुख्यमंत्री बनाया तो वो उत्तर प्रदेश की सबसे युवा और पहली दलित महिला मुख्यमंत्री थीं। कांशीराम ने 2001 में मायावती को अपना उत्तराधिकारी भी घोषित किया।
4. दलितों पर ज्यादती बर्दाश्त नहीं कर पाते थे कांशीराम
कांशीराम पर किताब लिखने वाले एस.एस. गौतम कांशीराम के शुरुआती दिनों का एक किस्सा बताते हैं। एक बार कांशीराम किसी ढाबे में बैठे थे। वहां कुछ ऊंची जाति के लोग आपस में बात कर रहे थे। उनकी बात का मजमून ये था कि उन्होंने सबक सिखाने के लिए दलितों की जमकर पिटाई की है। इसे सुनकर कांशीराम बिफर पड़े। वहां मौजूद कुर्सियां उठाकर उन्हें मारने दौड़े।

कांशीराम को दलितों की कीमत पता थी। वो अकसर कहते थे कि देश की 85% आबादी पर 15% लोग शासन कर रहे हैं। प्रो. बद्रीनारायण के मुताबिक एक बार किसी बड़े नेता ने कांशीराम को मिलने के लिए बुलावा भेजा। कांशीराम ने जवाब दिया कि उन्हें मिलना है तो वो मेरे पास आएं।
5. नारे लगाने से पहले कहते थे, ऊंची जाति के लोग चले जाएं
‘बहनजी’ किताब में अजय बोस लिखते हैं, ‘एक बार कांशीराम मंच पर भाषण देने के लिए खड़े हुए। उन्होंने पहली लाइन में कहा, अगर श्रोताओं में ऊंची जाति के लोग हों तो अपने बचाव के लिए वे वहां से चले जाएं।’ कांशीराम के कुछ चर्चित नारे…
तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार।
वोट हमारा, राज तुम्हारा, नहीं चलेगा नहीं चलेगा।
जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी।
वोट से लेंगे CM/PM, आरक्षण से लेंगे SP/DM
ठाकुर, ब्राह्मण, बनिया छोड़, बाकी सब हैं DS-4
6. राष्ट्रपति पद का ऑफर ठुकराया, कहा- मैं तो प्रधानमंत्री बनूंगा
प्रो. बद्रीनारायण के मुताबिक, ‘एक बार अटल बिहारी वाजपेयी ने कांशीराम को राष्ट्रपति बनाने का ऑफर दिया। कांशीराम ने कहा राष्ट्रपति क्या, मैं तो प्रधानमंत्री बनना चाहता हूं। यानी कांशीराम को कोई बरगला नहीं सकता था। वो दूसरी पार्टियों के नेता को चमचा कहते थे, जो 5 या 10 सीट में भी संतुष्ट हो जाते थे।’
7. ‘नींबू की तरह क्यों निचोड़ेंगे, वैसे ही छोड़ देंगे’
रजत शर्मा के शो आप की अदालत की बात है। रजत ने कांशीराम से पूछा- 4 साल में आपने मुलायम, नरसिम्हा राव, अकाली दल, बीजेपी, शाही इमाम के साथ समझौता किया और तोड़ दिया। अगला समझौता किसके साथ होगा और किसके साथ तोड़ेंगे।
कांशीराम बोले- अभी आप बताइए कौन-कौन बचा है। अगर कोई बचा है तो उनके साथ करेंगे अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए।
रजत शर्मा कहते हैं कि ‘आपकी बातों से लगता है कि आप सत्ता में आने के लिए किसी का भी इस्तेमाल कर लेंगे। नींबू की तरह निचोड़कर नरसिम्हा राव को फेंक देंगे।’
जवाब में कांशीराम कहते हैं- ‘नींबू की तरह निचोड़कर नहीं, वैसे ही छोड़ देंगे। निचोड़ने की क्या जरूरत है।’

90 के दशक के मध्य तक कांशीराम की डायबिटीज और ब्लड प्रेशर की समस्या बढ़ गई। 1994 में उन्हें दिल का दौरा पड़ा। 2003 में उन्हें ब्रेन स्ट्रोक हो गया। लगातार खराब होती सेहत ने 2004 तक आते-आते उन्हें सार्वजनिक जीवन से दूर कर दिया। आखिरकार 9 अक्टूबर 2006 को दिल का दौरा पड़ने से कांशीराम की मृत्यु हो गई।