नोएडा में स्ट्रक्चरल ऑडिट पॉलिसी लागू

इमारतों की मजबूती की जांच के बिना अप्रैल से नहीं मिलेगी ओसी-सीसी …

– नोएडा में स्ट्रक्चरल ऑडिट पॉलिसी लागू, मांग के आधार पर पुरानी इमारतों की भी हो सकेगी जांच
– स्ट्रक्चरल ऑडिट लागू करने वाला यूपी का पहला शहर बना नोएडा

नोएडा। प्रदेश में पहली बार नोएडा में बहुमंजिला इमारतों की स्ट्रक्चरल ऑडिट पॉलिसी लागू कर दी गई है। पहली अप्रैल से शहर में इमारतों की संरचना की जांच के बाद ही ऑक्यूपेंसी और कंप्लीशन सर्टिफिकेट (ओसी-सीसी) जारी किए जाएंगे। यही नहीं, पुरानी इमारतों की मजबूती की भी जांच की जा सकेगी। नोएडा प्राधिकरण की सीईओ रितु माहेश्वरी ने इसे तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया है।

आदेश के तहत अप्रैल से ओसी या सीसी मांगने वाले बिल्डर को ऑनलाइन आवेदन के साथ ऑडिट के लिए चयनित पैनल में से किसी एक संस्था से स्ट्रक्चरल ऑडिट की रिपोर्ट हासिल कर प्राधिकरण में जमा करानी होगी। स्ट्रक्चरल ऑडिट के तहत इमारतों के सुरक्षित होने की रिपोर्ट मिलने के बाद ही आंशिक या पूर्ण कंप्लीशन सर्टिफिकेट जारी किए जाएंगे। आदेश में कहा गया है कि जिन मामलों में अपार्टमेंट ओनर्स एसाेसिएशन (एओए) या 25 प्रतिशत आवंटियों की ओर से स्ट्रक्चरल ऑडिट की मांग की जाएगी उनमें प्रावधानों के अनुरूप गठित समिति नियम के मुताबिक कार्रवाई करेगी। हालांकि जिन इमारतों के लिए 31 मार्च 2023 तक आंशिक या पूर्ण सीसी लेने के लिए आवेदन किया गया है। उनको सक्षम स्तर से स्ट्रक्चरल वेटिंग का प्रमाण पत्र जमा करना होगा।

खास बात यह कि ऑडिट के लिए बिल्डर या एओए की ओर से शुल्क का भुगतान किया जाएगा। ऑडिट के लिए भुगतान की जाने वाली धनराशि की दर का निर्धारण बिल्डर या एओए तथा पैनल में शामिल संस्थान की आपसी सहमति से होगा। दरअसल, नोएडा प्राधिकरण की 207वीं बोर्ड बैठक में क्षेत्र के बहुमंजिला इमारतों की मजबूती की जांच के लिए स्ट्रक्चरल ऑडिट पॉलिसी को मंजूरी दी गई थी। बोर्ड में ऑडिट कराने के लिए क्षेत्र के प्रतिष्ठित संस्थानों मसलन आईआईटी, एनआईटी या समकक्ष संस्थानों की सूची बनाने की बात कही गई थी।

यह हैं पैनल में शामिल संस्थान ….
– दिल्ली टेक्निकल यूनिवर्सिटी, दिल्ली
– आईआईटी कानपुर
– एमएनआईटी, इलाहाबाद
– बीआईटीएस, पिलानी
– एएमयू, अलीगढ़
– एमएनआईटी, जयपुर
– सीबीआरआई रुड़की

स्ट्रक्चरल ऑडिट पॉलिसी के मुख्य बिंदु …
– प्राधिकरण की ओर से आंशिक या पूर्ण ओसी-सीसी जारी करने से पहले पैनल में शामिल संस्थान के माध्यम से बिल्डर या एओए के खर्च पर हाईराइज टावरों की मजबूती की जांच कराना जरूरी होगा। रिपोर्ट में सबकुछ ठीक पाए जाने पर ही ओसी या सीसी मिलेगी।

– किसी भी परियोजना का ओसी-सीसी जारी होने के बाद पांच वर्ष तक की समय सीमा तक स्ट्रक्चरल ऑडिट का दायित्व बिल्डर का होगा। बिल्डर की ओर से ऑडिट में पाई गई कमियों का समाधान कराया जाएगा।

– पांच वर्ष की अवधि समाप्त होने के बाद ऑडिट के खर्च की जिम्मेदारी एओए की होगी।
– किसी भी प्रोजेक्ट का आंशिक या अंतिम ओसी-सीसी जारी होने के बाद यदि उसके किसी टावर के 25 प्रतिशत अथवा उससे अधिक आवंटियों की ओर से इमारत की संरचना में किसी तरह की कमी की शिकायत की जाती है तो प्राधिकरण स्तर पर प्राप्त शिकायत का परीक्षण समिति के माध्यम से किया जाएगा।
– अलग-अलग मामलों में समिति को विशिष्ट तकनीकी सहायता प्रदान किए जाने के लिए पैनल में शामिल संस्थानों में से किसी एक को उक्त समिति के अध्यक्ष की ओर से समिति का सदस्य नामित किया जा सकता है। शिकायत प्राप्त होने के बाद समिति द्वारा स्थल निरीक्षण और अभिलेखों का अध्ययन करने के बाद कुछ बिंदुओं पर अपनी रिपोर्ट दी जाएगी। इसमें यह पता लगाया जाएगा कि शिकायत वाली परियोजना का ओसी-सीसी मिला है या नहीं। अगर जारी हुआ है तो यह कब हुआ है। शिकायत में जो कमियां हैं वह बड़ी है या फिर छोटी-मोटी समस्या हैं।
– यदि समिति की ओर से यह संस्तुति की जाती है कि यह छोटी-मोटी समस्या है तो प्राधिकरण की ओर से इसके समाधान के लिए बिल्डर को तत्काल नोटिस जारी किया जाएगा। बिल्डर या एओए की ओर से इसका निराकरण 03 माह में कराना होगा।
– यदि समिति यह पाती है कि इमारत की मजबूती को लेकर काफी बड़ी समस्या है और स्ट्रक्चरल ऑडिट के बाद प्राप्त रिपोर्ट के आधार पर ही उसका निराकरण किया जा सकता है तो ऐसी हालत में स्ट्रक्चरल ऑडिट कराना जरूरी होगा। परियोजना एओए को सौंपने के बाद एओए की ओर से प्रस्ताव दिए जाने की दशा में भी कार्रवाई की जाएगी। समिति की संस्तुति के आधार पर पैनल में शामिल संस्था के माध्यम से स्ट्रक्चरल ऑडिट कराना होगा। यह ऑडिट समिति की संस्तुति पर सीईओ के आदेश के बाद करीब एक माह में बिल्डर या एओए की ओर कराया जाना सुनिश्चित करना होगा। इसका खर्च बिल्डर या एओए करेगा।
-यदि बिल्डर या एओए ऑडिट नहीं कराता है तो प्राधिकरण उसे एक माह में ऑडिट कराने का नोटिस जारी करेगा। यदि बिल्डर फिर भी तय समय में ऑडिट नहीं कराता है तो प्राधिकरण खुद ही यह ऑडिट कराएगा। लेकिन खर्च की राशि बिल्डर से वसूली जाएगी। अगर बिल्डर पैसे नहीं देता तो यह पैसे उसके आवंटन के समय बकाये की राशि में जोड़ दी जाएगी।
-बिल्डर को बड़े मामलों में एक माह से लेकर छह माह में काम पूरा करना होगा। जरूरत पड़ने पर आवश्यकता के अनुसार समिति इसकी अवधि बढ़ाएगी।
-यदि एक माह में बिल्डर या एओए काम शुरू नहीं करता है तो प्राधिकरण की ओर से इंडस्टि्रयल एरिया डेवलपमेंट एक्ट-1976 में दिए गए प्रावधानों के अनुरूप कार्रवाई की जाएगी। ताकि किसी प्रकार की जन-धन की हानि न हो।

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