भोपाल । आठ माह बाद मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इस दृष्टि से विधानसभा का बजट सत्र काफी महत्वपूर्ण था, लेकिन कांग्रेस इसमें भी सरकार को घेरने में सफल नहीं रही। पार्टी महंगाई, बेरोजगारी, कानून व्यवस्था के मुद्दे पर प्रभावी उपस्थिति दर्ज नहीं करा सकी। ऐसा एक भी मुद्दा नहीं उठा, जिसमें सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा हो। पार्टी में बिखराव भी नजर आया।

विधायक जीतू पटवारी को पूरे सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया, लेकिन किसी ने उनकी बहाली को लेकर पहल नहीं की। विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव भी लाया गया, लेकिन उसे लेकर दबाव बनाने में भी विपक्ष विफल रहा। जब प्रस्ताव पर निर्णय होने थे तो कांग्रेस के कुछ विधायक ही सदन में उपस्थित थे।

बजट सत्र लंबा रहा, इसमें 12 बैठकें हुईं, पर कांग्रेस केवल हंगामा करती रही। कांग्रेस न तो किसानों पर बेमौसम आई आपदा के मुद्दे पर चर्चा कराने में सफल हो सकी, न ही 10-12वीं बोर्ड परीक्षा के पेपर लीक मामले में सरकार को घेर पाई। पीसी शर्मा सहित अन्य विधायकों ने स्थगन प्रस्ताव अवश्य दिए, पर इसे स्वीकार करने को लेकर दल दबाव नहीं बना पाया।
आदिवासियों पर अत्याचार का मामला भी नारेबाजी तक ही सिमट कर रह गया। जीतू पटवारी को सत्ता पक्ष ने प्रस्ताव लाकर पूरे सत्र के लिए निलंबित करा दिया, पर उनकी बहाली को लेकर दल की ओर से कोई पहल ही नहीं की गई। पटवारी ने जिन मुद्दों का उठाया था, उन पर कोई बात तक नहीं हुई। इससे संदेश गया कि पार्टी में बिखराव भी है। संसदीय कार्य मंत्री डा. नरोत्तम मिश्रा ने तंज कसते हुए कहा भी कि ऐसा विपक्ष आज तक नहीं देखा, जिसका विधायक निलंबित हो गया हो, उसकी बहाली को लेकर किसी ने एक शब्द तक नहीं कहा।
उधर, नेता प्रतिपक्ष डा. गोविंद सिंह इससे सहमत नहीं हैं। उन्होंने कहा कि हमने सभी मुद्दे उठाए। सरकार जब जवाब देने को तैयार ही नहीं है तो क्या किया जा सकता है। विपक्ष के पास बहिर्गमन कर विरोध जताने का हथियार होता है, उसका उपयोग किया गया।
बजट पर चर्चा के दौरान सदस्यों ने प्रभावी तरीके से बात रखी। राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान भी पूरी दमदारी से हमने पक्ष रखा है। पूर्व वित्त मंत्री तरुण भनोत ने भी कहा कि हमने विपक्ष की भूमिका निभाई है। सरकार ने वित्तीय स्थिति को लेकर बार-बार पूछने के बाद भी अपना पक्ष स्पष्ट नहीं किया। अब जनता की अदालत में जवाब मांगा जाएगा।