हर किसी को मयस्सर नहीं होता बंगला

हर किसी को मयस्सर नहीं होता बंगला …..

– विधायकों में भी रसूख हावी: 45 के पास आलीशन बंगला, 127 कमरों में बिता रहे विधायकी

– राहुल गांधी के बंगले पर बवाल के बीच मप्र में सरकारी बंगलों की पड़ताल
– 26 विधायकों को निजी आवास ही पसंद, रसूख के बल पर नए विधायक भी बंगलों में
– वरिष्ठ होने पर भी कमजोर विधायक कक्षों में गुजारे को मजबूर

भोपाल
जिसकी लाठी, उसकी भैंस…यह सिर्फ कहावत नहीं, रसूखदारों पर सटीक बैठती भी है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी के दिल्ली में सरकारी बंगले को खाली कराने के नोटिस पर मचे सियासी बवंडर के बीच मध्यप्रदेश में भी विधायकों के सरकारी बंगलों की अलग ही कहानी सामने आई। यहां भी रसूख और दमदारी से ही बंगलों में एंट्री मिली है।
प्रदेश में सीएम और मंत्रियों के अलावा 45 विधायकों के पास ही सरकारी बंगले हैं, जबकि 127 विधायक विश्रामगृहों के कमरे में रहते हैं। वहीं 26 विधायक ऐसे हैं, जिन्हें अपने निजी आवासों में ही रहना पसंद हैं। खास ये कि भाजपा-कांग्रेस दोनों में पार्टी की बजाय व्यक्तिगत कद ही बंगला दिलाता है।

दमदार विधायक सत्ता हो या नहीं, बंगलों में ‘ठाठ्’ से रहता है, जबकि सत्तारूढ़ दल से होने के बावजूद रसूख में कमी बंगले से दूर कर देता है। वहीं ऐसे भी मामले हैं कि विधानसभा के रिकार्ड में कक्ष आवंटित है, जबकि विधायक ने बंगला ले लिया है। इसके अलावा रिकार्ड पर कक्ष आवंटित हो गया, लेकिन कब्जा नहीं मिला ऐसे केस भी हैं। कुल-मिलाकर चलती रसूखदार की ही है।

यहां ऐसा नोटिस का खेल
पूर्व विधायकों को बंगले-कक्ष खाली करने के लिए नोटिस दिए जाते हैं, लेकिन दमदार नेता खाली नहीं करते। फिर कागज पर रस्मअदायगी चलती रहती है। कमलनाथ सरकार बनी थी, तब भाजपा के पूर्व मंत्रियों को बंगले से बाहर किया गया था। कुछ बाहर हुए, लेकिन कुछ जमे रहे। फिर भाजपा सरकार आई तो कांग्रेस के 24 पूर्व मंत्रियों को बंगला छोडने का नोटिस दिया गया। इसके बावजूद भी कुछ ने बंगला नहीं छोड़ा।

भाजपा का ऐसा हाल
सीएम व मंत्रियों को छोड़ दें तो भाजपा के सिर्फ 20 विधायक बंगलों में रहते हैं। इनमें नए विधायक कृष्णा गौर व आकाश विजयवर्गीय से लेकर वरिष्ठ विधायक गौरीशंकर बिसेन व अजय विश्नोई जैसे नाम शामिल हैं। वहीं विश्राम गृहों के कक्षों में भाजपा के 62 विधायक हैं। इनमें पूर्व मंत्री महेंद्र हार्डिया जैसे नाम तक शामिल हैं।

कांग्रेस में यह स्थिति
कांग्रेस विधायकों में 19 बंगले में रहते हैं। इनमें लक्ष्मण सिंह, कांतिलाल भूरिया जैसे वरिष्ठ विधायकों से लेकर जीतू पटवारी व कुणाल चैधरी जैसे युवा विधायक भी हैं। वहीं विश्राम गृहों के कक्षों में 64 विधायक रहते हैं। इनमें कई वरिष्ठ पूर्व मंत्री बाला बच्चन, कमलेश्वर पटेल, सुखदेव पांसे, प्रियव्रत सिंह, सचिन यादव व सुरेंद्र सिंह बघेल तक शामिल हैं।
फैक्ट फाइल-
– 45 कुल विधायक बंगलों में
– 20 भाजपा विधायक बंगलों में
– 19 कांग्रेस विधायक बंगलों में
– 03 सपा-बसपा विधायक बंगलों में
– 03 निर्दलीय विधायक बंगलों में
– 127 कुल विधायक विश्राम गृह कक्षों में
– 62 भाजपा विधायक कक्षों में
– 64 कांग्रेस विधायक कक्षों में
– 01 निर्दलीय विधायक कक्ष में
– 26 विधायक निजी निवासों में
– 31 सीएम-मंत्री अलग बंगलों में
ये भी खास
– कांग्रेस सरकार में जो गृहमंत्री थे और जो खुद बंगले आवंटित करते थे, वो बाला बच्चन अब विधायक विश्राम गृह के कक्ष में हैं। इन्हें नोटिस देकर बंगला खाली कराया गया था।
– पहली बार की विधायक कृष्णा गौर जिस आलीशान बंगले में रहती हैं, वह बंगला उनके ससुर पूर्व सीएम स्व. बाबूलाल गौर को मिला था। बाद में गौर मंत्री रहे। उनके निधन के बाद से बंगला कृष्णा के पास है।
– आकाश विजयवर्गीय, अनिरुद्ध मारू सहित कुछ विधायक ऐसे भी हैं, जिन्हें पहली बार विधायक बनने के बाद ही आलीशान बंगले मिल गए। इसमें पार्टी के भेद से ज्यादा निजी संबंध व कद महत्वपूर्ण रहा।
– पूर्व मंत्री व कांग्रेस विधायक सचिन यादव को विश्राम गृह में कक्ष आवंटित हैं, लेकिन उसका कब्जा नहीं मिला। यह कक्ष पूर्व में मंत्री ऊषा ठाकुर को अलॉट था, तो उनके स्टॉफ ने खाली ही नहीं किया। इस पर सचिन ने पत्र भी लिखा है।
चंद किस्से ऐसे भी
– दिग्विजय सिंह ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्यमंत्रियों को बंगले न देने संबंधित फैसले के बाद बंगला खाली कर दिया था। बाद में राज्यसभा सांसद बनने पर वापस लिया। वहीं उमा भारती ने बंगला खाली नहीं किया था। बाद में सीएम शिवराज ने उन्हें विशेषाधिकार के तहत आवंटित रखा।
– कमलनाथ सरकार गिरने के बाद पूर्व मंत्रियों को बंगले खाली करने नोटिस दिए गए। तब लॉकडाउन का हवाला देकर कई नेताओं ने समय मांगा था। कई दिग्गजों के यहां पर प्रशासन की टीमें बंगला खाली कराने पहुंची थी। कुछ ने मोहलत के लिए पत्र भी लिखा, लेकिन अंततरू बंगला खाली करना पड़ा।
– केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को शिवराज सरकार के मौजूदा कार्यकाल में बंगला मिला। इससे पहले कमलनाथ सरकार के आवेदन के बावजूद बंगला नहीं मिला था। बरसों तक सिंधिया ने भोपाल में बंगला नहीं लिया था।
किसका क्या कहना-
मैं भी कर सकता था बाहर, पर नहीं किया
बंगलों के आवंटन में मनमर्जी चल रही है। जब कांग्रेस सरकार गिराई तो मुझसे बारिश के गिरते पानी में बंगला खाली कराया था। मौजूदा गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा से मैं चाहता तो कांग्रेस सरकार के समय बंगला खाली करा सकता था, लेकिन नहीं कराया। मुझसे जरूर उन्होंने खाली कराया। वरिष्ठता के हिसाब से बंगला देना चाहिए। इसके लिए नियम भी रिफॉर्म होना चाहिए।
– बाला बच्चन, पूर्व गृहमंत्री व कांग्रेस विधायक
राजनीति में वरिष्ठता-कनिष्ठता नहीं चलती। समय के हिसाब से काम होता है। वैसे, वरिष्ठता के आधार पर बंगले का नियम होना चाहिए। बंगला न भी मिले तो कोई शिकायत नहीं है। कक्ष में भी संतुष्ट हूं, यह सब चलता है।
– महेंद्र हार्डिया, पूर्व मंत्री व भाजपा विधायक
पहले विश्राम गृह में कक्ष था, अब बंगला मिल चुका है। पहली बार के विधायक को बंगला नहीं मिल सकता ऐसा नहीं है। नियम से ही बंगला मिला है। सभी विधायकों को बंगले देना चाहिए, क्योंकि क्षेत्र के लोग आते हैं तो जगह जरूरी रहती है।
– अनिरूद्ध मारू, भाजपा विधायक, मनासा
मुझे पहले बंगला नहीं मिला था तो विश्राम गृह के कक्ष में रहना पड़ा था। बाद में बंगला मिल गया तो कक्ष छोड़ दिया। यह तो ऐसे ही चलता है। बंगला ऐसे ही प्रयास से मिलता है।
– करण सिंह वर्मा, पूर्व मंत्री व भाजपा विधायक

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