हेट स्पीच पर नेताओं को क्यों नहीं मिल पाती है आजम खान जैसी सजा?
हेट स्पीच पर नेताओं को क्यों नहीं मिल पाती है आजम खान जैसी सजा? कानून एक्सपर्ट ने बताई असली वजह
Hate Speech Cases: सबसे खास बात ये है कि इस सेक्शन के तहत दर्ज होने वाले कुल मामलों में कन्विक्शन रेट काफी ज्यादा नीचे है. यानी मामले तो दर्ज हो जाते हैं, लेकिन आरोपी दोषी साबित नहीं हो पाता है.
अब तक आपने हेट स्पीच के मामलों में कोर्ट की फटकार या फिर पुलिस की एफआईआर के बारे में तो खूब सुना होगा, लेकिन कभी इतनी बड़ी सजा का मामला आपके सामने नहीं आया. इसका साफ कारण ये है कि हेट स्पीच के मामले तो आग की तरह बढ़ रहे हैं, लेकिन इनमें कन्विक्शन (दोषी करार दिया जाना) रेट काफी कम है. ये हम नहीं बल्कि आंकड़े कह रहे हैं.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) की हालिया रिपोर्ट में हेट स्पीच को लेकर चौंकाने वाला खुलासा हुआ था. इसमें बताया गया था कि पिछले सात सालों में हेट स्पीच के सबसे ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं. ऐसे मामलों में रिकॉर्ड 500 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. NCRB डेटा के मुताबिक साल 2014 में हेट स्पीच के सबसे कम 323 मामल दर्ज किए गए, जो साल 2020 में बढ़कर 1804 हो गए. ये हेट स्पीच के सबसे ज्यादा मामले थे. गौर करने वाली बात ये है कि ये वो मामले हैं जो पुलिस में दर्ज किए गए, कई मामलों में तो पुलिस तक शिकायत भी नहीं पहुंच पाती है.
नेताओं के खिलाफ सबसे ज्यादा मामले
हेट स्पीच और नेताओं का पुराना नाता रहा है, लेकिन पिछले कुछ सालों में नेताओं ने जमकर राजनीतिक फायदे किए लिए इसका इस्तेमाल किया है. एसोशिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की 2018 की रिपोर्ट में बताया गया था कि देश के 58 विधायकों और सांसदों ने ये माना है कि उनके खिलाफ हेट स्पीच के मामले दर्ज हैं. जिसमें बीजेपी नेता सबसे ज्यादा संख्या में हैं. जिसमें बीजेपी के 17 विधायक और 10 सांसद शामिल थे.
हेट स्पीच पर क्या है कानून?
हेट स्पीच वो होती है जिसमें किसी खास धर्म के लोगों या समुदाय या खास वर्ग के खिलाफ हिंसा, नस्ल, धर्म और लिंग संबंधी कोई टिप्पणी की जाती है. खास बात ये है कि हेट स्पीच पर कोई विशेष कानून नहीं बनाया गया है. नफरत और हिंसा फैलाने संबंधी धाराओं के तहत हेट स्पीच मामलों में केस दर्ज किया जाता है. भारतीय दंड संहिता की धारा 153 और 295ए के तहत इसे परिभाषित किया जाता है. जिसमें हिंसा और दंगा भड़काने के लिए उकसाने वाले और धार्मिक भावनाएं भड़काने के तमाम मामले दर्ज होते हैं. अगर हेट स्पीच ऑनलाइन तरीके से हुई है, यानी सोशल मीडिया के जरिए हेट स्पीच का मामला आता है तो इसे आईटी एक्ट के सेक्शन 66ए के तहत दर्ज किया जाता है.
सबसे खास बात ये है कि इस सेक्शन के तहत दर्ज होने वाले कुल मामलों में कन्विक्शन रेट काफी ज्यादा नीचे है. यानी मामले तो दर्ज हो जाते हैं, लेकिन आरोपी दोषी साबित नहीं हो पाता है. 2016 से लेकर 2020 तक हेट स्पीच के मामलों में कन्विक्शन रेट महज 20 फीसदी रहा है.
कन्विक्शन पर एक्सपर्ट ने दिया जवाब
हेट स्पीच के इस पूरे मामले को लेकर हमने देश के पूर्व एएसजी, संविधान विशेषज्ञ और सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट केसी कौशिक से बात की. उन्होंने बताया कि अगर आप किसी खास समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाने का काम करते हैं तो उसमें किसी के खिलाफ मामला दर्ज हो सकता है और सजा भी दी जा सकती है. अगर कन्विक्शन रेट की बात करूं तो मेरा 40 साल का अनुभव ये कहता है कि इसमें प्रैक्टली ये जीरो है.
पूर्व एएसजी कौशिक ने हेट स्पीच को समझाते हुए आगे कहा कि आमतौर पर चुनाव के वक्त हेट स्पीच के ज्यादा मामले सामने आते हैं. ये मामले चुनाव आयोग में जाते हैं और वो चेतावनी देकर नेताओं को छोड़ देते हैं. नेताओं पर 4 या 10 दिन तक पब्लिक रैली में नहीं जाने का प्रतिबंध लगा दिया जाता है और इससे ज्यादा कुछ नहीं होता. अगर ये मामले कोर्ट में जाते हैं तो निचली अदालत में ही निपट जाते हैं.
सुप्रीम कोर्ट की फटकार का कितना असर?
आमतौर पर देखा गया है कि तमाम बड़े नेताओं की हेट स्पीच को लेकर राजनीतिक कारणों से पुलिस सीधे मामला दर्ज नहीं करती है, लेकिन हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जमकर फटकार लगाते हैं. कुछ ही दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसी ही मामले पर सुनवाई करते हुए राज्यों की पुलिस को सख्त चेतावनी दी और कहा कि हेट स्पीच पर सख्त कार्रवाई की जाए, फिर वो चाहे किसी भी धर्म से जुड़ा क्यों न हो. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धर्म के नाम पर हम कहां पहुंच चुके हैं. इस याचिका में बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा और हिंदू सभा के इवेंट का जिक्र किया गया था. हालांकि सुप्रीम कोर्ट की इन तल्ख टिप्पणियों का कोई खास असर नहीं दिखता.
सुप्रीम कोर्ट की इन तल्ख टिप्पणियों के बावजूद हेट स्पीच के बढ़ते मामलों और कम कन्विक्शन रेट पर जब केसी कौशिक से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, मेरा मानना है कि जो न्यायमूर्ति हैं, फिर चाहे वो हाईकोर्ट के हैं या सुप्रीम कोर्ट के, उनकी कलम में असली ताकत है. जो उन्हें कहना है वो अपनी कलम से कहें. यानी इसे अपने ऑर्डर में भी लिखें. सिर्फ जुबानी टिप्पणी से कंट्रोवर्सी के अलावा कुछ भी नहीं होगा. हेट स्पीच पर टीका-टिप्पणी को मीडिया में खूब दिखाया जाता है, लेकिन किसी को इसका फायदा नहीं होता.
आजम खान पर आए फैसले को लेकर पूर्व एएसजी कौशिक ने कहा कि, मैंने कोर्ट के 40 साल के अपने पूरे करियर में हेट स्पीच के किसी मामले में तीन साल की सजा का मामला नहीं देखा है.