नए तालाब बनाने पर लाखों खर्च, पुराने के जीर्णोद्धार पर ध्यान नहीं ..?
80 से ज्यादा अमृत तालाब बनाने पर किए जा रहे हैं लाखों खर्च ….
150 के करीब अमृत सरोवर बनवाए जा रहे हैं जिले में। 50 से ज्यादा पूरे होने का दावा किया जा रहा है। 30 से ज्यादा सरोवर पर भी काम तेज किया जा रहा है। 14 से 25 लाख रुपए तक एक अमृत तालाब की लागत। 100 के करीब छोटे-बड़े पुराने तालाब हैं जिले भर में।
भिण्ड. सरकार जल संरक्षण और संवर्धन के लिए अमृत योजना में नवीन तालाब तो बनवा रही है, लेकिन पुराने और कम खर्च में ज्यादा लाभकारी साबित होने वाले प्राचीन तालाबों को लेकर उपेक्षा बरती जा रही है। जबकि जीर्णोद्धार कार्य पर ज्यादा खर्च भी नहीं आएगा। जिले में ऐसे तालाबों की संख्या एक अनुमान के अनुसार 100 से ज्यादा हो सकती है।
जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत ऊमरी कस्बे का स्वरूप ले चुकी है। यहां कनावर रोड पर थाने के सामने भगवान शिव मंदिर से सटा हुआ करीब दो बीघा का प्राचीन तालाब है। लेकिन उपेक्षा के कारण तालाब का स्वरूप बिगड़ चुका है। तलहटी में जलकुंभी और किनारे जर्जर हो जाने से बरसात के दिनों में यहां ज्यादा पानी नहीं ठहर पाता। ज्यादा बरसात होने पर इसका पानी सडक़ पर आने से मंदिर आने-जाने वाले श्रद्धालुओं का भी रास्ता अवरुद्ध हो जाता है। वहीं तालाब में ज्यादा पानी जमा न हो पानेसे बरसात का सीजन खत्म होने के कुछ समय बाद ही तालाब सूख जाता है। इससे आसपास के जल स्तर पर भी विपरीत असर पड़ता है। जबकि ग्रामीणों का मानना है कि पुराने तालाब का जीर्णोद्धार कर उसका गहरीकरण और पाल दुरुस्त कराने का काम करवा दिया जाए तो यह तालाब साल भर निस्तार के लिए पानी उपलब्ध करवा सकता है। ऐसा ही एक बड़ा तालाब जनपद पंचायत अटेर की ग्राम पंचायत पुर में स्थित है। इसकी भी उपेक्षा लंबे समय तक रही, लेकिन बाद में जिला पंचायत का दावा है कि ग्राम पंचायत पुर के तालाब का चरणबद्ध तरीके से तीन बार में जीर्णोद्धार का कार्य कराया गया है। लेकिन यह ग्राम पंचायतों के प्रस्ताव के आधार पर होता है जबकि हालांकि कोई विशेष मामला आने पर जिला पंचायत इस संबंध में ग्राम पंचायतों को निर्देशित भी करती है।
25 बीघा का तालाब
इसी प्रकार ग्राम पंचायत पुर में भी करीब 25 बीघा का प्राचीन तालाब है, अब उसका कैचमेंट एरिया अतिक्रमण की चपेट में आ चुका है और उसकी जगह पर भी लोगों ने कब्जा कर लिया है, जिससे पानी ज्यादा नहीं आ पाता और सर्दियिों का सीजन बीतने के साथ ही उसमें पानी कम हो जाता है। गर्मियों लगभग पूरा सूख जाता है। लेकिन यदि इसका थोड़ा और गहरीकरण हो जाए और नहरों से सिंचाई के लिए मार्च के अंत तक पानी चल जाए तो तालाब को भरा जा सकता है। इन प्राचीन तालाबों की स्थिति सुधारने पर सरकार का पैसा भी ज्यादा खर्च नहीं होगा और ज्यादा उपयोगी साबित हो सकते हैं, लेकिन फिलाहल कोई स्पेशल प्रोजेक्ट प्राचीन तालाबों के जीर्णोद्धार के लिए नहीं है।
150 तालाबों का कार्य जारी, 50 से ज्यादा बने
जिले में करीब 150 अमृत सरोवरों को मंजूरी मिली है। इनमें से करीब 100 के लिए जमीन का चिन्हांकन हो चुका है। 50 से अधिक तालाब बन चुके हैं ओर 30-35 पर काम जारी है। प्रत्येक तालाब पर 14 से 25 लाख रुपए तक खर्च किया जा रहा है। लेकिन इस योजना में पुराने तालाबों के जीर्णोद्धार का प्रावधान नहीं होने से ठोस कार्य नहीं हो पा रहे हैं। फूफ में नगर परिषद क्षेत्र में भी एक बड़ा तालाब उपेक्षा का शिकार है।