ग्वालियर. सीहोर के मुंगावली में बोरवेल में गिरी ढाई साल की मासूम सृष्टि को 52 घंटे के रेस्क्यू के बाद भी बचाया नहीं जा सका। दिल दहला देने वाली यह पहली घटना नहीं है, खुले बोरवेल में बच्चे गिरने की घटनाएं पूरे देश मे सबसे अधिक मध्यप्रदेश में सामने आती हैं। यह कहें तो कतई गलत नहीं कि मध्यप्रदेश ऐसी हृदय विदारक घटनाओं के लिए पूरे देश में बदनाम हो रहा है। ग्वालियर-चंबल और बुंदेलखंड में नईदुनिया की टीम ने पड़ताल की तो पाया, यहां एक हजार से ज्यादा बोरवेल खुले हैं, जो मासूमों की जिंदगी कभी भी निगल सकते हैं।

जानिए ग्वालियर-चंबल और बुंदेलखंड के जिलों में कितने बोरवेल

मुरैना जिले में 19 हजार सरकारी बोरवेल हैं। बिजली कंपनी के रिकार्ड में 26 हजार 500 बोरवेल के कनेक्शन हैं। इनके अलावा 32 हजार बोरवेल अवैध हैं। सीहोर की घटना के बाद मुरैना जिला प्रशासन ने ग्राम पंचायत सचिव और पटवारियों से सर्वे करवाया है। इसमें बताया गया है कि जिलेभर में 32 बोरवेल अभी भी खुले हैं। कलेक्टर अंकित अस्थाना ने इन बोरवेल को बंद कराने के लिए पीएचई को जिम्मेदारी दी है। खुले बोरों के लिहाज से चंबल व बुंदेलखंड अंचल में सबसे संवेदनशील निवाड़ी जिला है। यहां 500 से अधिक बोरवेल खुले हैं। वहीं चंबल-ग्वालियर के भिंड, श्योपुर, शिवपुरी, दतिया, झांसी, टीकमगढ़ जिलों में भी 450 से ज्यादा बोरवेल खुले हैं। छतरपुर में पिछले डेढ़ वर्ष में बोरवेल में बच्चे गिरने की सबसे ज्यादा तीन घटनाएं हुईं। इन घटनाओं से सबक लेकर प्रशासन ने खुले बोरवेल बंद करने का अभियान चलाया। छतरपुर कलेक्टर संदीप जीआर के मुताबिक वे जिलेभर में एक हजार बोरवेल और खुले कुओं को बंद करवा चुके हैं। हालांकि यहां अब भी कई जगह कुएं और बोरवेल खुले हैं।

क्यों हो रहीं ऐसी घटनाएं

जानकार बताते हैं हमारे प्रदेश में खेती का रकबा हर साल बढ़ रहा है, लेकिन सिंचाई के लिए संसाधनों का विस्तार नहीं हो रहा। पंजाब, हरियाणा से लेकर दक्षिण के राज्यों में खेती की सिंचाई के लिए नहरों का जाल बिछा है। नदियों का संरक्षण कर उनके पानी का उपयोग भी सिंचाई के लिए होता है। मध्यप्रदेश में सिंचाई के लिए नहरें नाममात्र हैं। अधितकर नदियां मौसमी होकर रह गई हैं, जिनमें बारिश के सीजन में पानी रहता है। मप्र में खेती-किसानी भू-जल पर आश्रित है। इसलिए बेतरतीव ढंग से बोर होते हैं। चंबल अंचल में 10 से 12 फीसद बोरवेल में पानी नहीं निकलता या कुछ साल बाद बोरवेल सूख जाते हैं तो उनकी केसिंग निकालकर खुला छोड़ दिया जाता है। बुंदेलखंड में तो 20 से 25 फीसद बोर में खनन के बाद पानी नहीं निकलता और बोरवेल सूखने की दर भी अन्य स्थानों की तुलना में अधिक है।

खुले बोर कई मासूमों की ले चुके हैं जान

– मुरैना जिले में 27 मार्च 2015 को नूराबाद थाना क्षेत्र के चौखूटी गांव में परमाल सिंह के खेत में बोरवेल खनन हो रहा था। पड़ोसी मातादीन गुर्जर का चार साल का बेटा लवकुश बोरवेल में गिर गया और 25 फीट गहराई में जाकर फंस गया। प्रशासन और ग्रामीणों ने रस्सी में लकड़ी बांधकर बोर में डाली। बच्चा इस लकड़ी को दोनों पैरों में फंसाकर बैठ गया, इससे लवकुश को सकुशल बाहर निकाला गया।

– मुरैना में 19 अक्टूबर 2015 को बागचीनी थाना क्षेत्र के हार गांगोली गांव में खुले बोरवेल में तीन साल का राघव गिर गया था। तीन दिन तक रेस्क्यू के बाद भी राघव को बचाया नहीं जा सका था। घटना के बाद तत्कालीन कलेक्टर विनोद गुप्ता ने खुले बोरवेल बंद कराने अभियान शुरू कराया था, लेकिन अभियान फाइलों में दफन होकर रह गया।

– निवाड़ी जिले के सेदपुर गांव में नवंबर 2020 में खुले बोरवेल में चार साल का प्रहलाद कुशवाह गिर गया था। तीन दिन बाद रेस्क्यू कर निकाला, लेकिन जान नहीं बच सकी।

– 26 फरवरी 2023 को बिजावर थाने के ललगुवां गांव में तीन वर्षीय नैंसी विश्वकर्मा पुत्री रवि विश्वकर्मा को सरफून गांठ वाली दो रस्सी की मदद से बोरवेल से सकुशल निकाला गया।

– 29 जून 2022 को ओरछा रोड थाना क्षेत्र के नारायणपुरा गांव के पास अखिलेश यादव के पांच साल का बेटे दीपेंद्र यादव को सरफून गांठ वाली रस्सी की मदद से सकुशल बाहर निकाला गया था।

– 16 दिसंबर 2021 को छतरपुर में नौगांव थाना क्षेत्र के दौनी गांव में डेढ़ वर्षीय दिव्यांशी पुत्री राकेश कुशवाहा खेत में बने बोरवेल में गिर गई थी। उसे 10 घंटे की मशक्कत में सकुशल निकाल लिया था।