भारत में माहवारी के कारण करोड़ों लड़कियां छोड़ती हैं पढ़ाई ..?
भारत में माहवारी के कारण करोड़ों लड़कियां छोड़ती हैं पढ़ाई, 71 फीसदी पीरियड्स से अंजान
आज भी भारत की लगभग 71 फीसदी लड़कियां पीरियड्स से अंजान है. जिसका मतलब है कि उन्हें माहवारी के बारे में कुछ भी पता नहीं होता है.
हाल ही में महाराष्ट्र के उल्हासनगर से एक खबर आई की एक शख्स ने पीरियड्स आने पर अपनी 12 साल की बहन की हत्या कर दी. पुलिस के अनुसार लड़की को पहली बार मासिक धर्म आया था. जिसके बाद सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करने वाले लड़की के भाई को लगा कि उसकी बहन ने शारीरिक संबंध बनाए है. इसी वजह भाई ने अपनी बहन की निर्मम तरीके से हत्या कर दी.
अचरज की बात है तो ये है कि आज भी भारत की लगभग 71 फीसदी लड़कियां पीरियड्स से अंजान हैं जिसका मतलब है कि उन्हें माहवारी के बारे में कुछ भी पता नहीं होता है.
इन्हीं मुद्दों को गंभीरता से लेते हुए और समाज में माहवारी को लेकर लड़कियों को जागरूक करने के लिए बीते बुधवार यानी 15 जून को संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने राजधानी में मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता प्रबंधन (एमएचएचएम) पर स्पॉट लाइट रेड (#Spot light Red) नाम से पहल की शुरुआत की है.
पहले जानते हैं क्या है यूनेस्को
यूनेस्को संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है. जो शिक्षा, विज्ञान एवं संस्कृति के माध्यम से विश्व में शांति और समृद्धि को बढ़ाना है. जिसके लिए यूनेस्को अलग अलग तरह के कार्यक्रमों का आयोजन करती है.
क्या है इस अभियान का मकसद
इस अभियान का मकसद लड़कियों को माहवारी के कारण बीच में ही पढ़ाई छोड़ने से रोकना है. अभियान में सहयोगी पी एंड जी के उपाध्यक्ष गिरीश कल्याणरमन ने बताया कि हमारा उद्देश्य भारत की युवा लड़कियों को बिना किसी हिचकिचाहट के अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करके सपनों को हासिल करने के लिए सशक्त बनाना है. इसके अलावा इस अभियान के तहत हम लड़कियों को पीरियड्स के बारे में बताएंगे ताकि पीरियड्स आने के बाद उसे किसी डर के कारण स्कूल छोड़ना पड़े.
क्या है ये माहवारी और कितने दिनों तक चलता है
माहवारी कोई बीमारी नहीं है बल्कि एक कुदरती जैविक प्रक्रिया है. यह स्त्रियों को हर महीने में एक बार होता है और चक्र के रूप में चलता है. यह चक्र औसतन 28 दिनों का होता है. डॉक्टरों की मानें तो स्त्रियों को पीरियड्स 21 से 35 दिनों में कभी भी आ सकता है. पीरियड्स के दौरान स्त्री के गर्भाशय के अंदर से खून बाहर आता है.
किसी लड़की को पीरियड्स शुरू हो जाए तो इसका मतलब है कि उसका शरीर गर्भधारण के लिए तैयार होने की प्रक्रिया शुरू कर रहा है. यह स्त्री के शरीर में हार्मोन से जुड़े बदलाव भी बताता है. जिसे माहवारी यानी पीरियड्स से पहले की परेशानी कहा जाता है. अंग्रेजी भाषा में इस हार्मोनल बदलाव को पीएमएस या प्री-मेंस्ट्रुअल सिंड्रोम कहा जाता है.
मेडिकल साइंस की मानें तो एक स्त्री के शरीर में पीरियड्स के दौरान 200 तरह के बदलाव हो सकते हैं. जिसमें लड़कियों का मूड काफी तेजी से ऊपर नीचे होता है. चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है.
माहवारी के कारण भारत में करोड़ों लड़कियां छोड़ती है पढ़ाई
एक सामाजिक संस्था दसरा ने साल 2019 में जारी किए अपने एक रिपोर्ट में बताया था कि हर साल 2.3 करोड़ लड़कियां माहवारी के दौरान स्वच्छता और तमाम जरूरी सुविधाएं उपलब्ध नहीं होने के कारण स्कूल छोड़ देती हैं.
कई संस्थाओं और कार्यकर्ताओं की मानें तो स्कूलों में शौचालयों और साफ पानी जैसी जरूरी सुविधाएं नहीं होने के कारण स्कूल में लड़कियों की जिंदगी प्रभावित हो रही है.
चाइल्ड स्पेशलिस्ट और जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ अपर्णा कुमारी कहती हैं, ‘ज्यादातर मामलों में पीरियड्स आने से पहले तक लड़कियों को इसके बारे में कोई भी जानकारी नहीं होती. कई बार ऐसे मरीज भी हमारे पास आते हैं जो कहते हैं कि पहली बार उन्हें पीरियड्स किसी गंभीर बीमारी जैसी लगती है. ज्यादातर लड़कियों को माहवारी के बारे में जानकारी अपने दोस्तों से मिलती हैं जो कि आधी- अधूरी होती है.’
माहवारी के दिनों में लड़के और पुरुष क्या करें
चाइल्ड स्पेशलिस्ट और जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ अपर्णा कुमारी एबीपी से बातचीत में कहती हैं, ‘ये तो हम सबको पता है कि माहवारी के दिनों में स्त्री के शरीर से खून का प्रवाह होना आम बात है. जिसके कारण उन्हें कमजोरी, मूड में बदलाव भी आता है. ऐसे में घर के पुरुष, चाहे वो पति, पिता या भाई हो. उनकी जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने घर की स्त्रियों को संवेदनशील तरीके से समझें.
अगर माहवारी के कारण किसी लड़की या स्त्री को कोई किसी तरह की दिक्कत होती है और वह आराम करना चाहती है या चौका-चूल्हा या घर के दूसरे काम नहीं करना चाहती है तो उसे आराम करने में मदद करें.