युवा पीढ़ी को सही उम्र में अच्छा पालन-पोषण मिल जाए तो वे अच्छे चरित्र के साथ वे ‘देशभक्ति’ भी खूब निभाते हैं

अंबेश कुमार मेरा ‘बडी’ था। ये उन निजी सहायकों का आधिकारिक नाम है, जो सेना में उच्च रैंक के अधिकारियों के साथ होते हैं। मैं पिछले तीन दिनों से राजस्थान के बाड़मेर में सेना की 17वीं गार्ड डिवीज़न में रुका हुआ था और अंबेश को मेरी जरूरतों का खयाल रखने का काम सौंपा गया था। मैं एक सेमिनार में भागीदारी कर रहा था, जिसका उद्देश्य सेना के साथ-साथ, पुलिस, एयरफोर्स और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के सारे सदस्यों में जनरल वैलनेस पैदा करना था।

इस दौरान वह मेरा इंतजार करता, भले मैं रात को 12 बजे पहुंचता और सुनिश्चित करता कि अगर खाना नहीं, तो कम से कम एक गिलास दूध मुझे मिल सके और सुबह कितनी भी जल्दी क्यों न मांगू, चाय लाकर देता। संक्षेप में कहूं तो उसने मुझे घर जैसा हर आराम दिया और जब काम के लिए बाहर गया तो पूरे परिसर में सहूलियतें दीं।

छत्तीसगढ़ में जांजगीर चांपा के मुड़पार गांव का रहने वाला अंबेश 18 साल की उम्र में सेना में भर्ती हुआ था। नौ लोगों के परिवार में वह अपनी पीढ़ी का पहला शख्स है, जो सेना में आया। 22 वर्षीय इस युवा की जिस बात ने मेरा ध्यान खींचा वो ये कि वह छोटी चीजों पर निपुणता से ध्यान दे रहा था। वहां मुझे जो सुविधाएं मिलीं, उनमें कई चीजें ऐसी थी जिनके बारे में फाइव स्टार होटल शायद ही सोच सकें।

वहां नेल कटर, परफ्यूम नेल पॉलिश रिमूवर, लिप बाम और भी सौंदर्य सामान थे। चूंकि वहां कई महिला अधिकारी भी हैं और कई अधिकारी पत्नियों के साथ आते हैं इसलिए छोटी-छोटी चीजों पर ध्यान दिया जाता है। मुझे लगता है कि गरीब पृष्ठभूमि से आने वाले अंबेश जैसे लोगों के लिए ऐसी चीजें पूरी तरह से नई हैं।

दिलचस्प रूप से वह हर चीज देखता है और सबके नाम पता हैं। उदाहरण के लिए जब मैंने कहा ‘कॉटन बाल्स’ लाओ (ये रंगीन बाल्स मेकअप या नेल पॉलिश निकालने के काम आती हैं) तो उसने मेडिकल किट से ‘कॉटन’ लाने की गलती नहीं की। सेना में चार साल काम करते हुए उसने अपने आपको इस हद तक अपग्रेड कर लिया है।

जब मुझसे गलती से नेलकटर टूट गया, तो उसने बिना पलक झपकाए उसे जोड़ दिया और प्रशंसा सुनने का इंतजार नहीं किया। जब मैंने पूछा कि एक महीने की छुट्‌टी में घर जाकर क्या करते हो, तो उसने कहा, ‘जय हिंद सर, एक हफ्ते थोड़ा आराम करता हूं फिर अपने रुटीन पर लौटकर सूर्योदय से काफी पहले उठ जाता हूं ताकि स्टेडियम में जाकर गांवों के लड़कों को खेल, वेट लिफ्टिंग और कसरत सिखा सकूं, जिससे उनका सीना और जरूरी वजन बना रहे और सेना, बीएसएफ या लोकल पुलिस में जाने के लिए फिजिकल टेस्ट पास कर सकें।

हमारे छोटे-से गांव में कई लड़कों को ये भी नहीं पता कि ऐसी नौकरियों के लिए कैसे आवेदन करते हैं और ये भी कि ऐसी नौकरियों के विज्ञापन कब आते हैं। इसलिए मैं उन्हें अपडेट रखता हूं और उनकी फिजीक बरकरार रखने में मदद करता हूं। मैं ये हर रोज सुबह-शाम करता हूं।’ वह ‘जय हिंद’ कहे बिना कभी भी कमरे से अंदर-बाहर नहीं हुआ।

मैंने अपने प्रवास के दौरान उसके मुंह से कभी भी अंग्रेजी के शब्द जैसे गुड मॉर्निंग-गुड नाइट नहीं सुने। यकीन करें अंबेश जैसे युवा कसरत से नहीं बल्कि राष्ट्र के साथ ही अपने काम के प्रति समर्पण-प्रतिबद्धताओं से हमारी छाती फुलाकर 56 इँंच की कर देते हैं। कल जब मैं वहां से निकला, तो मुझे पता था कि नियमों के कारण मैं उसे टिप नहीं दे सकता, पर मैं जो दे सकता था वो शुभकामनाएं मैंने उसे दीं।

फंडा यह है कि अगर हमारी युवा पीढ़ी को सही उम्र में अच्छा पालन-पोषण मिल जाए, तो वे न सिर्फ सही कॅरिअर में चले जाते हैं बल्कि अच्छे चरित्र के साथ वे ‘देशभक्ति’ भी खूब निभाते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *