ग्वालियर। जब केंद्र सरकार ने स्मार्ट सिटी की परिकल्पना की थी तो उसमें गलती कर बैठे। पूरे प्रोजेक्ट को उसी सरकारी सिस्टम के हवाले कर दिया जिनमें से कई जिम्मेदारों के अभी तक फोन भी स्मार्ट नहीं हो सके हैं। दरअसल स्मार्ट सिटी में जो काम किए जाने थे उसकी पूरी वर्किंग स्मार्ट होनी चाहिए थी। टीसीएस द्वारा बनाया गया पासपोर्ट सेवा की तरह एक पोर्टल बनना चाहिए था, जिससे रियल टाइम प्रोजेक्ट मानीटरिंग की जा सके। काम स्वीकृति से लेकर डीपीआर,वर्कआर्डर और टाइमलाइन मैनेजमेंट तक का पूरा काम पेपर लेस होना चाहिए था। हर प्रोजेक्ट की कोड से ट्रेकिंग की जा सकती थी। कोई काम किस विभाग के कारण रुका हुआ है उसके सामने उस विभाग और जिम्मेदार अधिकारी का नाम आते रहना चाहिए था। हर दिन सुबह उसके पास सिस्टम जेनरेटेड मेल और एसएमएस आने चाहिए थे। जिओ टैगिंग से निरीक्षण होना चाहिए था। उस काम में दुनियाभर में कौन सी लेटेस्ट तकनीक अपनाई जा सकती है उसकी जानकारी होनी चाहिए थी। ऐसा हो न सका।

पोर्टल न खुला तो पात्र लाड़ली नाराज हो जाएगी

प्रदेश में शिवराज सरकार ने लाड़ली बहना योजना के अंतर्गत महिलाओं को 1-1 हजार रुपये की राशि अकाउंट में भेजना शुरु की है। अब जब पैसा आने लगा तो कई घर और मोहल्लों में विरोध के स्वर भी दिखाई देने लगे हैं। दरअसल जब रजिस्ट्रेशन हो रहे थे तब इतनी मारामारी थी कि कई महिलाएं चाहकर भी अपना नाम लोकसेवा केंद्र की लाइन में लगकर नाम दर्ज नहीं करवा पाईं। दूसरे राज्यों की महिलाएं लाभ न ले लें इसलिए समग्र आईडी में नाम जुड़वाने का पोर्टल भी जानबूझकर बंद कर दिया था लेकिन इस चक्कर में प्रदेश की ही कई पात्र महिलाएं ही परिवार में अपना नाम जुड़वाने से वंचित रह गईं। ऐसी पात्र महिलाओं का गुस्सा अब सातवें आसमान पर है क्योंकि उनके अकाउंट में एक धेला नहीं आया जबकि उसके पड़ोसी के पास पैसा आया है। नाम जुड़वाने के लिए अब वह परेशान हो रही है। शिवराज भैया सारी बहनों पर बराबर का स्नेह (पैसा) बरसाओ नहीं तो खीर में एक कंकड़ भी पूरा स्वाद खराब कर देता है।

चंबल में भाजपा से भाजपा का मुकाबला

ग्वालियर चंबल में धीरे-धीरे राजनीतिक समीकरण की तस्वीर साफ सी होने लगी है। यहां भाजपा का मुकाबला कांग्रेस से नहीं खुद भाजपा से है। यदि पार्टी खुद के लोगों से पार पा गई तो समझो 2018 की जो गत हुई थी उससे बच जाएगी। दरअसल यहां सिंधिया के आने के बाद जो तीन वाले सोफे पर पांच-पांच बैठने की मशक्कत चल रही है उसमें अब एडजेस्मेंट की जगह जगह जगह ठेलम-ठेली की स्थिति बनने लगी है। हारे हुए कई लोग पिछले तीन साल से मेहनत कर रहे हैं और उनका मूड यहां तक है कि यदि भाजपा ने टिकट नहीं दिया तो भी वह चुनाव तो लड़ेंगे। बहुत जल्दी ग्वालियर,मुरैना,शिवपुरी और दतिया जिले के ऐसे नाम सामने आ जाएंगे। वैसे शुरूआत हो चुकी है। सिंधिया की पूर्व लोकसभा सीट शिवपुरी में हाल में एक बड़े नेता ने हाथ थाम लिया, दो दिन में एक और नेता हाथ के हो जाएंगे।