लोकसभा चुनाव 2024 : कितना अलग है विपक्षी एकता का फॉर्मूला?

2004 टू 2024: बीजेपी को परास्त करने के लिए कितना अलग है विपक्षी एकता का फॉर्मूला?
लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है. बीजेपी के खिलाफ विपक्षी एकता लगभग तय हो गई है, जिस पर शिमला में मुहर लग जाएगी. 2004 में भी ऐसे ही देशव्यापी गठबंधन विपक्ष ने बनाया था, लेकिन 2024 के नजरिए से ये गठबंधन कितना अलग है, जानिए.
बीजेपी के खिलाफ विपक्षी दल एक साथ मिलकर आगामी लोकसभा चुनाव लड़ने पर सहमत हो गए हैं, लेकिन विपक्ष आगे की रणनीति शिमला की बैठक में तय करेगा. दो दशक के बाद एक बार फिर से शिमला में विपक्षी गठबंधन का सियासी तानाबाना बुना जाएगा, जहां कभी अटल बिहारी वाजपेयी के अगुवाई वाले एनडीए को मात देने के लिए एक समय कांग्रेस ने देशव्यापी गठबंधन पर चलने का फैसला किया था. कांग्रेस का यह दांव उस समय सफल रहा था, लेकिन क्या 2024 में भी कारगर होगा?

कांग्रेस ने ‘शिमला समझौता’ और गठबंधन फॉर्मूल से 2004 लोकसभा चुनाव में ‘इंडिया शाइनिंग’ पर सवार बीजेपी की हवा निकाल दी थी. 20 साल के बाद मोदी लहर पर सवार बीजेपी के ‘विजयरथ’ को रोकने के लिए कांग्रेस सहित 14 विपक्षी दल एक साथ आने के लिए तैयार हैं. शिमला में जुलाई में होने वाली बैठक में कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के बीच समझौते का फॉर्मूला बनना है. ऐसे में सवाल उठता है कि 2004 से 2024 में बनने वाली विपक्षी एकता में कितना फर्क है?

2004 में विपक्षी गठबंधन का मॉडल

देश की कुल 543 लोकसभा सीटों में से 196 सीटों पर कांग्रेस गठबंधन चुनाव लड़ी थी, जिनमें से उसे 138 लोकसभा सीटों पर उसे जीत मिली थी जबकि बीजेपी के अगुवाई वाले एनडीए को 42 सीटें मिली थी. यूपीए की 138 संसदीय सीटों में से कांग्रेस 64 और उसके सहयोगी क्षेत्रीय दलों को 74 सीट पर जीत मिली थी जबकि एनडीए के 43 सीटों में से बीजेपी 20 और सहयोगी दलों को 23 सीट मिली थी तो अन्य दलों को 15 सीट मिली थी.

2024 में विपक्षी एकता का स्वरूप

2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ पटना में विपक्षी गठबंधन का जो स्वरूप सामने आया है, उसे देखें तो कांग्रेस सहित करीब 14 दल शामिल हैं. फिलहाल कांग्रेस, टीएमसी, आरजेडी, जेडीयू, एनसीपी, शिवसेना (उद्धव गुट) पीडीपी, नेशनल कॉफ्रेंस, सपा, सीपीएम, सीपीआई, माले, डीएमके और जेएमएम एक साथ मिलकर चुनाव लड़ने के लिए सहमति अपनी जता चुके हैं. आम आदमी पार्टी ने विपक्षी दलों की बैठक के बाद ही खुलकर कह दिया है कि कांग्रेस जिस गठबंधन में रहेगी, उसमें वो शिरकत नहीं करेगी. ऐसे में हो सकता है कि पटना की बैठक में जिन दलों ने गठबंधन पर अपनी स्वीकृति दी है, उनसे कुछ दल अलग भी हो सकते हैं तो कुछ दलों की एंट्री भी हो सकती है.

2004 से कितना अलग 2024 का गठबंधन

देश की सियासत पिछले दो दशक में काफी बदल चुकी है. कांग्रेस 2004 में करीब आठ राज्यों में गठबंधन कर चुनावी मैदान में जिन दलों के साथ उतरी थी और एनडीए को मात देने में सफल रही थी, उनसे से कई दल कांग्रेस का साथ छोड़कर अलग हो चुके हैं. 2004 में कांग्रेस के साथ गठबंधन में बिहार में लोकसभा चुनाव लड़ने वाली रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी फिलहाल एनडीए के साथ है तो केसीआर की बीआरएस भी अलग हो चुकी है, जो आंध्र प्रदेश (तेलंगाना) में चुनाव लड़ी थी.

हालांकि, देश के बदले हुए सियासी माहौल में कुछ दल साथ आए हैं, जिनमें टीएमसी से लेकर सपा, वामपंथी दल और जेडीयू तक शामिल है. इस तरह कांग्रेस 2004 से बड़ा गठबंधन बनाकर 2024 के चुनाव में लड़ने की तैयारी कर रही है.

किस राज्य में कितनी विपक्षी ताकत?

बीजेपी को हराने के लिए 2024 में विपक्षी गठबंधन की रूपरेखा बन रही है, उसमें करीब एक दर्जन राज्यों की 300 लोकसभा सीटें है. कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक बीजेपी को घेरने की रणनीति विपक्ष बनाई है. उत्तर प्रदेश से लेकर जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु तक चुनाव लड़ने की रणनीति बनाई है तो दक्षिण भारत में तमिलनाडु को छोड़ दे तो न आंध्र प्रदेश, न तेलंगाना और न ही कर्नाटक में कांग्रेस के साथ कोई सहयोगी है.

2004 टू 2024: बीजेपी को परास्त करने के लिए कितना अलग है विपक्षी एकता का फॉर्मूला?

2024 के चुनाव में मिलकर लड़ने जा रहा विपक्ष

बिहार में दोगुना ताकत?

बिहार में विपक्षी एकता पहले से दोगुना ताकत के साथ इस बार उतर रही है. एलजेपी का दोनों ही धड़ा विपक्षी एकता से अलग है और एनडीए खेमे के साथ खड़ा है. कांग्रेस 2024 के चुनाव में आरजेडी, जेडीयू, लेफ्ट के तीनों दलों के साथ चुनावी मैदान में उतरेगी.

एलजेपी से दोगुना ताकत जेडीयू की है और लेफ्ट पार्टियां विपक्षी गठबंधन में अहम भूमिका अदा कर सकती है. जेडीयू 2004 में एनडीए के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी, लेकिन अब विपक्षी गठबंधन में शामिल है. बिहार की सियासत में जेडीयू 20 सालों से धुरी बनी हुई है.

महाराष्ट्र में सहयोगी बढ़े?

महाराष्ट्र में कांग्रेस 2004 से बड़े गठबंधन के साथ उतरने जा रही है. 2004 में कांग्रेस और एनसीपी मिलकर लड़ी थी, लेकिन 2024 में कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना (उद्धव गुट) मिलकर चुनाव लड़ने जा रहे हैं. इस तरह महाराष्ट्र में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए को विपक्षी गठबंधन से दो-दो हाथ करना होगा.

झारखंड में बढ़ी ताकत?

झारखंड में विपक्षी गठबंधन 2004 से काफी बढ़ा है. पहले कांग्रेस-जेएमएम-आरजेडी मिलकर चुनाव लड़ी थी, लेकिन 2024 में जेडीयू और लेफ्ट पार्टियां भी उसमें शामिल रहेंगी. विपक्षी खेमा एक बड़ी ताकत के साथ चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी में है.

जम्मू-कश्मीर में तीन दल साथ

जम्मू-कश्मीर में इस बार विपक्षी दल पूरी तरह से एकजुट होकर एनडीए का मुकाबला करना चाहता है. ऐसे में विपक्षी एकता में कांग्रेस, नेशनल कॉफ्रेंस और पीडीपी शामिल है. इस बार नेशनल कॉफ्रेंस बढ़ गई है.

यूपी में सपा का साथ

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस 2004 के चुनाव में अकेले चुनावी मैदान में उतरी थी, लेकिन 2024 में सपा का साथ मिल रहा है. पटना की बैठक में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने विपक्ष के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का संकेत दिए. इस तरह बीजेपी के खिलाफ 2024 में यूपी के रणभूमि में कांग्रेस और सपा के साथ-साथ आरएलडी भी शामिल हो सकती है.

बंगाल में टीएमसी भी तैयार

पश्चिम बंगाल में 2004 में कांग्रेस अकेले चुनावी मैदान में उतरी थी, लेकिन 2024 में बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस को टीएमसी का साथ मिल सकता है. ममता बनर्जी ने इसके संकेत भी दे दिए हैं और साथ ही लेफ्ट पार्टियां भी अगर साथ आती है तो मुकाबला काफी रोचक हो सकता है.

कांग्रेस इन राज्यों में अकेले

कांग्रेस राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, उत्तराखंड, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, असम, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में अकेले दम पर चुनावी मैदान में उतर सकती है, क्योंकि इनमें से ज्यादातर राज्यों में उसका सीधा मुकाबला बीजेपी से है. तेलंगाना में कांग्रेस को केसीआर की बीआरएस और बीजेपी से मुकाबला करना होगा तो आंध्र प्रदेश में बीजेपी और वाईएसआर कांग्रेस से दो-दो करना पड़ेगा. इसके अलावा कर्नाटक में कांग्रेस को जेडीएस-बीजेपी से लड़ाई लड़नी पड़ेगी जबकि केरल में कांग्रेस के अगुवाई वाले यूडीएफ का मुकाबला लेफ्ट के नेतृत्व वाले एलडीएफ से है.

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