उदासीनता छोड़ेंगे तभी जीतेंगे भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग

सुशासन: भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1)(डी) को पुन: लागू करने की त्वरित आवश्यकता …

कानून का लागू किया जाना भी एक समस्या है, क्योंकि सत्ता पक्ष और विपक्ष एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप में उलझे रहते हैं। देश में भ्रष्टाचार दूर-दूर तक फैल चुका है, जो खबरें सामने आती हैं वे तो नाम मात्र की हैं।

दु निया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में भ्रष्टाचार की समस्या बार-बार सामने आती रहती है। यह ऐसी महामारी है जो सम्पूर्ण विश्व के समाज में व्याप्त है। समय के साथ भ्रष्टाचार समाज के कई पक्षों में फैल गया है। यह विकास में बाधक है, जनता का आत्मविश्वास कम करता है और सामाजिक-आर्थिक विकास अवरुद्ध करता है।

हालिया वर्षों में भारत में त्वरित आर्थिक वृद्धि, निष्प्रभावी नौकरशाही और सुशासन के अभाव के चलते भ्रष्टाचार की समस्या अधिक विकट होती जा रही है। इसका एक कारण भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों का लगातार कमजोर होना है, खास तौर पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 का। इसके अलावा, भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियां छोटे-मोटे मामले हल करने में अधिक रुचि लेती हैं बजाय उच्च स्तरीय भ्रष्टाचार के।

कानून का लागू किया जाना भी एक समस्या है, क्योंकि सत्ता पक्ष और विपक्ष एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप में उलझे रहते हैं। देश में भ्रष्टाचार दूर-दूर तक फैल चुका है, जो खबरें सामने आती हैं वे तो नाम मात्र की हैं।

हाल ही दिल्ली के उप मुख्यमंत्री आम आदमी पार्टी के मनीष सिसोदिया को दिल्ली आबकारी नीति घोटाले में गिरफ्तार किया गया। सिसोदिया, उनके साथी अधिकारियों व शराब व्यापारियों पर आरोप है कि उनके कारण सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचा है। ये सभी फिलहाल जेल में हैं क्योंकि उनकी जमानत अर्जी कई बार खारिज हो चुकी है। हैरानी की बात यह है कि सिसोदया उस राजनीतिक पार्टी के नेता हैं, जो भ्रष्टाचार विरोध के वादे पर सत्ता में आई। हालांकि आरोपों से घिरे राजनीतिक दल दूसरे दलों पर राजनीति से प्रेरित कार्रवाई और जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाती हैं, लेकिन नौकरशाहों और मंत्रियों के घरों से भारी मात्रा में नकदी की जब्ती भ्रष्टाचार की भयावहता दिखाते हैं। मई और जून 2023 में कई आइएएस अधिकारियों को गबन व भ्रष्टाचार के मामलों में गिरफ्तार किया गया है।

इसी प्रकार, पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री तृणमूल कांग्रेस के पार्था चटर्जी को जुलाई 2022 में प्रवर्तन निदेशालय ने उनके घर से गिरफ्तार कर लिया। उन पर और उनकी साथी अभिनेत्री अर्पिता मुखर्जी पर स्कूल सेवा आयोग भर्ती घोटाले का आरोप है।

चटर्जी के घर से 50 करोड़ रुपए नकद, 70 करोड़ रुपए का सोना और जमीन-जायदाद के कागज बरामद हुए। वे भी जेल में सजा काट रहे हैं और उनके खिलाफ सुनवाई चल रही है। प्रवर्तन निदेशालय ने उनके खिलाफ 14,000 पेज की चार्जशीट दाखिल की है। राष्ट्रीय अपराध रेकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा प्रकाशित 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत 3745 मामले दर्ज करवाए।

एक और कारण, जिस वजह से भारत में उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार फैल रहा है, वह यह है कि जब रिश्वत देने वाला और लेने वाला दोनों हाथ मिला लेते हैं तो इस गोपनीय अपराध के बारे में केवल वे ही जानते हैं। उनके इस अवैध निर्णय का साक्ष्य केवल सरकारी फाइलों या आरटीआइ के जरिये प्राप्त रेकॉर्ड में मिल सकता है।

जब 1988 में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम लागू हुआ, इसमें धारा 13(1)(डी) शामिल थी। इसके तहत एक सरकारी कर्मचारी द्वारा भ्रष्ट व अवैध तरीके से किसी व्यक्ति को धन लाभ पहुंचाना ‘आपराधिक कदाचार’ कहलाता है।

कॉमनवेल्थ खेल घोटाला, 2जी व कोयला घोटाले में धारा 13(1)(डी) नौकरशाहों व मंत्रियों के खिलाफ मुकदमा चलाने में काफी प्रभावी रही थी। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपीए की विफलता में इन घोटालों की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही। 2014 में जब एनडीए सरकार सत्ता में आई तो नए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में ‘संशोधन’ की बात हुई। सरकार व नौकरशाह इस अधिनियम में से धारा 13(1)(डी) को इस आधार पर हटाने के लिए दबाव डालने लगे कि इसके कारण ‘ईमानदार अधिकारी’ भी प्रभावी निर्णय नहीं ले पाते। तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली व वरिष्ठ आइएएस अधिकारी इस मुद्दे पर खुल कर बोले और इसे अस्पष्ट बताया। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल ने भी उस वक्त इस पर कोई आपत्ति नहीं जताई और तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हस्ताक्षर के साथ जुलाई 2018 में यह संशोधन पारित हो गया।

धारा 13(1)(डी) हटाए जाने से भ्रष्टाचार मामलों पर उल्लेेखनीय प्रभाव पड़ा है। भारत में उच्च स्तरीय भ्रष्टाचार के तेजी से पांव पसारने के बावजूद आपराधिक कदाचार अभियोजन मामले देश भर में दर्ज कुल मामलों का एक छोटा-सा हिस्सा हैं। इनमें से ज्यादातर मामलों में विपक्षी दलों के सदस्य शामिल हैं जबकि सत्ताधारी दल से ऐसे मामलों में या तो बहुत कम गिरफ्तारियां हुई हैं या नहीं हुईं। इसके अलावा इनमें से ज्यादातर मामले जांच एजेंसियों द्वारा शुरू किए गए और चलाए गए। अधिनियम से धारा 13(1)(डी) को हटाने का जनता और नागरिक कार्यकर्ताओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। अगर भारत को भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग जीतनी है तो इस संशोधन को तुरंत निरस्त करना महत्त्वपूर्ण है। इतिहास साक्षी है कि देश की जनता भ्रष्टाचार की महामारी के प्रति उदासीन रही है। जनता का दायित्व है कि वह गलत करने वालों को सामने लाए और उन्हें ऐसा करने से रोके।

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