बड़ी फूड कम्पनियां हों ईएसजी का अगला निशाना ..!
बड़ी फूड कम्पनियां हों ईएसजी का अगला निशाना …
अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड: स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने वाली कम्पनियों में निवेश करने से बचें, तभी दुनिया होगी सेहतमंद
यही समय है इस बारे में सही दिशा में काम हो और फूड कम्पनियों पर दबाव डाला जाए कि वे मानक आवश्यक जानकारी पैकेट पर दें। अपने ग्रह को बचाने के लिए इतने समय और प्रयास का निवेश तो हमें करना ही होगा।
कि तनी डाइट कोक पी जाना सेहत के लिए जरूरत से कहीं ज्यादा है? और अगर कोई कम्पनी बहुत सारी डाइट कोक बेचती है तो उपभोक्ता को इसके लिए क्या किसी तरह का हेल्थ ऑफसेट यानी (स्वास्थ्य के मूल्य में जोड़े जाने या घटाने के लिए एक मात्रा) मिलनी चाहिए? या फिर ऐसा उत्पाद बेचने वाली कंपनी को इन्वायरनमेंटल, सोशल एंड कॉरपोरेट गवर्नेंस (ईएसजी) रेटिंग पर नीचे धकेल देना चाहिए? या फिर शायद न्यूट्रि-क्रेडिट (पोषण क्रेडिट)? दरअसल, ईएसजी रेटिंग का मकसद है कि कम्पनियां विशेष रूप से निवेश के समय पर्यावरणीय, सामाजिक और कॉरपोरेट सुशासन से जुड़े मुद्दों को ध्यान में रखें। यदि कोई बड़ी कंपनी शीर्ष ईएसजी रेटिंग के लिए प्रयासरत है तो न्यूट्रि-क्रेडिट की अपेक्षा गलत नहीं है। आजकल समाज को नुकसान पहुंचाने के लिए कंपनियां जो भी गलत तौर-तरीके अपनाती हैं, उनके प्रभाव को कम करने के लिए मुनाफे का एक हिस्सा ‘फील-गुड पॉइंट’ अर्जित करने के लिए खर्च किया जा सकता है: जैसे कि एयरलाइन कम्पनियां कार्बन क्रेडिट खरीद सकती हैं, बिल्डर जंगलों और आद्र भूमि को पहुंचने वाले नुकसान के एवज में जैव विविधता क्रेडिट खरीद सकते हैं, तो फिर फूड कम्पनियां पोषण क्रेडिट क्यों नहीं?
अति-प्रसंस्कृत खाद्यान्न (यूपीएफ) द्वारा होने वाले नुकसान और इनका उत्पादन करने वाली कम्पनियों द्वारा इसमें की जा रही बढ़ोतरी विश्व स्वास्थ्य के लिए जगजाहिर खतरा है। पिछले कुछ माह से इस विषय पर कई किताबें आई हैं। ज्यादातर पोषण विज्ञानियों और चिकित्सकों का एक ही संदेश है कि यूपीएफ आपके लिए थोड़ा-बहुत ही खराब नहीं है, बल्कि यह खतरनाक है। इसकी लत लग जाती है, लोग ओवरईटिंग यानी पेट भरने के बाद भी स्वाद के कारण ज्यादा खाने लगते हैं। नतीजा, मोटे हो जाते हैं। कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और हृदयाघात के शिकार हो जाते हैं। ये सब मृत्यु को जल्दी निमंत्रण देते हैं।
हमने ऐसे खाद्य पदार्थों का सेवन धड़ल्ले से शुरू कर दिया है जो असल में ‘भोजन’ की श्रेणी में ही नहीं आता। स्टार्टर खाने के नाम पर शरीर में एमल्सिफायर, कम कैलोरी वाले स्वीटनर, स्टेबिलाइजिंग गम, फ्लेवर, डाई, रंग, कार्बोनेटिंग एजेंट, फर्मिंग एजेंट और बल्किंग-एंटी बल्किंग एजेंट शरीर में डाल रहे हैं। यह ऐसा विषय है, जिसका सरोकार सरकार से नहीं है। ब्रिटेन में एनएचएस का 10 प्रतिशत बजट केवल डायबिटीज पर ही खर्च हो जाता है। पर अगर आप ईएसजी निवेश मेें रुचि रखते हैं तो आप यह भी सोच सकते हैं कि जिन कम्पनियों के कारण स्वास्थ्य संकट सामने है, वे करीब-करीब सभी ग्लोबल पोर्टफोलियो में शीर्ष कम्पनियां हैं।
ईएसजी में सबसे ज्यादा महत्व ‘ई’ को दिया गया है। इसके तहत फूड कम्पनियों के संदर्भ में कार्बन उत्सर्जन (हरेक कम्पनी नेट जीरो लक्ष्य के पथ पर अग्रसर है), प्रदूषण और आपूर्ति शृंखला समाकलन को महत्त्व दिया जाता है। ‘एस’ के तहत आता है-स्वास्थ्य व सुरक्षा, समावेशन आदि। दीर्घकालिक खाद्य से आशय केवल इतना नहीं है कि यह कहां उगाया जाता है और इसे कौन उगाता है, बल्कि यह भी कि यह उत्पाद उपभोक्ता के लिए कैसा है। आपको ऐसे सामान्य पैमाने मिल जाएंगे जो यह मापते हैं कि अमुक खाद्य उत्पाद स्वास्थ्य को हानि पहुंचा रहा है, स्वास्थ्य सेवाओं पर बोझ डाल रहा है और देशों की उत्पादन क्षमता घटा रहा है। यह ‘एस’ काफी महत्त्वपूर्ण है। कुछ ऐसे संकेत हैं कि वित्त मंत्रालयों की इस पर नजर है। 2021 में टोक्यो न्यूट्रिशन फॉर ग्रोथ (एन4जी) सम्मेलन में निवेशकों के एक समूह ने कहा कि खाद्य एवं पेय कम्पनियों को पोषण रूपरेखा प्रणाली तैयार करनी चाहिए, जिसमें वे बता सकें कि क्या खाना स्वास्थ्य के लिए ठीक है और क्या नहीं। अभी तक इस बारे में सिर्फ बातें ही हुई हैं, काम नहीं। ईएसजी निवेशकों को कुछ बॉक्स पर टिक करना होगा। इस बारे में कोई सहमति नहीं बनी है कि ये बॉक्स क्या होने चाहिए। ये हो सकते हैं द्ग बेमेल, साक्ष्य आधारित ईएसजी पोषण पैमाना और निस्संदेह ‘इनमें से कुछ नहीं’ वाला बॉक्स, जो ज्यादातर बड़ी फूड कम्पनियां इस्तेमाल करती हैं।
‘पोषण पहल तक पहुंच (एटीएनआइ) वैश्विक सूचकांक’ में विश्व की 25 शीर्ष कम्पनियां आती हैं। पर इसमें उत्पादों का योगदान 35 प्रतिशत ही है। बाकी संचालन, लेबलिंग और मार्केटिंग के हिस्से आता है। नेस्ले इस सूची में शीर्ष पर है जबकि 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार, ‘इसके 60 प्रतिशत से ज्यादा उत्पाद स्वास्थ्य की मान्यता प्राप्त परिभाषा को पूरा नहीं करते।’ इससे उकता चुके उपभोक्ताओं के पास शायद कोई उपाय हो जो स्थिति को बेहतर बना सके।
उपभोक्ता जरूर इस बारे में चिंतित हैं। वे नेट पर सर्च करते हैं-क्या कोक जीरो में एस्पार्टेम है? विश्व स्वास्थ्य संगठन की चेतावनी के बाद कि कृत्रिम स्वीटनर कैंसरकारी हैं; बहुत से फंड मैनेजरों ने कहना शुरू कर दिया है कि वे भी इस बारे में चिंतित हैं। यही समय है इस बारे में सही दिशा में काम हो और फूड कम्पनियों पर दबाव डाला जाए कि वे मानक आवश्यक जानकारी पैकेट पर दें। अपने ग्रह को बचाने के लिए इतना समय और प्रयास तो हमें निवेश करने ही होंगे। पर अगर आप ऐसी कम्पनियों में निवेश कर रहे हैं जो अरसे से दुनिया भर के लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रही हैं तो यह ग्रह हम वास्तव में बचा किसके लिए रहे हैं?