बड़ी आबादी हमारे लिए वरदान, लेकिन उसके साथ कई चुनौतियां भी जुड़ी हैं…

बड़ी आबादी हमारे लिए वरदान, लेकिन उसके साथ कई चुनौतियां भी जुड़ी हैं…

हाल ही में भारत चीन को पीछे छोड़कर दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन गया। अब हमारी जनसंख्या 1 अरब 40 करोड़ हो चुकी है। यह आजादी के बाद वाले भारत के इतिहास का एक अहम मोड़ है और आशाएं लगाई जा रही हैं कि भारत आर्थिक विकास के नए स्तरों को छू सकेगा। लेकिन भारत की आबादी पर बात करते हुए एक ही सवाल बारम्बार हमारे सामने उपस्थित हो जाता है : यह हमारे लिए वरदान साबित होगी या अभिशाप? इस सवाल का कोई भी सरल जवाब हां या ना में नहीं हो सकता।

मेरे नजरिए में हमारी बड़ी आबादी हमारे लिए एक वरदान की तरह है, लेकिन उसके साथ कई महत्वपूर्ण चुनौतियां भी जुड़ी हैं।इतने ही महत्व की खबर यह भी थी कि भारत अब यूके को पीछे छोड़कर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है।

अनेक विशेषज्ञों का मत है कि भारत यह दशक पूरा होते-होते ग्लोबल इकोनॉमिक रैंकिंग में शीर्ष तीन पर पहुंचने की ओर अग्रसर है। लेकिन इससे पहले हमें कुछ चीजें अर्जित करना होंगी। भारत को आर्थिक महाशक्ति बनाने के लिए उसकी आबादी का वर्कफोर्स में योगदान देने के लिए युवा होना और अपनी एक पहचान छोड़ने के लिए कुशल होना जरूरी है।

निरंतर उन्नति के लिए कुछ अन्य पहलू भी महत्वपूर्ण हैं, जैसे गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले लोगों की संख्या में क्रमिक गिरावट, आजीविका के नियमित अवसर, उपयुक्त शिक्षा, बढ़िया बुनियादी ढांचा, निवेश की निरंतरता, तकनीकी प्रगति और विभिन्न क्षेत्रों में शोध को बढ़ावा देना।

जहां तक युवा वर्कफोर्स का प्रश्न है, भारत को चिंता करने की जरूरत नहीं। डेमोग्राफिक डिविडेंड हमारे पक्ष में है। यह तब होता है, जब कार्यक्षम आबादी की संख्या उस पर निर्भर लोगों- जैसे बच्चे और बूढ़े- की तुलना में अधिक होती है।

वर्ल्ड पॉपुलेशन प्रोस्पेक्ट्स के डाटा के अनुसार भारत की आबादी की मीडियन-एज 28.2 वर्ष है। यूएन डाटा के आकलनों के मुताबिक देश की आबादी 2064 में अपने पीक पर पहुंचकर 1.7 अरब की हो जाएगी, उसी के बाद इस आय-अनुपात में बदलाव शुरू होगा।

अगर हम एकाग्र होकर अपने जनसांख्यिकीय-लाभ को सही तरीके से चैनलाइज कर सकें तो बड़ी आर्थिक ताकत बन सकते हैं। लेकिन इसके लिए हमें अपने युवाओं को आज के तेजी से बदलते डिजिटल-समय के अनुरूप बनाना होगा। हमें उनकी मांग के अनुरूप रोजगार के अवसर मुहैया कराना होंगे और उन्हें जरूरी संसाधन प्रदान कराना होंगे।

हमारे सामने हर साल एक करोड़ नौकरियां सृजित करने की चुनौती है। जिस तरह से एआई अनेक बुनियादी स्तर की नौकरियां हथिया रही है, उसको देखते हुए हमें अपने युवाओं के लिए विभिन्न प्रकार के रोजगार-प्रशिक्षण प्लेटफॉर्म बनाते हुए उनकी रीस्किलिंग करना होगी।

विकसित देशों में बुजुर्ग होती आबादी और वर्क-लाइफ बैलेंस की ओर बढ़ते रूझान के चलते कुशल कामगारों की किल्लत होने लगी है। आज भारतीय उद्योगों के अनेक सेक्टरों में भी बेमेल स्किल्स का दृश्य देखने को मिलता है। हमें अपने व्यवसाय में ही नियमित रूप से कंस्ट्रक्शन और प्लांटेशन वर्करों की कमी से जूझना पड़ता है।

भारत को इस क्षेत्र में विकास करते हुए कुछ ऐसे डिजिटल प्लेटफॉर्मों का निर्माण करना होगा कि कुशलताओं व रिक्त-पदों का मेल किया जा सके। वर्कफोर्स में महिलाओं की संख्या भी बढ़ाना होगी। तभी हम चीन को चुनौती देने में सक्षम औद्योगिक और कृषि-उत्पादन क्षेत्र के कद्दावर बन सकेंगे।

रोजगार-निर्माण दो फैक्टर पर निर्भर है : सार्वजनिक इंफ्रास्ट्रक्चर और निजी क्षेत्र की औद्योगिक गतिविधियों में बड़े पैमाने पर निवेश। भारत सरकार विभिन्न योजनाओं की मदद से रेल, सड़क, हवाई अड्‌डे, बंदरगाह जैसी बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं के लिए वार्षिक व्यय बढ़ा रही है।

वर्ष 2016 में जहां भारत में केवल 452 स्टार्टअप कम्पनियां थीं, वहीं वे 2022 में 84,012 तक पहुंच गईं। इन स्टार्टअप्स ने 9 लाख नई नौकरियां सृजित की हैं, लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इनमें से लगभग आधी स्टार्टअप कम्पनियों की स्थापना छोटे शहरों और कस्बों में की गई थी।

घरेलू और निर्यात मांग की पूर्ति के लिए स्थापित निजी क्षेत्र भी अपनी क्षमताओं को बढ़ाते हुए जॉब-क्रिएशन में सक्रिय सहयोगी रहा है। साथ ही भारत के कृषि क्षेत्र और निर्यात को आगे ले जाना भी इतना ही जरूरी है। हमारे देशवासी ही हमारा सबसे बड़ा एसेट हैं।

युवाओं के हाथों में हमारी आर्थिक-नियति है, लेकिन इसके लिए हमें उन्हें जरूरी उपकरण और सुविधाएं मुहैया कराना होंगे। हमें भविष्य के लिए योजनाएं बनाते हुए महत्वपूर्ण क्षेत्रों में बड़े निवेश करना होंगे। याद रखें किसी देश की आबादी का आकार ही नहीं, उसकी गुणवत्ता भी उसे एक महाशक्ति बनाती है!

(ये लेखक के अपने विचार है)

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