कौन निगल रहा है देश में औरतों को ?
कौन निगल रहा है देश में औरतों को ?
हमारे पास बहस के लिए तमाम मुद्दे हैं सिवाय औरतों को छोड़कर। हमारी सरकार किसी का डिब्बा गोल करने के इशारे करना जानती है किन्तु तेजी से गुम हो रही औरतों को बचाने का कोई इशारा उसके पास नहीं है । । औरतों की कहानी में कोई तब्दीली नहीं आयी है। न कांग्रेस की सरकार में और न महाबली भाजपा की सरकार में। ‘अबला जीवन है तुम्हारी यही कहानी ,आँचल में है दूध और आँखों में पानी’वाली स्थिति ज्यों कि त्यों है। महिलाओं के आंसू पौंछने वाले लोग,सरकार और व्यवस्था लगातार कमजोर हो रही है। देश की हंगामे में डूबी संसद में देश से महिलाओं के लगातार गायब होने के आंकड़े पेश किये गए किन्तु किसी ने इस पर बहस नहीं की।
देश में महिलाओं के लापता होने का हिसाब जनता के पास नहीं ,सरकार के पास होता है । भले ही ये हिसाब आधा-अधूरा होता हो लेकिन ये भी चौकाने वाला होता है और इस हिसाब किताब को देखकर हमारा सर शर्म से झुक जाना चाहिए ,पर नहीं झुकता । राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा संकलित आंकड़ों को पिछले सप्ताह संसद में पेश किया गया जिससे पता चलता है कि पूरे देश में साल 2019 से 2021 के बीच 13.13 लाख लड़कियां और महिलाएं लापता हुईं जिसमें 18 साल से अधिक उम्र की 1061648 महिलाएं और उससे कम उम्र की 251430 लड़कियां शामिल हैं।
दरअसल हम उस देश के वासी हैं जिसमें बाघों के लिए अभ्यारण्य हैं और उनकी बाकायदा गिनती की जाती है किन्तु औरतों का इस देश में कोई अभ्यारण्य नहीं है और न उनके गायब होने पर कोई पायलट प्रोजेक्ट बनाया जाता है। दुर्भाग्य से देश में सबसे ज्यादा महिलायें उस प्रदेश से गायब होतीं हैं जहां डबल इंजिन की सरकार है और जो प्रदेश माननीय प्रधानमंत्री और गृह मंत्री जी को बहुत प्रिय है । इस प्रदेश में मामा की सरकार है। आप समझ गए होंगे की मै किस प्रदेश की बात कर रहा हूँ ? दुर्भाग्य से ये प्रदेश मेरा अपना प्रदेश, मध्यप्रदेश है । एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि सबसे अधिक महिलाएं मध्य प्रदेश से लापता होती हैं। उसके बाद बंगाल में महिलाएं व लड़कियां गायब हुईं।केंद्र शासित प्रदेशों में दिल्ली में लड़कियों और महिलाओं के लापता होने की संख्या सबसे अधिक रही।आंकड़ों के मुताबिक़ राष्ट्रीय राजधानी में 2019 और 2021 के बीच 61,054 महिलाएं और 22,919 लड़कियां लापता हो गईं। जम्मू और कश्मीर में उक्त अवधि में 8,617 महिलाएं और 1,148 लड़कियां लापता हो गईं।
मध्यप्रदेश लाड़ली बेटियों और लाडलीय बहनों का प्रदेश है। मध्य्प्रदेश के मुख्यमंत्री इनके ऊपर जान छिड़कते है। लड़कियों को मुफ्त साइकल,स्कूटी,लेपटॉप और शिक्षा देते हैं। लाड़ली बहनों के खाते में हर महीने एक हजार रूपये जमा करते हैं फिर भी प्रदेश से 160180 महिलाएं लापता हो जातीं हैं। इनमें 38234 लाड़ली बेटियां होती है। अब इन्हें या तो मध्यप्रदेश में लगातार बढ़ रहे बाघ खा जाते हैं या फिर ये उस नर्क में धकेल दी जातीं हैं जिसे मर्द ही चलाते है। बात केवल मध्यप्रदेश की ही नहीं है । मामा के राज में तो ये सब हो ही रहा है साथ ही बहन ममता बनर्जी के राज में भी महिलाओं की दुर्दशा मध्यप्रदेश जैसी ही है। बहन ममता बनर्जी के बंगाल में 156905 महिलाएं लापता हुईं ,इनमें से 36606 केवल लड़कियां हैं। तीन इंजन वाले मध्यप्रदेश का स्थान महिलाओं के गायब होने के मामले में तीसरे स्थान पर है । महाराष्ट्र नाम के इस सूबे से बीते दो साल में 178400 महिलायें गायब हुईं ,जिसमें से 13033 लड़कियां शामिल हैं। इन बड़े राज्यों के अलावा ओडिशा और छत्तीसगढ़ भी महिलाओं की सुरक्षा नहीं कर पाता समाज के भेड़ियों और बाघों से।
महिला उत्पीड़न में इस समय शीर्ष पर मणिपुर है। इस मुद्दे पर मौन रहने वाली हमारी सरकार ने बड़ी ही विनम्रता से संसद को बताया कि सरकार ने देश भर में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई पहल की हैं। इनमें यौन अपराधों के प्रभावी रोकथाम के लिए कानून को लागू करना शामिल है। आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम 2018 में 12 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों से दुष्कर्म के लिए मृत्युदंड सहित कठोर दंडात्मक प्रविधान किया गया है। 112 नंबर डायल वाली आपातकालीन सहायता प्रणाली लागू की है। अब ये लापता होने वाली महिलाओं का दोष है कि वे इस प्रणाली का इस्तेमाल नहीं करतीं। सरकार ने देश के 08 शहरों के लिए ‘ सेफ सिटी परियोजना ‘ भी लागू की है। लेकिन महिलाएं इन्हीं बड़े 08 शहरों में सुरक्षित नहीं है। आपको बता दें कि सेफ सिटी परियोजना वाले इन शहरों में अहमदाबाद, बेंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता, लखनऊ और मुंबई शामिल हैं।
समस्या ये है कि देश में महिलाएं कभी मुद्दा रहीं ही नही। मुद्दा है कुर्सी। मुद्दा है मोदी जी और राहुल जी। मुद्दा है विपक्षी गठबंधन ,मुद्दा है दिल्ली सूबे की सरकार को परेशान करना। लापता होती औरतों को लेकर कौन बहस करे ? स्मृति ईरानी तो इस मुद्दे पर बहस करने से रहीं। शायद वे भूल चुकी हैं कि वे भी एक महिला हैं और उनके यहां भी एक लाड़ली बेटी है। संसद में महिला सांसदों कि संख्या ले-देकर अभी 78 तक पहुंची है। पहले तो इतनी भी नहीं थी लेकिन ये महिला संसद भी अपनी बिरादरी के लगातार गायब होने पर न सदन में चीख-चिल्ला पातीं हैं और काली पट्टियां बाँध पातीं हैं। क्योंकि इन्हें खुद अपनी सुरक्षा की चिंता सताती रहती है । बीहड़ से संसद तक पहुंची फूलन देवी को भी इस देश की सरकार और पुलिस नहीं बचा पायी थी।
भारत में महिलाओं के लगातार गायब होने पर एक जमाने में नोबुल पुरस्कार विजेता अमृत्य सेन ने इस देश को ‘ मिसिंग वूमेन ‘ वाला देश कहा था। सेन साहब मौजूदा सरकार को फूटी आँख नहीं सुहाते क्योंकि वे सरकार की हाँ में हाँ नहीं मिलाते। देश में प्रति 1000 व्यक्ति पर 1020 महिलाएं हैं। इस हिसाब से महिलाओं की कोई कमी नहीं है जो उन्हें लापता किया जाता है। देश की कुल आबादी का 48 फीसदी हिस्सा महिलाओं का है फिर भी सबसे ज्यादा दुर्दशा इन्हीं महिलाओं की है। लापता महिलाओं को धरती लील लेती है या आसमान उड़ा लेता है ,कोई नहीं जानता। पुलिस भी नहीं जानती और सरकार भी । संसद सिर्फ एनसीआरबी के आंकड़ों के बारे में जानती है । मुमकिन है कि आने वाले दिनों में ये आंकड़े देने वाली एनसीआरबी भी महिलाओं की तरह लापता हो जाए। क्योंकि एनसीआरबी के आंकड़ों से सरकार की बदनामी होती ह। सरकार को नीचा देखना पड़ता है। जबकि सरकार हमेशा ऊपर देखना चाहती है।
मुझे पूरा भरोसा हैए कि आजकल में जब संसद में मौजूदा सरकार के खिलाफ विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव आएगा तब भी महिलाओं के लापता होने पर कोई नहीं बोलेगा। कोई अपना मुंह नहीं खोलेगा । जिन मुद्दों को लेकर सरकार को आड़े हाथों लिया जाएगा वे मुद्दे दूसरे ही होंगे। महिलाओं के मामले में पुरुषों का नजरिया एक जैसा ही है ,चाहे वे पुरुष सांसद किसी भी दल के हों। महिलाओं की रक्षा अब केवल भगवान ही कर सकता है। विवेक अग्निहोत्री जैसे राष्ट्रवादी फिल्म निर्माता ही इस मुद्दे पर शायद कभी मौक़ा मिले तो फिल्म बनायें लेकिन उसका प्रमोशन कौन करेगा ? देश में अब कोई महिला प्रधानमंत्री तो है नहीं और आगे भी कोई समभावना नहीं दिखाई देती ,क्योंकि तीसरा टर्म तो मौजूदा प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी अपने नाम पहले ही लिख चुके हैं। हम जैसे लोग लापता लाड़ली बेटियों और बहनों की सुरक्षा के लिए केवल कामना कर सकते हैं सो कर रहे है। भले ही कोई हमारी सुने या न सुने।