कोचिंग से पहले काउंसलिंग भी है जरूरी !

कॅरियर: मनोवैज्ञानिक विश्लेषण से संभव है सही राह का चुनाव …

अ भिभावकों की चाहत के कारण कई बार छात्र ऐसा विषय चुन लेते हैं जिसमें उनकी रुचि होती ही नहीं। महंगी शिक्षा के चलते कई बार ऐसे छात्र इस दबाव में भी आ जाते हैं कि वे अपने अभिभावकों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाएंगे। ऐसा दबाव ही बच्चों को आत्महत्या जैसा घातक कदम उठाने को मजबूर कर देता है। खास तौर से मेडिकल व आइआइटी में दाखिले की तैयारी करने वाले उन बच्चों के साथ यह समस्या ज्यादा देखने में आती है जो घर से काफी दूर कोचिंग के लिए दूसरे शहरों में आते हैं।

कोचिंग हब बनते जा रहे शहरों में यह अलग तरह की समस्या सामने आ रही है जिसमें सकारात्मक माहौल बनाने के तमाम प्रयासों के बावजूद कोचिंग छात्रों को निराशा के ऐसे भंवर से निकाल पाना बड़ी चुनौती बनी हुई है। राजस्थान के कोटा शहर में भी अवसाद में आए बच्चों के मौत को गले लगाने की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। आत्महत्या के ज्यादातर ऐसे मामलों में कोचिंग के दौरान विद्यार्थियों का खराब शैक्षणिक प्रदर्शन, अभिभावकों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाना और कोचिंग के दौरान खर्चों का दबाव ही जिम्मेदार नजर आता है। ऐसे में यह जरूरी हो गया है कि छात्रों को सही कॅरियर चुनने में मदद करने के प्रयासों में तेजी लाई जाए। विभिन्न संस्थाओं ने इसके लिए काफी प्रयास भी किए हैं।

कोचिंग छात्रों की काउंसलिंग के दौरान यह बात भी सामने आती है कि बेहतर भविष्य की नींव रखने के मकसद से अभिभावक अपने बच्चों को कोचिंग संस्थानों में भेजते हैं। बेरोजगारी तथा प्रतियोगिता के दौर में बच्चों और उनके माता-पिता दोनों को यह उम्मीद होती है कि कोचिंग की सहायता से बच्चों का दाखिला उनका भविष्य बनाने वाले पाठक्रम में हो जाएगा।

समस्या यही है कि आम तौर पर बच्चों को कहां और किस बात की तैयारी कराई जाए, इसके लिए मनोवैज्ञानिक तरीके से उनकी रुचि जानने का प्रयास होता ही नहीं। आशा के अनुरूप प्रदर्शन नहीं हो पाता तो बच्चे अनावश्यक दबाव व तनाव के शिकार हो जाते हैं। प्रत्येक बच्चे का प्रत्येक कॅरियर के प्रति रुझान नहीं होता। जैसे हम अपनी शारीरिक संरचना के अनुसार ही किसी काम को करने का साहस दिखाते हैं, उसी तरह से बच्चों की क्षमता का आकलन भी किया जाता है। हो सकता है कि कुछ कॅरियर्स में वे उत्साह प्रदर्शित करें और कुछ में नहीं। इस विशिष्ट मनोवैज्ञानिक संरचना को समझना जरूरी है। क्योंकि यह जाहिर-सी बात है कि जिन बच्चों की मनोवैज्ञानिक सरंचना उनके द्वारा चुने हुए कॅरियर के अनुरूप नहीं होती है, वे कोचिंग ही नहीं बल्कि किसी भी स्तर पर बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाते।

यह बात भी सही है कि प्रतिभाशाली व उत्कृष्ट क्षमता वालों के लिए अच्छे रोजगार और बेहतर कॅरियर अवसरों की कमी नहीं होती। भले ही यह पढ़ाई-लिखाई का मामला हो या फिर रोजगार का। इसलिए यह आवश्यक है कि जहां बच्चोें के लिए उत्कृष्टता साबित करना संभव हो उस क्षेत्र को ही कॅरियर के रूप में चुनें। इसके लिए संबंधित विषय या कारोबार के प्रति जुनून होना चाहिए। ऐसा जुनून जिसका सीधा संबंध व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक संरचना से है। ऐसे में कोचिंग कर रहे उन छात्रों को ज्यादा संबल की जरूरत है जिनके अवसादग्रस्त होने का खतरा है। एहतियाती उपायों के तौर पर कोचिंग कर रहे उन छात्रों की पहचान की जानी चाहिए जो एक बार किसी भी पाठ्यक्रम में दाखिले के लिए होने वाली प्रवेश परीक्षा में विफल हो चुके हैं। उन छात्रों पर भी नजर रखनी होगी जो कोचिंग के दौरान विभिन्न कारणों से दबावग्रस्त महसूस करते हैं।

छात्रों की मनोवैज्ञानिक संरचना का पता करते हुए उन क्षेत्रों की पहचान की जानी चाहिए, जिनमें इन छात्रों की अभिरुचि नजर आती हो। बच्चों का जहां मन करे, उन्हें उसी क्षेत्र में कदम रखने का मौका मिलना चाहिए। कॅरियर्स के बारे में सलाह लगातार दी जानी चाहिए। इन सबके लिए कोचिंग संस्थानों को तो प्रयास करने ही होंगे, जिम्मेदार सरकारी महकमों को भी कॅरियर काउंसलिंग के लिए ऐसे प्रयास करने होंगे जिसमें कोचिंग करने वाले छात्रों को मानसिक रूप से मजबूत किया जा सके।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *