‘इंडिया’ गठबंधन में सीटों के बंटवारे पर तनातनी!

जैसे -जैसे चुनाव करीब आ रहे हैं, 26 विपक्षी दलों से निर्मित गठजोड़ में तनाव बढ़ता जा रहा है। मुम्बई में 25 अगस्त से होने जा रही इस गठबंधन की तीसरी बैठक को स्थगित कर दिया गया है। अब वह सितम्बर के पहले सप्ताह में होगी। वह ‘इंडिया’ की एक ऐसे राज्य में पहली बैठक होगी, जहां उसकी सरकार नहीं है। इससे पहले की दो बैठकें पटना और बेंगलुरु में हुई थीं।

मुम्बई में कांग्रेस इस गठबंधन की मेजबानी दो टूटी हुई पार्टियों के साथ करेगी- शिवसेना और एनसीपी। बैठक में सीट-शेयरिंग के फॉर्मूले पर चर्चा की जाना है, जो कि इससे पहले की दोनों बैठकों में नहीं हुई थी। और यह मतभेदों का कारण बन सकता है।

पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से ममता बनर्जी कितनी सीटें कांग्रेस और लेफ्ट को देना चाहेंगी? दिल्ली के बारे में क्या, जहां पर अरविंद केजरीवाल की कांग्रेस से ठनी हुई है? वहीं दिल्ली और पंजाब कांग्रेस की स्थानीय इकाइयां भी ‘आप’ के साथ सीटें शेयर करने को राजी नहीं हैं।

महाराष्ट्र और बिहार में भी सीटों के शेयर का फॉर्मूला टेढ़ी खीर साबित होगा। महाराष्ट्र के कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले एक अरसे से शिवसेना और एनसीपी के साथ मिलकर बीएमसी स्तर के चुनाव लड़ने का भी विरोध करते आ रहे हैं।

बिहार में नीतीश कुमार इसकी तुलना में थोड़ी दरियादिली दिखा सकते हैं। लेकिन कांग्रेस को सीटें देना ताकतवर जदयू-राजद गठजोड़ के लिए नुकसान का सौदा साबित हो सकता है, क्योंकि राज्य में कांग्रेस की हैसियत हाशिए की पार्टी की ही है।

चूंकि ‘इंडिया’ गठबंधन की वर्तमान की 140 लोकसभा सीटों में से अधिकतर चार ही पार्टियों- कांग्रेस, जदयू, टीएमसी और द्रमुक- की हैं, इसलिए वह उम्मीद कर रहा है कि राज्यों में सीटों के आवंटन पर होने वाले टकरावों को न्यूनतम किया जा सके। ‘इंडिया’ गठबंधन ने अपने प्रधानमंत्री पद के किसी चेहरे की भी घोषणा नहीं की है, क्योंकि इस पर भी विवाद छिड़ सकता है।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कह चुके हैं कि उनकी पार्टी राहुल गांधी या किसी भी कांग्रेस नेता के प्रधानमंत्री बनने में रुचि नहीं ले रही है। संसद से राहुल की अपात्रता के सम्बंध में सर्वोच्च अदालत का फैसला आने वाला है। अगर अदालत राहुल को दोषी ठहराए जाने के निर्णय पर स्टे दे देता है तो वे लोकसभा में लौट आएंगे और मणिपुर सहित अन्य महत्वपूर्ण मसलों पर प्रधानमंत्री को घेरेंगे।

लेकिन संसद में राहुल का पुन: प्रवेश दोधारी तलवार साबित हो सकता है। भाजपा चाहती है कि 2024 का चुनाव मोदी बनाम अन्य की तरह लड़ा जाए। लेकिन अगर राहुल विपक्ष के नेता माने जाते हैं तो मोदी बनाम राहुल का टकराव भाजपा के और पक्ष में जाएगा।

मोदी पहले ही मन बना चुके हैं कि ‘इंडिया’ गठबंधन को भ्रष्टाचार और वंशवाद के मुद्दे पर घेरेंगे, क्योंकि विपक्षी गठजोड़ में परिवारवादी पार्टियों का बोलबाला है, फिर चाहे वह तेजस्वी यादव की राजद हो या उमर अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस। इनमें से अनेक दलों के नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं।

दूसरी तरफ भाजपा की भी इस बात के लिए उचित ही आलोचना की जा रही है कि वह विपक्षी नेताओं पर चल रहे मुकदमों को उनकी परिणति तक नहीं ले जा पा रही है। सीबीआई और ईडी सरकार से मुक्त होते हैं, पर माना जा रहा है कि सरकार के द्वारा उन्हें संवेदनशील मामलों में अभियोजन को टालने का संकेत किया गया है।

मिसाल के तौर पर, रॉबर्ट वाड्रा पर चल रहे भूमि-अधिग्रहण के मामले की बात करें। यह मुकदमा एक दशक से आगे नहीं बढ़ा है। सरकार यह ज्यादा पसंद करती है कि विपक्षी नेताओं के सिर पर खतरे की तलवार मंडराती रहे, बनिस्बत इसके कि उन्हें जेल भेजकर विक्टिम-कार्ड खेलने का मौका दे।

मोदी चुनाव-प्रचार में अपनी सरकार की सफलताएं गिनाने का भी मन बनाए हुए हैं। वे देश को बताना चाहते हैं कि कैसे उनके कार्यकाल में भारत दुनिया की दसवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से आगे बढ़कर अब 2027 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है। 2014 में केवल 20 प्रतिशत भारतीयों के पास बैंक खाते थे, जो अब 80 प्रतिशत हो चुके हैं।

अर्थव्यवस्था का डिजिटलीकरण सफल रहा है। बुनियादी ढांचे पर तेजी से काम हुआ है। विदेश नीति मजबूत बनी हुई है। इसके बावजूद 2024 के चुनावों में सॉफ्ट-हिंदुत्व का जोर रहने वाला है। राम मंदिर का विमोचन इसमें केंद्रीय भूमिका निभाने जा रहा है। भारत की जी-20 की अध्यक्षता नवम्बर में समाप्त होगी। उसके तुरंत बाद राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनाव परिणाम आ चुके होंगे। चुनावी माहौल तब तक पूरी तरह से जम जाएगा।

‘इंडिया’ गठबंधन के लिए 2024 के लोकसभा चुनाव अस्तित्व का प्रश्न बन गए हैं। इनमें हार का मतलब होगा सत्ता से 15 वर्षों का वनवास। इतना अरसा किसी भी वंशवादी राजनीतिक इको-सिस्टम के पतन के लिए बहुत है!

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