हरिवंश ने ही वोटिंग की प्रक्रिया पूरी करवाई !

अमित शाह की स्पीच तक चेयर पर थे धनखड़, वोटिंग के वक्त हरिवंश की एंट्री; JDU के व्हिप का हो गया ‘खेल’?
संविधान के जानकार वोटिंग से पहले चेयर पर हरिवंश की एंट्री को बस एक इत्तिफाक बता रहे हैं, लेकिन सियासी गलियारों में इतेफाक से आगे की भी चर्चा हो रही है. वजह है, जेडीयू का 3 लाइन का एक व्हिप.

इतना ही नहीं, अमित शाह जब समापन भाषण दे रहे थे, तो उस वक्त भी चेयर पर धनखड़ ही मौजूद थे, लेकिन जैसे ही बिल पर वोटिंग की बारी आई, धनखड़ बाहर चले गए. धनखड़ के जाते ही चेयर पर हरिवंश आ गए और वोटिंग की प्रक्रिया पूरी करवाई.

संविधान के जानकार इसे इत्तिफाक बता रहे हैं, लेकिन राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा का विषय बना हुआ है. इसकी वजह जेडीयू का 3 लाइन का एक व्हिप भी है. लोग सवाल पूछ रहे हैं कि क्या नीतीश कुमार की पार्टी के व्हिप के साथ राज्यसभा में खेल हो गया?

1-1 वोट था जरूरी, इसलिए बीमार मनमोहन और सोरेन डटे रहे
राज्यसभा में दिल्ली सर्विस बिल के खिलाफ विपक्ष की कोशिश ज्यादा से ज्यादा वोटिंग कराने की थी. कांग्रेस, जेडीयू और आप ने व्हिप जारी किया था. 1-1 वोट की जरूरत इसी से समझा जा सकता है कि सदन में अंत तक बीमार मनमोहन सिंह और शिबू सोरेन डटे रहे.

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह राजस्थान से कांग्रेस के राज्यसभा सांसद हैं, जबकि शिबू सोरेन झारखंड से झामुमो के सांसद. वोटिंग के इंतजार में व्हिल चेयर पर बैठे मनमोहन सिंह की तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई.

वोटिंग के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप संयोजक अरविंद केजरीवाल ने मनमोहन सिंह और शिबू सोरेन का आभार भी जताया. हालांकि, बीजेपी ने इसे कांग्रेस की सनक करार दिया.

बिल के समर्थन में 131 तो विरोध में पड़े 102 वोट
वोटिंग के दौरान बिल के समर्थन में 131 वोट पड़े. बीजेपी को बीजेपी, एआईएडीएमके और वाईएस आर कांग्रेस का भी समर्थन मिला. इसके अलावा 5 मनोनीत सांसदों ने भी बीजेपी के पक्ष में वोट किए. विरोध में इंडिया गठबंधन के सभी दलों ने वोटिंग की.

जयंत चौधरी और कपिल सिब्बल सदन में नहीं थे, इसलिए इनका वोट न पक्ष में पड़ा न विपक्ष में. इसी तरह जेडीएस सांसद देवेगौड़ा भी सदन में नहीं थे. पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा कांग्रेस के समर्थन से राज्यसभा पहुंचे हैं.

जेडीयू के व्हिप के साथ हो गया खेल?
वोटिंग से पहले जगदीप धनखड़ के एग्जिट और चेयर पर हरिवंश की एंट्री को भले एक इत्तिफाक बताया जा रहा हो, लेकिन जानकारों का कहना है कि यह प्रायोजित भी हो सकता है. इसकी वजह जेडीयू की ओर से जारी तीन लाइन का व्हिप है.

अगर, हरिवंश सभापति कुर्सी पर नहीं जाते, तो उन्हें दिल्ली बिल के खिलाफ वोट करना पड़ता. ऐसा नहीं करने पर उनकी सदस्यता चली जाती और उपसभापति के कुर्सी पद से भी उन्हें हाथ धोना पड़ता. सभापति की कुर्सी पर जाकर हरिवंश जेडीयू के व्हिप से बच गए हैं.

3 साल से उपसभापति पद पर काबिज हरिवंश को पहली बार पार्टी ने व्हिप जारी किया था. राज्यसभा में जेडीयू के मुख्य सचेतक अनिल हेगड़े ने उन्हें व्हिप का पर्चा थमाया था. हरिवंश समेत राज्यसभा में जनता दल यूनाइटेड के 5 सांसद हैं.

कानून से ज्यादा नैतिकता का मसला, 3 प्वॉइंट्स…

1. जेडीयू के सूत्रों का कहना है कि यह कानून से ज्यादा नैतिकता का मसला है. पहली बार किसी उपसभापति को पार्टी की ओर से व्हिप जारी किया गया यानी पार्टी हाईकमान को आप पर विश्वास नहीं है. हरिवंश भले कुर्सी बचाने में कामयाब हो गए हों, लेकिन नैतिक तौर पर पार्टी का विश्वास उन्होंने खो दिया है.

2. हरिवंश की भूमिका पर पहले भी सवाल उठ चुका है. संसद के उद्घाटन का जेडीयू ने बहिष्कार किया था, लेकिन हरिवंश उसमें शामिल हुए थे. उस वक्त जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह ने उनके नैतिकता पर सवाल उठाया था. सिंह ने कहा था कि हरिवंश ने अपनी नैतिकता को गिरवी रख दिया है.

3. टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए पूर्व उपसभापति पीजे कुरियन ने कहा है कि व्हिप जारी करना पार्टी का विशेषाधिकार है. बिना सांसद रहे व्यक्ति उपसभापति नहीं बन सकता है यानी जेडीयू की वजह से ही हरिवंश सदन में उपसभापति हैं.

हरिवंश पर जेडीयू ने साध चुप्पी, हेगड़े की रिपोर्ट का इंतजार
हरिवंश मामले पर जनता दल यूनाइटेड हाईकमान ने चुप्पी साध ली है. बड़े नेता इस पर बयान देने स बच रहे हैं. हालांकि, जेडीयू के राष्ट्रीय सलाहकार केसी त्यागी ने एबीपी से बात करते हुए कहा है कि हरिवंश मामले में अनिल हेगड़े ही कुछ बता पाएंगे, क्योंकि वोटिंग के वक्त वहां पर हेगड़े मौजूद थे.

जेडीयू सूत्रों के मुताबिक राज्यसभा में मुख्य सचेतक अनिल हेगड़े अगर हरिवंश की भूमिका को लेकर कोई रिपोर्ट अगर पार्टी को सौंपते हैं, तभी आगे फैसला होगा मतलब हरिवंश पर नीतीश आगे क्या फैसला करेंगे, यह अनिल हेगड़े की टिप्पणी या रिपोर्ट पर बहुत कुछ निर्भर करेगा.

नीतीश से हरिवंश कितने दूर, कितने पास?
2022 में जब नीतीश कुमार ने बीजेपी से अलग होने का फैसला लिया, तो एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह ने दावा किया कि हरिवंश नीतीश के साथ हैं. सिंह ने कहा कि हरिवंश जी ने कहा है कि मुझे सार्वजनिक जीवन में लाने वाले नीतीश कुमार हैं, इसलिए मैं उनसे अलग नहीं हो सकता हूं.

हालांकि, हरिवंश के ‘एक्शन ऑफ कम्युनिकेशन’ ने इस पर कई बार सवाल खड़े किए.

1. गठबंधन टूटने के बाद प्रशांत किशोर ने हरिवंश की भूमिका के जरिए नीतीश कुमार पर सवाल दागा. जेडीयू हाईकमान की नजर हरिवंश पर टिकी थी, लेकिन हरिवंश ने नीतीश के पक्ष में कोई भी सार्वजनिक बयान नहीं दिया. उल्टे नीतीश के विरोध के बावजूद संसद के उद्घाटन में शामिल हो गए.

2. जानकारों का कहना है कि हरिवंश उपसभापति हैं और पार्टी के नियम से खुद को अलग मानते हैं, तो फिर हाल ही में जेडीयू की समीक्षा बैठक में नीतीश कुमार के आवास पर क्यों गए थे? नीतीश ने पार्टी मजबूत करने के लिए यह समीक्षा बैठक बुलाई थी.

अब जाते-जाते हरिवंश की 2 कहानी पढ़िए…

बैंक की नौकरी छोड़ पत्रकार बने, पत्रकारिता का कोड ऑफ कंडक्ट बनाया
लोकनायक जय प्रकाश नारायण के गांव सिताबदियारा में जन्मे हरिवंश ने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से अपनी पढ़ाई पूरी की है. 1977 में बैंक की नौकरी छोड़ वे मशहूर पत्रिका धर्मयुग में बतौरी ट्रेनी जर्नलिस्ट जुड़ गए. 4 साल तक धर्मयुग में रहने के बाद हरिवंश कोलकाता आ गए और यहां रविवार पत्रिका ज्वॉइन कर लिया.

1989 में हरिवंश बिहार के रांची (अब झारखंड की राजधानी) से निकलने वाले स्थानीय अखबार प्रभात खबर के संपादक बनाए गए. उस वक्त झारखंड आंदोलन उफान पर था. हरिवंश के नेतृत्व में यह अखबार आंदोलन का चेहरा बन गया.

हरिवंश के रहते अखबार ने चारा घोटाला का खुलासा किया था. चारा घोटाला की वजह से मुख्यमंत्री लालू यादव को कुर्सी छोड़नी पड़ी थी. हरिवंश के रहते अखबार में संपादकीय कोड ऑफ कंडक्ट बनाया गया था. इसके तहत कोई भी पत्रकार महंगा गिफ्ट नहीं ले सकता है.

कोड ऑफ कंडक्ट तोड़ने वालों के लिए सख्त प्रावधान बनाया गया था. हालांकि, अंतिम वक्त में खुद हरिवंश जेडीयू के सहायता से राज्यसभा चले गए.

JDU ने राज्यसभा भेजा तो BJP की वजह से मिली उपसभापति की कुर्सी
नीतीश कुमार के करीबी होने की वजह से जनता दल यूनाइटेड ने 2014 में हरिवंश को राज्यसभा भेज दिया. 2017 में जेडीयू ने आरजेडी से गठबंधन तोड़ लिया. गठबंधन तोड़ने में हरिवंश ने मुख्य भूमिका निभाई. नीतीश और बीजेपी के साथ आने के बाद हरिवंश को इनाम भी मिला.

2018 में उन्हें राज्यसभा में उपसभापति बनाया गया. यह पद पहले नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी को दिया जा रहा था, लेकिन पटनायक ने लेने से इनकार कर दिया. 2020 में फिर से हरिवंश के बदले बीजेडी के उम्मीदवार को यह कुर्सी देने की अटकलें चल रही थी.

हालांकि, हरिवंश दूसरी बार भी कुर्सी पाने में कामयाब हुए. जानकारों का कहना है कि उपसभापति बनने के बाद हरिवंश ने बीजेपी हाईकमान को ज्यादा तरजीह देना शुरू कर दिया. 2019 में उन्होंने खुद से लिखित पुस्तक (चंद्रशेखर: वैचारिक राजनीति के अंतिम प्रतीक) का विमोचन नीतीश के बजाय प्रधानमंत्री मोदी से करवाया.

इस कार्यक्रम में जेडीयू के कोई भी बड़े नेता शामिल नहीं थे. हालांकि, कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद जरूर बुलाए गए थे.

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