लद्दाख में पिघलती राजनीति की बर्फ !
लद्दाख में पिघलती राजनीति की बर्फ
आज जब पूरे देश और दुनिया की नजर चन्द्रमा पर टिकी है उसी समय भारत में लद्दाख में सियासत की बर्फ भी तेजी से पिघलती दिखाई दे रही है । बात राहुल गांधी के लद्दाख दौरे की है। बात प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के जॉहन्सबर्ग दौरे की भी की जा सकती है लेकिन अभी वहां क्या हो रहा है ,इसका पता किसी को नहीं है । मै शपथपूर्वक कह सकता हूँ कि मेरा राहुल गांधी से दूर-दूर का रिश्ता नहीं है इसलिए आज राहुल गांधी पर लिखे मेरे आलेख को अन्यथा न लिया जाये। मुझे राहुल गांधी उतने ही पसंद हैं जितने कि माननीय मोदी जी। दोनों ठेठ भारतीय हैं और उनकी भारतीयता अलग-अलग तरिके से जनता को मुग्ध करती है।
चार साल पहले प्रधानमंत्री श्री मोदी जी ने जिस लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग कर केंद्र शासित राज्य बनाया था ,उसी लद्दाख में राहुल गांधी 265 किमी की मोटर साइकल यात्रा कर पहुँच गए हैं। माननीय प्रधानमंत्री जी के लिए सब कुछ मुमकिन है किन्तु राहुल की तरह मोटर साइकल से इतनी लम्बी यात्रा करना और बर्फ पर रपटने का खेल खेलना मुमकिन नहीं है। उम्र का तकाजा है । जो काम मोदी जी कर सकते हैं वो काम राहुल गांधी के बूते का नहीं है और जो काम राहुल गांधी कर रहे हैं वो काम मोदी जी के बूते का नहीं है। हालाँकि दोनों का हर काम सियासत से जुड़ा है।
राहुल गांधी से पहले माननीय मोदी जी एक बार नहीं बल्कि चार बार लद्दाख गए लेकिन लद्दाख का दिल नहीं जीत पाए । वे जितनी बार भी लद्दाख गए प्रधानमंत्री बनकर गए ,नरेंद्र मोदी बनकर नहीं गए । उन्होंने वहां सेना की वर्दी पहनी ,कैप लगाया ,सीमा देखी लेकिन जनता से मिलना उनके लिए उस तरह मुमकिन नहीं था जिस तरह से राहुल गांधी के लिए है। आखिर मोदी जी प्रोटोकॉल से बंधे हैं। मोदी जी के लिए जिस तरह से हर जगह ‘ मोदी-मोदी’ होता है वैसा राहुल के लिए इस बार लद्दाख में राहुल के लिए भी हुआ। इसके लिए कोई प्रायोजन नहीं करना पड़ा । सब अपने आप हुआ । जय -जय अपने आप ही होना चाहिए। प्रायोजित जय-जय अलग से नकली दिखाई देती है।
बहरहाल राहुल की लद्दाख यात्रा पर वापस लौटते हैं । मोदी जी जितनी बार लद्दाख गए उतनी बार पड़ौसी चीन के उपद्रव के बाद गए।सैनिकों के हताहत होने के बाद गए। वे सेना की हौसला अफजाई करने गए । उन्हें जाना भी चाहिए था,लेकिन उन्होंने लद्दाख जाकर कभी चीन को हड़काया नही। आँखें नहीं दिखाएं वे ऐसा कर भी नहीं सकते थे, क्योंकि वे चीन को साबरमती में झूला झूला चुके थे । और ये शिष्टाचार के खिलाफ है की आप जिसे झूला झुलाएं उसे आँखें भी दिखाएं। चीन ने मोदी जी को भी उसी तरह धोखा दिया जिस तरह से उनके प्रतिद्वंदी पंडित जवाहरलाल नेहरू को दिया था ।
राहुल गांधी ने लद्दाख में सैर-सपाटा करने के साथ ही सियासत भी की । प्रधानमंत्री से चीन को लेकर सवाल भी किये । भारत की जमीन पर चीनी अतिक्रमण का मुद्दा भी उठाया ये जानते हुए भी कि भक्तगण उनके सवालों के बाद उनके नाना पंडित जवाहर लाल नेहरू तक जा पहुंचेंगे। लोग राजनीति में हों या न हों जब सवालों के जबाब नहीं होते तब प्रतिद्वंदी के पुरखों तक जाते हैं। राहुल जानते हैं कि उनके सवालों के जबाब न कभी मिले हैं और न मिलेंगे । लेकिन वे सवाल करना नहीं छोड़ रहे। मोदी जी की तरह ही राहुल भी जिद्दी है । मोदी जी जबाब नहीं देते और राहुल सवाल किये बिना नहीं मानते। मजे की बात ये है कि दोनों का दुश्मन साझा है यानि चीन।
मोदी जी हमारे मौजूदा प्रधानमंत्री ही नहीं भावी प्रधानमंत्री भी है। ऐसा उन्होंने खुद कहा है । राहुल गांधी तो प्रधानमंत्री पद का शायद सपना भी न देखते हों,क्योंकि अभी उनकी कांग्रेस की स्थिति उन्हें ये सपना देखने की इजाजत नहीं देती । राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनने का सपना देखने के बजाय देश को एक करने का सपना भी देखते हैं और उसके लिए कोशिश भी करते है। वे इस कोशिश में देश की 3500 किमी लम्बी सड़कें नाप चुके हैं। उनका हौसला कम नहीं हुआ है । घुटने में दर्द के बावजूद वे दोबारा से देश जोड़ने के लिए यात्रा पर निकल पड़े है। घुटने टेकने से बेहतर ही दुखते हुए घुटनों से यात्रा करना। राहुल ये काम कर रहे है। मोदी जी के लिए सब कुछ मुमकिन है किन्तु वे या उनकी पार्टी का कोई भी नेता राहुल की तरह पदयात्रा कर भारत को न जोड़ सकता है और न खोज सकता है।
दरअसल भारत के बारे में आजादी के अमृतकाल में जितनी बात होना चाहिए थी उतनी बात न संसद में हुई और न संसद के बाहर । आजादी के अमृतकाल में सबसे ज्यादा मोदी जी की और उनके अवतार की हुई। होना भी थी क्योंकि उन्होंने अपनी 2 सीटों वाली पार्टी को 300 पार करा दिया। मोदी जी अपने प्रमुख प्रतिद्वंदी स्वर्गीय पंडित जवाहर लाल नेहरू की तो छोड़िये अभी उनके पौत्र राहुल गांधी की भी बराबरी नहीं कर पाए है। ये लक्ष्य हासिल करने के लिए उन्हें तीसरी बार प्रधानमंत्री बनना है ,और वे मन ही मन तीसरी बार के प्रधानमंत्री आम चुनाव से पहले बन चुके हैं। राहुल गांधी को उनके रास्ते में रोड़ा नहीं बनना चाहिए। मै तो कहता हूँ कि यदि 2024 में मोदी जी को राजीव गांधी के बराबर सीटें हासिल करने के लिए यदि कोई कमी महसूस हो तो राहुल गांधी को उनकी मदद करना चाहिए। किसी का सपना तोड़ना अच्छी बात नहीं है।
इस समय भाजपा और कांग्रेस को देश के बजाय मोदी जी के भविष्य की फ़िक्र करना चाहिए। देश का तो कुछ बनना,बिगड़ना नहीं है लेकिन मोदी जी जो एक बार कुर्सी से उतरे तो उन्हें शायद कोई मार्गदर्शक मंडल में भी शामिल न होने दे। इसलिए मोदी जी को हर हाल में तीसरा टर्म मिलना ही चाहिए । लेकिन राहुल गांधी बार-बार कुछ न कुछ हौवा खड़ा कर देते हैं। वे जनता से गले मिलते है। उनके साथ सेल्फी खिंचवाते है।’ फ़्लाइंग किस ‘ देते हैं। दूकानदारों के पास जाकर आम आदमी की तरह खरीद -फरोख्त करते है। ये सब ,मोदी जी के बूते कोई बात नहीं है ,इसलिए राहुल को उनके सामने इस तरह की चुनौतियां खड़ी नहीं करना चाहिए। राहुल गांधी के पास न धनबल है और न जनाधार। वे बेकार पदयात्रा करते हैं क्योंकि चुनाव जीतने के लिए जो करना पड़ता है वो उन्हें आता ही नहीं। उनके पास ले-देकर एक सफेद टीशर्ट और जींस पेण्ट है और उनके प्रतिद्वंदी के पास दिन में पांच बार बदलने के लिए कुर्ते-पायजामे और सदरियाँ हैं। राहुल आखिर मोदी जी का मुकाबला क्या खाकर करेंगे ?
बावजूद इसके कांग्रेसियों को और दुसरे विपक्षियों को लगता है की राहुल गांधी भविष्य के नेता हैं। वे ही हैं जो मोदी जी के मुकाबले देश के भीतर और देश के बाहर खड़े हो सकते है। मोदी जी के पास भले टेलीप्रॉम्प्टर हैं लेकिन राहुल बिना टेलीप्रॉम्प्टर के भाषण दे सकते हैं,पत्रकार वार्ताएं ले सकते हैं। हिंदी के अलावा अंग्रेजी में बतिया सकते हैं, वो भी बिना पानी पिए। जो मोदी जी के पास है वो राहुल के पास नहीं और जो राहुल के पास है वो मोदी जी के पास नहीं। राहुल अभी सठियाये नहीं हैं और मोदी जी दादा,नाना बनने की वय हासिल कर चुके हैं हालांकि उनके भाग्य में ये सब नहीं है । वे प्रधानमंत्री भले ही तीसरी बार बन जाएँ लेकिन जवाहर लाल नेहरू की तरह नाना नहीं बन सकते। उनकी अपनी गलती है । अब इस गलती को सुधारा भी नहीं जा सकता। मोदी जी ने बचपन में ही ठान लिया था कि देश से परिवारवाद को समाप्त करना है ,इसलिए सबसे पहले उन्होंने अपने घर से ही इसकी शुरुवात की थी। देश को उनका आभारी होना चाहिए अन्यथा देश को फिर से अच्छे दिन दिखने वाला कोई उपलब्ध रहता।
कुल मिलकर राहुल गांधी ने लद्दाख कोई धरती से मोदी जी से चीन के बाबद सवाल कर मोदी जी की जोहन्सबर्ग यात्रा का मजा किरकिरा कर दिया। मोदी जी भद्र नेता हैं इसलिए वे अपने से कम उम्र के लोगों के मुंह नहीं लगते अन्यथा वे चाहते तो जोहन्सबर्ग से ही राहुल के सवालों का जबाब दे देते। वे राहुल के सारे सवालों के जबाब जोहन्सबर्ग से लौटकर किसी चुनावी सभा में अवश्य देंगे । मोदी जी राहुल के सवालों के जबाब में राहुल से ही सवाल करेंगे उनकी गुपचुप चीन यात्राओं के बारे में,उनके चीन कनेक्शन के बारे में। सवालों का जबाब सवाल ही होते हैं। देश को इसके लिए मोदी जी के स्वदेश लौटने का इन्तजार करना चाहिए। देश के हिस्से में इन्तजार ही इन्तजार ह। जैसे अच्छे दिनों का इन्तजार, जैसे हर भारतीय के खाते में 15 लाख रूपये आने का इन्तजार।